
मै नारी हूँ
( Main nari hoon : Poem on nari )
मजबूरियों की दास्तान लिख रही हूँ मै।
राधा में रूकमणि हो जैसे दिख रही हूँ मैं।
गंगा हृदय में धार कर उमड रही हूँ मैं,
अब तुम बताओ ना कैसी दिख रही हूँ मै।
मै मेनका हूँ शचि भी हूँ,मै नार नवेली।
दुष्यंत की शकुंतला सी हूँ मै अकेली।
रम्भा बनी तिलोत्तमा सी उर्वशी हूँ मै,
बनके शिला पडी रही अहिल्या हूँ मै।
राम की हूँ जानकी,लखन की उर्मिला ।
मै भवानी नौ ग्रही, तो श्याम की मीरा।
देख मुझे ध्यान से, शिव जटा में बाँध ले,
दामिनी सी दमकती, अनमोल हूँ हीरा।
मै शिव का आधा अंग हूँ हुंकार की तरंग।
मै राग हूँ मै रंग हूँ मै मस्त हूँ मलंग।
मै सुप्त मन की भावना,सम्पूर्ण हूँ समस्त,
हर पुरूष की कामना,चढता हो जैसे भंग।
मै धरा रूप धारिणी, सुभाषिणी सुहासिनी।
मैं आदि हूँ मै अंत हूँ मै प्रेम हूँ समस्त।
हुंकार की हूँ कामना, निःशब्द से कुछ शब्द,
मै नारी हूँ नारायणी,इस काव्य का प्रसंग।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )