Main Nari Hoon Kavita
Main Nari Hoon Kavita

मै नारी हूँ

( Main nari hoon : Poem on nari )

( 2 )

पुरुषों के समाज में अबला कहलाने वाली बेचारी हूं,
सब कुछ सहकर चुपचाप आंसू बहाने वाली मैं नारी हूं।

पुरुष को जन्म देने से मरण तक देती हूं साथ पुरुष का,
उस वक्त भी होती जरूरी प्रदर्शन होता जब पौरुष का।

समाज में व्याप्त भेदभाव अनीति को सहना भी है,
न कोई आवाज उठाना और न कुछ कहना भी है।

समय बदलता युग बदलते पर न बदलता हाल,
त्रेता द्वापर से कलियुग आया हाल हुआ बेहाल।

सीता हो या द्रौपति सब हालातों के आगे थे हारे,
पुरुष प्रधान इस समाज में फिरती हैं मारे मारे।

हमारे त्याग और समर्पण का नहीं है जग में कोई मोल,
अत्याचार अन्याय होता हम पर और मिलते कड़वे बोल।

मां बेटी और बहु के रूप में आज भी संघर्ष करती नारियां,
पुरुष प्रधान समाज में कोई नहीं सुनता इनकी सिसकारियां।

अब वक्त आ गया इनके लिए आवाज उठाना होगा,
सामाजिक समानता व अधिकारों का हक दिलाना होगा।।

रचनाकार –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )

 

( 1 ) 

मजबूरियों  की दास्तान लिख  रही  हूँ मै।

राधा में रूकमणि हो जैसे दिख रही हूँ मैं।

गंगा  हृदय  में  धार  कर  उमड रही हूँ मैं,

अब तुम बताओ ना कैसी दिख रही हूँ मै।

 

मै  मेनका  हूँ  शचि  भी हूँ,मै नार नवेली।

दुष्यंत की  शकुंतला  सी  हूँ  मै  अकेली।

रम्भा  बनी  तिलोत्तमा  सी  उर्वशी  हूँ मै,

बनके  शिला  पडी  रही  अहिल्या  हूँ मै।

 

राम की हूँ जानकी,लखन की उर्मिला ।

मै भवानी नौ ग्रही, तो  श्याम की मीरा।

देख मुझे ध्यान से, शिव जटा में बाँध ले,

दामिनी सी दमकती, अनमोल हूँ हीरा।

 

मै शिव का आधा अंग हूँ हुंकार की तरंग।

मै  राग हूँ मै रंग हूँ  मै  मस्त  हूँ  मलंग।

मै सुप्त मन की भावना,सम्पूर्ण हूँ समस्त,

हर पुरूष की कामना,चढता हो जैसे भंग।

 

मै धरा रूप धारिणी, सुभाषिणी सुहासिनी।

मैं  आदि हूँ मै अंत हूँ  मै प्रेम  हूँ  समस्त।

हुंकार की हूँ कामना, निःशब्द से कुछ शब्द,

मै नारी हूँ नारायणी,इस काव्य का प्रसंग।

 

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

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