हिंदी भाषा को व्यावहारिक बनाना जरूरी है

हिंदी भाषा को व्यावहारिक बनाना जरूरी है

हिंदी भाषा को व्यावहारिक बनाना जरूरी है

( It is necessary to make Hindi language practical ) 

 

हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए एक राष्ट्र भाषा प्रचार समिति का गठन आजादी के बाद किया गया था। वर्धा ने सबसे पहले 1953 तत्कालीन केंद्र सरकार से अनुरोध किया था कि वह हिंदी दिवस मनाये।

हालांकि इसके पहले महात्मा गांधी ने भी हिंदी को उसका यथोचित स्थान दिलाने के लिए काफी सक्रिय रहे थे। गांधीजी का मानना था कि मातृभाषा को उचित स्थान मिले बिना शिक्षा और कौशल निर्माण का मकसद अधूरा रह जाएगा।

देश की आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी आज भी हिंदी भाषा राजभाषा और राष्ट्रभाषा के दोराहे पर खड़ी है इसके लिए हमें लोग दोषी हैं क्योंकि हिंदी भाषा की शुद्धता को लेकर हमारा जो दुराग्रह रहा है वह काफी जिद्दी रहा है, जबकि अन्य भाषाओं में ऐसा नहीं है। यही वजह है कि अन्य भाषाओं  को हिंदी भाषा उतनी सहज नही लग पाई।

आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग होने वाली भाषा का उतना विरोध नही होता है जितना कि हिंदी को क्लिस्ट बनाए रखने के लिए कुछ प्रदेशों में हो रहा है।

अब जरूरत है कि हिंदी भाषा में हर दिन इस्तेमाल होने वाले तमाम शब्दों को प्रयोग में होने दें, चाहे वह अंग्रेजी के शब्द हो, चाहे वह विदेशी भाषा के शब्द हो अथवा आंचलिक हो।

इनको हिंदी भाषा में स्वीकृति देनी चाहिए वरना नई पीढ़ी हिंदी अपनाने को अपने पिछड़ेपन का ही पर्याय मानती रहेगी।

किसी भी भाषा के परिष्कार के लिए जरूरी होता है कि उसे झरने की तरह बहने दिया जाये। इसके अलावा सरकारों की उदासीनता भी हिंदी भाषा की मजबूरी बन गई है।

अब सवाल उठता है कि हिंदी को व्यवहारिक कैसे बनाया जाए तो इसके लिए हिंदी को सरकारी कामकाज में इस्तेमाल होने वाली राजभाषा के शिकंजे से बाहर निकाल कर जन-जन के बीच आसान हिंदी लोगों को समझानी होगी।

हिंदी को हिंदुस्तानी बनाना होगा और इसमें सोशल मीडिया वाली हिंदी, मुंबई की फिल्मों वाली हिंदी, गंगा जमुनी तहज़ीब वाली हिंदी के साथ सरल भाषा में आधुनिक विषयों को शिक्षा देने वाली हिंदी को भी शामिल करना होगा।

एक तरह से कहले कि हिंदी भाषा को पारंपरिक और आधुनिक भारत के बीच की कड़ी बनना होगा। इसलिए यह वक्त की जरूरत है कि हिंदी की स्वीकार्यता को नए संदर्भ में देखा जाए क्योंकि देश की भाषा को दुनिया तक पहुंचाने के लिए किसी विदेशी भाषा पर निर्भरता के बजाय हिंदी भाषा को अब आगे बढ़ाया जाये।

पिछले कुछ सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश की साख बढ़ी है इसकी वजह है यह है कि हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल रही है। जब हम एक संविधान, एक विधान, एक ध्वज पर सहमत हैं तब हिंदी भाषा के मसले पर भी हमे एक मत होना होगा।

हिंदी दिवस पर ज्यादातर लोग यही चर्चा करते हैं कि अंग्रेजी बढ़ रही है और हिंदी घट रही है। हर बार हिंदी दिवस आता है और चला जाता है लेकिन इसमें हिंदी भाषा या हिंदी भाषी कसूरवार नहीं है।

जरूरत है हिंदी की स्वीकार्यता को बढ़ाया जाये और इसे अधिक से अधिक व्यावहारिक बनाने पर ध्यान दिया जाये।

आजकल देखा जा रहा है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां जो भारत में आकर अपना व्यापार बढ़ा रही हैं वे अपने विज्ञापनों में हिंदी भाषा को वरीयता दे रही हैं। इसकी वजह यह है कि भारत एक हिंदी भाषी देश के तौर पर जाना जाता है।

भारत में हिंदी भाषा को जानने और समझने वाले लोग अधिक हैं। इसीलिए मीडिया और विज्ञापनों में हिंदी भाषा का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी लोग हिंदी का इस्तेमाल करने हैं। लोग ट्विटर, फेसबुक इंस्टाग्राम पर हिंदी में अपने कंटेंट डाल रहे हैं।

लेखिका : अर्चना 

 

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बदलते समय के साथ बदलती हुई हिंदी को स्वीकार करना वक्त की जरूरत है

 

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