मनोविकार

मनोविकार | Manovikar

शमी, एक हष्ट-पुष्ट नवमीं कक्षा का छात्र था, उसे खाने-पीने का बहुत शौक था । वह होनहार एवं मिलनसार प्रवृत्ति का लड़का था ,परन्तु कुछ दिनों से एकदम शांत और अलग-थलग रहता था ।

खाने-पीने में कोई रुचि नहीं ले रहा था । उदास मन से स्कूल जाता तथा वापस आने के बाद , पूरे दिन उदास ,अपने कमरे मेॅ पड़ा रहता था ।


उसकी मम्मी शीतल को, बेटा का इन रवैए से बेहद चिंता होने लगी, कई दफा बेटा के करीब जाकर पूछने की कोशिश करती , परन्तु शमी बात टालकर बाहर चला जाता था ।

वह दिनोंदिन हष्ट-पुष्ट लड़का कृषकाय होते जा रहा था । शीतल ने पति मदनलाल से रोते हुए कहा – आप पूरे दिन दफ़्तर मेॅ रहते हो, घरबार – बेटा की भी खबर ले लिया करो ।

आखिर किसके लिए कमा रहे हो ? हमारा इकलौता बेटा है, यदि उसे कुछ हो गया, हम जीते-जी मर जायेंगे । क्या करेंगे ; ये गाड़ी- बंगला, इज्जत- शौहरत का ?

मदनलाल तुरंत शमी को लेकर अपने फैमिली डॉक्टर रमेश झाॅ के पास ले गया । रमेश और मदनलाल क्लासमेट थे , वे दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे । रमेश, मदनलाल के परिवार तथा शमी को अच्छे से जानता था ।

उसने, शमी की हालत देखकर तुरंत इलाज शुरु किया । शीतल बोली – भाई साहब , पहले कुछ भी सामने रख दो ; बड़े चाव से खाता था,कुछ दिनो से अरुचि रखता है । रमेश- भाभी , मैं शमी से अकेले में बात करना चाहता हूं , आप दोनो कुछ समय के लिए बाहर जाईए ।


रमेश- शमी बेटा,सच- सच बताओ; तुम्हे कैसे लग रहा है ? तुम तो ऐसे नहीं थे, ये हालत कैसे हुई ? शमी (रोते हुए) – अंकल,अब, मैं इस दुनिया में कुछ दिनों का ही मेहमान हूं, थोड़े दिनों में मर जाऊंगा ,पर पापा-मम्मी को यह बात मत बताइयेगा , प्लीज अंकल।

रमेश( आश्चर्य से) – वह कैसे ? शमी (रोते हुए ) – दरअसल, कुछ दिनों पहले, मम्मी खाना परोसी थी, उसमें छिपकली गिर गई थी, शायद, वह मेरे पेट में चली गई है, (रुआंसे वाक्यों से) अंकल आप तो जानते हैं कि छिपकली कितनी जहरीली होती है ?… रमेश को समझते देर ना लगी ।

शीतल और मदनलाल को अंदर बुलाकर कहने लगा घबराने की बात नहीं है, भाभी । बहुत दिनों बाद आए हो आज रात का डिनर, मेरे घर में हो जाए । शीतल और मदनलाल का मन सही नहीं था । रमेश – आप लोग दुखी मत होओ । आज ही एक टेबलेट दूंगा और सबकुछ ठीक हो जाएगा ।

उसने चुपके से मरी हुई छिपकली की जुगाड़ लगाई और डिनर के बाद उल्टी होने की दवाई खिलवा दी । शमी को उल्टियां शुरु हो गई , तभी चुपके से वह मरी हुई छिपकली उल्टी में रख दी और आवाज लगाने लगा – मदन भाई , देखो ! इसी कमबख्त छिपकली ने हमारे शमी बेटा को मौत की ओर ले जा रही थी , आज निकल गई ।

सभी रमेश की ओर आश्चर्य से देख रहे थे और रमेश कभी शमी की ओर देखते कभी अपनी पत्नी माया, शीतल और मदनलाल की ओर देखकर, हौले-हौले से सिर हिला रहे थे ।

किसी को समझने में देर ना लगी । रमेश ने टेबलेट नींद की देते हुए कहा कि इसे घर जाकर दे देना । मदनलाल परिवार के साथ घर आया और शमी को दवाई दी और सब सो गए । अगली सुबह , शमी पहले जैसे ख़ुशनुमा हो गया तथा परिवार में खुशहाल छा गई ।

सुश्री माधुरी करसाल “मधुरिमा”

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