महफिल

( Mehfil )

 

महफिले आम न कर चाहत मे अपनी
लुटेरों की बस्ती मे न बसा घर अपना

बच के रह जरा ,बेरुखी जहां की नजर से
इस महफिल का उजाला भी शराबी है

घरौंदे से महल के ख्वाब ,ठीक नही होते
दीए का उजाला भी ,भोर से कम नहीं होता

ये महफिल है,गुम्बद न देख यहां से तू
हो गए हैं दफन कई ,अनजानों की तरह

चल अभी तेरी शाम से ,सहर दूर नही
गिरने से पहले ,कदमों का पहुंचना तय है

सफर के हालातों मे ,महफिल ने सजा तू
कभी सजी महफिल मे,तख्त तेरा भी होगा

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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