मेरी कलम से | डॉ. बी.एल. सैनी
मेरी कलम से
(हास्य रस)
मेरी कलम ने छेड़ा जब, हास्य का कोई गीत,
शब्दों ने किए ठहाके, हुआ माहौल भीम।
कागज़ बोला मुझसे, “थोड़ा धीमे चल,
तेरे चुटकुले भारी, हंसी रोकें कैसे पल?”
स्याही बोली, “साहब, थोड़ा आराम कर,
हंसी के इस झटके में, गिरा दूंगी घरभर।”
पेन ने किया विरोध, बोला, “मैं भी हूं कलाकार,
मेरा भी तो नाम हो, बन जाऊं हंसी का उपहार।”
चश्मा भी हिला सिर, बोला, “मैं भी हूं संग,
तेरी हंसी से कांपते, मेरे शीशे के अंग।”
मैंने कहा, “अरे भाई, यह तो बस शुरुआत है,
हास्य के संग लिखने की, अनूठी यह सौगात है।”
तो ऐसे चलती मेरी कलम, हंसी का करती प्रहार,
जहां भी पढ़े मेरी पंक्तियां, छूटे हंसी के बौछार।
डॉ बीएल सैनी
श्रीमाधोपुर (सीकर) राजस्थान
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