DR BL SAINI

मेरी कलम से | डॉ. बी.एल. सैनी

विषय सूची

होली चली गई

( हास्य रचना)

होली चली गई, पर हमको,
याद बहुत अब आती है।
कहीं गुलाल, कहीं रंग बरसे,
रौनक नहीं दिखाई है॥

रंग भरे थे बाल्टी भर के,
अब बाल्टी भी खाली है।
पिचकारी की टूटी नली,
अब तक यही सवाल करे॥

गली-मोहल्ले, चौक-बाजार,
सब सूने-सूने दिखते हैं।
वो भीग-भीग कर कांप रहे,
जो कल तक हमसे चिढ़ते थे॥

भांग घुली थी ठंडाई में,
बुरा न मानो होली है।
अब सिर दर्द से फटा पड़ा,
बस नींद कहाँ ये बोली है॥

अबकी बार कसम ये खाई,
होली में संयम रखेंगे।
पर अगली होली आते ही,
फिर भांग घोल ही देंगे॥

धूलंडी का रंगमय उत्सव

रंग बरसे, हर्ष खिले, आया फागुन मास,
गुलाल उड़ाए प्रेम से, हर मुख पर उल्लास।

पीले, लाल, हरे, गुलाबी, रंगों की है छटा,
भूलें बैर, मनाएं होली, सबमें प्रेम बटा।

ढोल मंजीरे संग बजे, नाचे सारा गाम,
रंग-गुलाल में डूब चला, प्रेम भरा पैगाम।

बचपन की वो टोलियाँ, पिचकारी संग आयीं,
इंद्रधनुष से रंग लिए, गलियां भी मुस्काईं।

मीठे गुजिए, भंग की ठंडाई का संग,
धूलंडी की मस्ती में, भीगे तन और अंग।

बैर-कलह सब भूलकर, मिलें गले अपार,
सद्भावना का रंग लिए, आई होली बार-बार।

नशा: मजबूरी या शौक?

नशा कोई करता मजबूरी में,
कोई करता शौक में चूर,
कोई बहका हालातों से,
कोई बहकाए मिली सुरूर।

किसी को तन्हाई रुलाती है,
तो कोई संगत में डूब गया,
किसी ने जीवन लुटा दिया,
किसी का घर ही ऊब गया।

शौक समझकर जिसने अपनाया,
आदत बनकर वो छा गया,
पहले गिलास, फिर जाम हुआ,
फिर जाम ही जीवन खा गया।

मजबूरी का जब जाम बना,
तब दर्द का वो नाम बना,
जो रोया किस्मत के आगे,
बस पीकर एक गुलाम बना।

हाथ में था कलम का साया,
हाथ में था रोटी का दान,
अब हाथ में बस बोतल रह गई,
और छिन गया सारा सम्मान।

नशा शौक नहीं, ये रोग है,
हर घूंट में छुपी जंजीर है,
जो इसमें बंधा, वो हार गया,
उसकी दुनिया ही तसवीर है।

छोड़ दे इस छलावे को,
ये साथ तेरा कब तक देगा?
जीवन एक वरदान मिला है,
इसका हर पल क्यों न खिलेगा?

संभल, संभल ऐ नौजवान,
रंगीन दुनिया बस छलावा है,
नशा नहीं, मेहनत कर प्यारे,
जीवन यही असली मावा है।

शौर्य के अमर दीप

वो पल था दुख का, वो पल था क्रोध का,
वो पल था बलिदानियों की जय-गाथा बोध का।
चौदह फरवरी की उस काली शाम,
भारत माँ के वीर सपूतों पर हुआ वार घोर घमासान।

माँ के लाडले, बहन के भाई, पत्नी के सपनों की आस,
धरती के रखवाले आप ही, भारत का उज्ज्वल विश्वास।
रक्त से लिखी अमर कहानी, जो कभी न धुंधलाई,
शौर्य-दीप की यह ज्वाला, हर पीढ़ी ने अपनाई।

दुश्मन की कायरता देखी, पर धैर्य न डिग पाया,
सीने पर गोलियाँ खाईं, पर तिरंगा ऊँचा लहराया।
तिरंगे में लिपटे जब लौटे, हर आँखें अश्रु बहाती,
भारत माँ के इन रत्नों की, गाथा दुनिया दोहराती।

प्रण यह भारत का रहेगा, बलिदान व्यर्थ न जाएगा,
आपकी गौरव-गाथा हर दिल में दीप जलाएगा।
अमर रहेंगे आप सदा, गूँजती रहेगी आपकी वाणी,
वीरों की जय-गाथा कहता, नमन आपको डॉ. बी. एल. सैनी।

नारी का सम्मान

नारी है शक्ति, नारी है नूर,
नारी से ही है यह जग भरपूर।
ममता की मूरत, प्रेम की खान,
नारी है सृष्टि की पहचान।

हर रूप में उसने जग को संवारा,
बेटी, बहन, माँ बनकर निहारा।
संघर्षों से राहें उसने बनाई,
अपने सपनों को उड़ान दिलाई।

शिक्षा की रोशनी से जगमगाई,
हर क्षेत्र में अपनी छाप बनाई।
ज्ञान-विज्ञान में ऊँचा मुकाम,
हर कदम पर किया काम तमाम।

आओ मिलकर नारी को पूजें,
हर बंधन से उसको मुक्त करें।
सशक्त, समर्थ, हो उसका नाम,
राष्ट्र विकास में दे योगदान।

आज के दिन हम प्रण यह लें,
हर नारी का सम्मान करें।
खिले उसकी मुस्कान सदा,
यही है सच्चा नारी दिवस का सजा।

मां की ममता, अनमोल धरोहर

मां की ममता, अनमोल धरोहर,
जिसका नहीं कोई मोल अमर।
स्नेह, त्याग, समर्पण से भरी,
मां के बिना जीवन है अधर।

नींद से पहले लोरी गाती,
हर आंसू को मोती बनाती।
खुद रोकर भी हमें हंसाए,
हर मुश्किल को दूर भगाती।

थक जाए दुनिया के सारे रिश्ते,
पर मां का साया सदा रहे।
सर्दी, गर्मी, धूप, अंधेरा,
हर मौसम में छांव बनी रहे।

मां का साथ ही जीवन ज्योति,
उसका प्यार है सबसे न्यारा।
जिस घर में मां की मुस्कान रहे,
वहां बसते देवता सारा।

मां की दुआ, जीवन की शान

मां की दुआ, जीवन की शान,
जिससे मिलता सच्चा मान।
हर मुश्किल में ढाल बने वो,
उसका प्यार है वरदान।

बचपन में जो बाहों में झूलाई,
अपनी लोरी से नींद सुलाई।
थक जाए खुद कितनी भी,
पर कभी नहीं थकने पाई।

हर ग़म को खुद पर लेती,
बच्चों पर आंच न आने देती।
खुद रह जाए भूखी लेकिन,
हमारी थाली कभी न खाली रहती।

मां के बिना सूना जीवन,
हर खुशी भी अधूरी लगती।
जिस घर में मां हंसती रहती,
वहां स्वयं लक्ष्मी बसती।

मां का साया, ईश्वर का वरदान

मां का साया, ईश्वर का वरदान,
उसके बिना अधूरा जहान।
हर दुख को खुद पर लेती,
बच्चों पर लुटाए बलिदान।

ममता का वो सागर गहरा,
त्याग-समर्पण जिसका चेहरा।
हर आहट को पहले पहचाने,
बिन बोले सब दर्द समझा।

रातों को जागे, लोरी सुनाए,
बिन थके ममता बरसाए।
थक जाए जब सारी दुनिया,
मां की गोद हमें बहलाए।

जिसने मां की सेवा कर ली,
उसने पाया सच्चा सम्मान।
जिस घर में मां का वास रहे,
वहीं बसते साक्षात भगवान।

मां की गोद, स्वर्ग से प्यारी

मां की गोद, स्वर्ग से प्यारी,
जिसमें बसती खुशियां सारी।
दुनिया चाहे साथ न दे,
मां का साया लगे दुलारी।

हर आंसू को मोती बना दे,
हर ग़म को खुद में समा ले।
बिन कहे ही सब कुछ जाने,
ममता का सागर लहरा दे।

सर्दी में खुद ठिठुरे लेकिन,
हमको ओढ़ाए गर्म दुशाला।
गर्मी में वो जलती रहती,
पर हमें देती शीतल छाला।

मां की मूरत सबसे न्यारी,
उससे बढ़कर कौन सहारा।
जिस घर में मां मुस्काती है,
वहीं बसते देवता सारा।

मां का प्यार, सबसे महान

मां का प्यार, सबसे महान,
जिसमें बसता सारा जहान।
त्याग-समर्पण की वो मूरत,
हर संतान की होती जान।

अपनी खुशियां भूलकर जीती,
हर दुख सहकर स्नेह लुटाती।
बिन बोले हर दर्द समझे,
मां की ममता कभी न घटती।

रातों को वो जागी रहती,
हमको देख-देख मुस्काती।
थक जाए जब दुनिया सारी,
मां की गोद हमें बहलाती।

मां के बिना अधूरा जीवन,
उसके बिना सूना संसार।
जिस घर में मां रहती हंसकर,
वहीं बसते देव हजार।

मां का स्पर्श, जीवन का सार

मां का स्पर्श, जीवन का सार,
जिसमें बसता प्यार अपार।
उसके बिना सूना आंगन,
जग लगता बेरंग पहाड़।

जब भी गिरा, संभाल लिया,
अपने आंचल में ढाल लिया।
दुख की हर आहट को रोका,
ममता का दीपक बाल लिया।

भूखी रहकर पेट भरा वो,
अपनी खुशियां न्योछावर कीं।
बिन बोले सब हाल समझे,
बच्चों पर हर सांस वारी।

मां का दिल सागर से गहरा,
त्याग-समर्पण जिसका चेहरा।
जिस घर में मां की हंसी गूंजे,
वहां बसते सारे देव सवेरा।

मां का आंचल, प्रेम की छाया

मां का आंचल, प्रेम की छाया,
जिसमें बसता सुख की माया।
दुनिया चाहे साथ न दे,
मां ने हर दुख स्वयं बहाया।

बचपन में जो गोदी खिलाए,
सपनों की दुनिया में ले जाए।
अपनी नींद भुला दे जो,
हंसते-हंसते दर्द छुपाए।

गिरने से पहले थाम लेती,
हर मुश्किल को राह बना देती।
अपना हर सुख न्योछावर कर,
जीवन को मधुमय कर देती।

मां की ममता सबसे ऊंची,
जिसका मोल न कोई जाने।
जिस घर में मां मुस्काती है,
वहां स्वयं भगवान बसे।

मां का स्नेह, अमृत समान

मां का स्नेह, अमृत समान,
जिसमें बसता सारा जहान।
हर दुख अपना खुद ही सह ले,
बच्चों को दे सुख अपार।

बचपन में जो साथ निभाए,
हर आंसू को खुद ही सुखाए।
खुद जलती, पर राह दिखाए,
जीवन भर दीप जलाए।

भूखी रहकर पेट भरे वो,
नींद गंवा सुलाए रातों को।
थक जाए जब दुनिया सारी,
मां की गोद लगे किलकारी।

मां से बढ़कर कौन है जग में,
उसके बिना सब अधूरा है।
जिसने पाया मां का साया,
उससे बड़ा कोई धन नहीं।

मां: ममता की मूरत

मां ममता की पावन मूरत,
जिसमें बसती है सारी सूरत।
सुख-दुख की वो सच्ची साथी,
हर हाल में रहती मजबूती।

बचपन में जो गोद खिलाए,
अपनी लोरी से नींद सुलाए।
खुद जागे सारी-सारी रातें,
पर हमें सुकून से सोने दे जाए।

कभी डांटे, कभी मनाए,
हर गलती पर प्यार जताए।
हम गिरने से पहले थामे,
हर मुश्किल को सरल बनाए।

त्याग, प्रेम और बलिदान,
मां का सबसे ऊँचा मान।
जिस घर में मां रहती हंसकर,
वहीं बसते सारे भगवान।

मां का आशीर्वाद, जीवन का प्रकाश

मां का आशीर्वाद, जीवन का प्रकाश,
जिससे मिलता सुख-शांति का एहसास।
उसकी दुआओं में जादू बसता,
हर मुश्किल में बनती वो खास।

थक जाऊं जब राहों में चलकर,
मां की ममता देती सहारा।
एक नज़र उसकी काफी होती,
दूर करे वो दुख का अंधियारा।

बिन मां के सूना जीवन होता,
हर खुशी भी अधूरी लगती।
मां की मूरत मंदिर जैसी,
जिसमें हर आस्था बसती।

जीवन उसका बच्चों पर वारा,
हर कष्ट को खुद पर संवारा।
मां का आशीष जो सिर चढ़ जाए,
तो हर पथ बन जाए सितारा।

मां की पुकार, प्रेम अपार

मां की पुकार, प्रेम अपार,
उसके जैसा नहीं कोई संसार।
बिन कहे ही सब कुछ समझे,
उसका दिल है सबसे उदार।

सर्दी में खुद ठिठुरे लेकिन,
हमको ओढ़ाए गर्म दुशाला।
गर्मी में वो जलती रहती,
पर हमें देती शीतल छाला।

खुद खाकर सूखी रोटी,
हमको घी-शक्कर खिलाती।
खुद ही सहती हर पीड़ा,
पर हमको हंसना सिखाती।

मां की ममता सागर गहरी,
हर संतान की सबसे प्यारी।
उसके बिना अधूरी दुनिया,
मां ही जीवन की फुलवारी।

मां: ईश्वर का दूसरा रूप

मां ईश्वर का दूसरा रूप,
जिसमें बसता जग का भूप।
उसके बिना अधूरा जीवन,
उसकी ममता सच्चा स्वरूप।

बचपन में जो बांहों में झूलाई,
प्यार भरी थपकी दे सुलाई।
बिन बोले ही सब कुछ समझे,
उसकी ममता सबसे ऊंचाई।

पथरीली राहों में फूल बिछाए,
अपने हिस्से के दुख छुपाए।
हम हंसते रहें हर पल जीवन,
अपनी खुशियां भी हमें लुटाए।

सौ जनम भी मिल जाए मुझको,
मां का कर्ज न चुका सकूंगा।
उसके चरणों में स्वर्ग बसता,
मां की ममता को कैसे कहूं मैं।

मां के बिना अधूरी दुनिया

मां के बिना अधूरी दुनिया,
सपनों में भी लगे पराया।
जिस घर में मां ना रहती,
वहां न प्यार, न सुख की छाया।

उसकी बातें गीत सी लगती,
उसकी ममता पूनम रात।
जिसने हर पल साथ निभाया,
बिन स्वार्थ रखती अपने जज्बात।

खुद जलती, पर राह दिखाती,
हर मुश्किल को सरल बनाती।
खुद रोकर भी हंसना सिखाए,
जीवन को मधुमय कर जाती।

बिन मां के जीवन सूना है,
हर खुशी भी अधूरी लगती।
मां के बिना जग वीरान है,
उसकी दुआ ही जीवन भरती।

मां की गोद, सुकून का एहसास

मां की गोद, सुकून का सागर,
जिसमें मिलता प्यार अनागर।
दुनिया चाहे साथ ना दे,
मां का दामन रहता उजागर।

बचपन में जो बाहों में झूलाई,
नींद सुला मीठी लोरी सुनाई।
गिरने से पहले थाम लिया,
हंसकर अपनी गोद बिछाई।

थक जाऊं जब जीवन पथ पर,
मां का आंचल छांव लगे।
एक नजर उसकी काफी है,
हर दुख मुझसे दूर लगे।

मां से बढ़कर कुछ भी नहीं,
ना धन, ना दौलत, ना सम्मान।
जिस घर में मां की हंसी रहे,
वहां बसते हैं सारे भगवान।

मां की ममता, जीवन का सांचा

मां की ममता, जीवन का सांचा,
उसके बिना सब कुछ है कांचा।
हर दुख अपना पी लेती है,
बच्चों पर ना आने दे आंचा।

सुबह की पूजा, शाम की कहानी,
मां की बातें लगती सुहानी।
हर लम्हा वो साथ निभाए,
उसके जैसा दूजा ना ज्ञानी।

रातों को वो जागी रहती,
हमको देख-देख मुस्काती।
थक जाए जब सारा जग,
मां की गोद हमें बहलाती।

त्याग की मूरत, ममता की खान,
हर जननी का ऊँचा मान।
जिस घर में मां रहती हंसकर,
वहां बसते हैं सारे भगवान।

मां का दिल, सागर से गहरा

मां का दिल, सागर से गहरा,
उसके जैसा नहीं कोई चेहरा।
हर दुख अपना सह लेती है,
बच्चों पर न आए कहर कोई बहरा।

सुख में हंसती, दुख में रोती,
हर पल अपने बच्चे संग होती।
बिन कहे हर दर्द समझती,
मां के बिना दुनिया खोती।

उसकी ममता, छांव घनी है,
प्रेम से भरी उसकी कली है।
ग़म का साया पड़े जो मुझ पर,
मां की दुआ सबसे बनी है।

समय बदले, लोग बदलें,
पर मां की ममता नहीं बदले।
उसके बिना अधूरा जीवन,
मां से ही ये जगत उजाले।

मां की लोरी, स्नेह की डोरी

मां की लोरी, स्नेह की डोरी,
जिसमें बसती प्रेम की होरी।
नींद मेरी आंखों में भर दे,
खुद जागे सारी ही रीति भोरी।

हाथों से वो सहलाती है,
प्यार भरी बात सुनाती है।
सपनों की दुनिया में ले जाकर,
मां मीठी लोरी गाती है।

झूले में जब झुलाती थी,
नन्हीं हंसी खिलाती थी।
छोटे-छोटे हाथ पकड़कर,
मुझे चलना सिखाती थी।

मां की ममता, दुनिया न्यारी,
जिसके आगे दौलत हारी।
उसके बिना अधूरा जीवन,
मां से ही यह सृष्टि सारी।

मां के आंचल में सजी दुनिया

मां के आंचल में सजी दुनिया,
जिसमें बसती प्रेम की गुनिया।
सुख-दुख की वो साथी अपनी,
हर दुःख पीती, हंसी न चुनिया।

आंखों में उसके चांद सा नूर,
शब्दों में बहता प्रेम का नूर।
मां की ममता छांव घनी है,
उससे उजला कोई ना पूर।

बचपन मेरा बाहों में खेला,
पल-पल मां ने साथ संभाला।
गिरने लगूं तो थाम ले मुझको,
उसका हर लम्हा अनमोल प्याला।

त्याग, समर्पण, स्नेह की मूरत,
मां का दिल निर्मल सा सागर।
उसके बिना अधूरी दुनिया,
मां ही जीवन, मां ही आधार।

मां की ममता, अमृत की धारा

मां की ममता, अमृत धारा,
जिसने जीवन रूप संवारा।
निज सुख-दुख सब भूल गई,
बच्चों का जो प्यार पुकारा।

गर्मी में वो छांव बनी है,
सर्दी में वो धूप बनी है।
जीवन के हर कठिन पथ पर,
मां ही मेरी रूप बनी है।

रूठे जब संसार सारा,
मां ने मुझको गले उतारा।
गिरने से पहले थाम लिया,
दर्द मेरा खुद लिया गंवारा।

उसकी नजरें दुआ सरीखी,
शब्दों में बस प्यार ही प्यार।
बिन बोले ही समझे मन की,
जैसे खुद भगवान अवतार।

ऐसी ममता धन्य है सच में,
जिसका कोई मोल नहीं।
मां के चरणों में ही बसता,
सच्चा सुख और शांति वही।

मां: त्याग की मूरत

मां के आंसू, चुप ही रहते,
दर्द सहें पर कुछ ना कहते।
खुद जलकर जो दीप जले,
राह उजाले हर पल बहते।

नींद हमारी, जागी रहती,
सपनों को सच करती जाती।
थाली में खुद कम खा ले,
बच्चों की थाली भरती जाती।

दर्द हमारा सह ना पाती,
मन की पीड़ा स्वयं दबाती।
कभी डांटती, कभी मनाती,
पर हर घड़ी साथ निभाती।

त्याग की मूरत, ममता की खान,
मां ही धरती, मां ही आसमान।
जीवन उसका बच्चों पर वारा,
मां से प्यारा न कोई सहारा।

नमन है ऐसी ममता को,
जो हर दुख हर लेती है।
मां का साया जब तक सिर पर,
दुनिया हंसकर चलती है।

बादल की बात

नभ में उड़ता बादल आया, संग में शीतल छाँव है लाया,
कभी बरसता, कभी गरजता, कभी स्नेह से गले लगाता।

कभी कपासी रूई सा कोमल, कभी लगे वो रौद्र विशाल,
नटखट बन के दौड़ लगाता, कभी छुपता, कभी निकलता।

सावन में घनघोर उमड़कर, धरती पर अमृत बरसाए,
किसान के मन में हरियाली, फसलें नयीं खुशियाँ लाए।

नटखट सा यह इधर उधर है, कभी दूर तो कभी पास,
मनचाहा रुख बदल भी लेता, जैसे कोई नवयुवक खास।

प्रकृति की इस अनमोल धरोहर को, यूँ ही हँसने देना,
इसके आँचल में प्रेम छुपा है, इसे न कभी रुलाना।

बादल की मुस्कान

नील गगन में बादल आया, शीतल छाया साथ में लाया,
कभी बरसता, कभी उमड़ता, नभ में अपना रंग जमाया।

कभी सजीले घुँघरू पहने, बिजली बनकर शोर मचाए,
कभी कपासी चादर ओढ़े, धीरे-धीरे प्यार लुटाए।

धरती माँ की प्यास बुझाने, प्रेम का अमृत छलकाता,
नटखट बालक-सा अठखेली, कभी यहाँ, तो कभी जाता।

पहाड़ों से मिलने जब आता, कोहरे की चादर बिछ जाती,
मस्ती में जब नृत्य दिखाए, हवा संग रास रच जाती।

बादल की यह मधुर मुस्कान, हर मन में उल्लास जगाए,
इसकी निर्मल छवि बचाकर, धरती को स्वर्ग बनाए।

बादल की सरगम

नील गगन में उड़ा चला बादल, संग में लाया जल की हलचल,
कभी बरसकर स्नेह लुटाए, कभी गरजकर धाक जमाए।

नटखट बालक-सा इठलाता, पर्वत की चोटी को छू जाता,
फिर मचलकर नभ में उड़ता, हवा के संग रागिन गुनगुनाता।

सावन में जब झूम के आता, धरती का आँचल हरियाता,
किसान के चेहरे पर हँसी खिली, फसलें मुस्काती, बागन महकती।

कोमल रूई-सा जब दिखता, मन को छूती इसकी रचना,
रंग बदलकर रूप सजाता, कभी गहरा, कभी हल्का।

बादल का यह सुंदर खेल, हर पल नया संदेश सुनाए,
संग जीना सिखलाए हमको, प्रेम की भाषा हमें सिखाए।

प्रकृति का बदलता रूप

सूरज की किरणें चूमें धरा को, दिन में उजियारा छा जाए,
रात हुई तो चाँदनी माँ की, चुपके से लोरी गा जाए।

गर्मी में धरती तपती जाती, नदियाँ सूखें, वृक्ष जलते,
बरखा आई तो बादल घिरकर, झूम-झूम रसधार बरसते।

शीत ऋतु में बर्फ गिरे जब, पर्वत ओढ़े चादर सफ़ेद,
कोहरे की चादर बिछ जाती, हर ओर छा जाता नीरव भेद।

बसंत में बगिया महक उठे, फूल करें फिर रंग-बिखेर,
कोयल गाए मधुर तराने, तितली करे प्रेम का फेर।

हर ऋतु का अलग नज़ारा, हर मौसम का अलग है रूप,
प्रकृति सिखाती एक ही सन्देश, परिवर्तन ही है सृष्टि का स्वरूप

प्रकृति के रंग

कभी धूप की चादर ओढ़े, कभी घटाओं में छुप जाए,
कभी पवन की बंसी बजाए, कभी बवंडर बन घूम जाए।

गर्मी में अग्नि-सी जलती, धरती का कण-कण चटक जाए,
बरखा की पहली फुहार से, तप्त धरा मुस्काए।

शरद में कोहरे की चादर, हरियाली को ढक जाती,
फिर वसंत के आते ही, बगिया फूलों से भर जाती।

कभी नदियाँ शांत बहें, कभी उफान में बह जाएं,
कभी पर्वत स्थिर खड़े, तो कभी चट्टानें ढह जाएं।

हर मौसम का अलग है मिजाज, हर पल नया सिंगार,
प्रकृति सिखाती बस यही, परिवर्तन ही है संसार।

प्रकृति का अनुपम स्वरूप

सूरज की तपिश में तपे धरा,
रात को ओढ़े चाँदनी की धरा।

बरखा की बूंदों से नहाए वन,
नदियाँ कल-कल गीत गाए बन।

पतझड़ में पेड़ पुराने पत्ते छोड़ें,
नवांकुरों की आस में जीवन जोड़े।

बसंत में रंगों की बिछे चादर,
फूलों की महक से भर जाए आँगन।

प्रकृति के बदलते हर रूप में,
जीवन का हर रंग समाया।

कभी कठोर तो कभी कोमल,
प्रकृति ने हर सीख सिखाया।

प्रकृति के बदलते रंग

कभी धूप खिली, कभी छाँव घनी,
कभी तपती लू, कभी शीतल बनी।

गर्मी में धरती जले अंगार,
सावन आए तो छलके प्यार।

शरद में कोहरे की चादर लिपटे,
बसंत में बगिया फूलों से सिमटे।

कभी बर्फ की चादर ओढ़े,
कभी हरियाली बन जाए कोमल गोद।

नदियाँ गाती कभी मीठे गान,
तो कभी उठे उनका प्रचंड तूफान।

हर मौसम का अपना रंग,
प्रकृति सिखाए नित नया ढंग।

बादल की बात

नभ में उड़ता बादल आया, संग में शीतल छाँव है लाया,
कभी बरसता, कभी गरजता, कभी स्नेह से गले लगाता।

कभी कपासी रूई सा कोमल, कभी लगे वो रौद्र विशाल,
नटखट बन के दौड़ लगाता, कभी छुपता, कभी निकलता।

सावन में घनघोर उमड़कर, धरती पर अमृत बरसाए,
किसान के मन में हरियाली, फसलें नयीं खुशियाँ लाए।

नटखट सा यह इधर उधर है, कभी दूर तो कभी पास,
मनचाहा रुख बदल भी लेता, जैसे कोई नवयुवक खास।

प्रकृति की इस अनमोल धरोहर को, यूँ ही हँसने देना,
इसके आँचल में प्रेम छुपा है, इसे न कभी रुलाना।

प्रकृति के बोल

पेड़ खड़े हैं प्रहरी जैसे, छाया सब पर लुटाते,
शीतल मंद पवन के झोंके, प्रेम संदेशा गाते।

नदी हँसती लहरों संग, मीठे सुर में गाए,
झरना जैसे बालक चंचल, उछल-उछल मुस्काए।

सूरज दादा तपकर जग में, उजियारा फैलाते,
रात हुई तो चंदा माँ के, आँचल में हम आते।

फूलों की मुस्कान निराली, रंग-बिरंगी छवि,
तितली संग खेलें ऐसे, जैसे हो कोई सखी।

बादल हैं नटखट किशोर, क्रीड़ा संग बरसें,
धरती माता प्रेम लुटाए, हरियाली में हँसें।

प्रकृति के इस मधुर साज को, सदा सहेज कर रखना,
इसकी गोदी में प्रेम बसा है, चलो इसे निखारें अपना।

बसंत पंचमी

पीत परिधान धरती पहने, आई मधुमास बहार,
सुगंधित पवन बहे मंद-मंद, गूँजे वीणा की झंकार।

सरसों के पीले फूल खिले, मन में उमंग जगाएँ,
कोयल की मीठी तान सुन, हृदय सुमंगल गाएँ।

माँ शारदा का पर्व महान, विद्या का आलोक,
ज्ञान, विवेक, सृजन शक्ति, करें सभी में संयोग।

कलम हमारी तेज बने, सत्य का करें प्रकाश,
साहित्य, कला, संगीत से, जग में फैले उल्लास।

विद्यार्थी करें आराधना, पुस्तक पूजन आज,
माँ की कृपा से सब बनें, उज्ज्वल ज्ञान समाज।

बसंत का यह शुभ अवसर, हर मन में रस घोले,
सरस्वती वंदन संग, डॉ. बी.एल. सैनी शब्द बोले।

बसंत का स्वागत

धरती ने ओढ़ी चादर हरित,
सरसों ने पहनी चूनर पीत।
मंद पवन के मधुर तराने,
ऋतु बसंत का आया गीत।

टेसू के फूल दहक उठे हैं,
कोयल की कुहुक सुहानी है।
भ्रमरों की गूंज, मादक बयार,
प्रकृति की सजी कहानी है।

नव कोंपलें मुस्काती हैं,
फूलों में रस छलकता है।
मौसम में है मादकता ऐसी,
हर मन हर्ष से महकता है।

माँ वीणा वादिनी का वंदन,
ज्ञान-प्रकाश सदा फैले।
डॉ. बी.एल. सैनी की लेखनी से,
बसंत के गीत सदा झरें।

बसंत की बयार

हौले-हौले चली बयार,
आई ऋतु बसंत अपार।
फूलों ने पहनी मुस्कान,
धरती बनी स्वर्णिम द्वार।

सरसों पीली खिली वनों में,
कोयल गाए आम्र-कुंज में।
मधुकर गूंजे मृदु स्वरों में,
प्रकृति सजी नव रंगों में।

टेसू दहके, हवा महके,
हरियाली अंगड़ाई ले।
ऋतुराज के मधुर गीत संग,
उल्लास, प्रेम हर मन खेले।

माँ वीणा वादिनी का वंदन,
ज्ञान की ज्योति जलती रहे।
डॉ. बी.एल. सैनी की लेखनी में,
बसंत की बयार बहती रहे।

बसंत का आगमन

शीतल पवन के संग सुगंध आई,
धरती ने फिर से छवि निखराई।
कोयल की मीठी तान सुनाई,
ऋतुराज बसंत की आहट आई।

सरसों की चूनर लहराने लगी,
टेसू की लौ भी दहकने लगी।
मधुमक्खियाँ गा रहीं गीत प्यारे,
कलियों की महक भी चहकने लगी।

गुंजार करे अब मधुकर गायक,
प्रेम-संदेश लिए बहारें आईं।
नव पल्लव झूमें डाल-डाल पर,
धरती ने हरियाली ओढ़ी नई।

वीणा वादिनी का हो आह्वान,
ज्ञान का दीप सदा जलता रहे।
डॉ. बी.एल. सैनी की वाणी में,
बसंती स्वर सदा खिलता रहे।

बसंत की पूर्व संध्या पर

आई सुगंधित बयार पवन में,
धरती सजी स्वर्णिम चूनर में।
कोयल की कुहुक गूंजे देखो,
मधुकर झूमें नव सुमन में।

सरसों हंसी खेत की बाहों में,
टेसू दहके उपवन द्वार।
पत्तों पर हरियाली नाचे,
मौसम में घुली मधुर फुहार।

वीणा वादिनी आई हंस पर,
ज्ञान की ज्योति जगाने को।
संग में लाया ऋतुराज बसंत,
नव आशा के दीप जलाने को।

ऋतु का यह सुंदर उपहार,
सबके जीवन में रंग भरे।
डॉ. बी.एल. सैनी की लेखनी से,
प्रकृति के गीत सजीव करे।

संत का मधुर संदेश

पीली सरसों खिली धरा पर, ऋतुराज बसंत मुस्काया,
कोयल कूकी आम्र शाख पर, नवजीवन का गीत सुनाया।

हौले-हौले चली बयारें, फूलों में रस घुल जाने दो,
गुंजार करे मधुकर रसिक, रंगों का मौसम आने दो।

नव पल्लव की हरी चूनरी, लहराए खेत-खलिहानों में,
धरती मां के आँचल पर देखो, सजी बसंती थालों में।

वीणा की झंकार गूंजे, सरस्वती वंदन गाएंगे,
ज्ञान, प्रेम, उल्लास के स्वर, दुनिया को हम सिखाएंगे।

ऋतु बसंत का स्वागत करके, मन में नवीन उमंग भरे,
डॉ. बी.एल. सैनी की लेखनी से, प्रेम-प्रकाश सदा बहे।

ऋतुराज का स्वागत

आई मधुर पवन हौले-हौले,
फागुन के रंग घुले नभ में।
कोयल कूके आम्र कुंज में,
सरसों हंसे धरा के तन में।

गुंजन करता भ्रमर सुरीला,
फूलों संग इतराए।
नए पल्लव डालों पर झूमें,
धरती का कण-कण गाए।

सरस्वती का आशीष मिले,
ज्ञान का दीप जले।
स्नेह, प्रेम, उल्लास संग,
हर मन मधुरता से पले।

आओ ऋतुराज का वंदन करें,
बसंती खुशबू फैलाएं।
डॉ. बी.एल. सैनी की लेखनी से,
गीतों के सुमन खिलाएं।

रंगों की रचना

रंगों की रचना आई बसंत संग,
धरती पर बिखरा प्रेम का रंग।
आसमान ने ओढ़ी नीली चादर,
फूलों ने सजी अपनी सुंदर सागर।

लाल गुलाब ने भेजा अपना संदेश,
सरसों ने गाया प्रेम का राग विशेष।
संग-संग बजी कोयल की तान,
जीवन में खिल उठा बसंती मान।

आम्र-मंजरियाँ झूम उठीं साथ,
फूलों के मन में बसी सुखद बात।
हर पत्ते ने किया मुस्कान से स्वागत,
प्रकृति ने रची जीवन की नव रचना।

रंगों से भर गया हर मन का आंगन,
प्रेम, सुख, और उमंगों से लहराए संग।
सुनहरे पल हों, हर मोड़ पे रंग हो,
रंगों की रचना में हो जीवन का ठहराव और भंग हो।

फागुन की बयार

फागुन की बयार आई, रंगों से भर दी,
धरती ने बसंत के गीतों से सज दी।
कोयल ने गाया राग प्रेम का प्यारा,
सुरों में लहराई हवा का मीठा सहारा।

सरसों के खेतों में पीले रंग की माला,
फूलों की मुस्कान ने धरती को संभाला।
तितलियाँ नृत्य करतीं, हर शाख में बजी,
प्रकृति ने खुली, एक नई यात्रा की कड़ी।

हर कली ने खोला अपने मन का द्वार,
आंगन में बिखरे बसंती प्यार।
आम्र-मंजरियाँ खिलीं, महकते पल आए,
हर दिल में प्रेम की सौगात समाए।

फागुन की बयार संग, खुशियाँ लाएँ,
मन में उमंगें हों, जीवन में सुकून समाएँ।
हर रंग में बस जाए, प्रेम का सार,
फागुन की बयार, लाए जीवन का उजियार।

सरस बसंत

सरस बसंत आया, मन को ललचाए,
हर दिल में खुशियाँ, जैसे उभर आए।
धरती ने ओढ़ी हरी चादर नयी,
सपनों में रंगों की बौछार सी बही।

सूरज की किरणों से सोना चमके,
प्रकृति के रंगों में सब कुछ लहराए।
फूलों की गंध से महकता हर स्थान,
सरस बसंत लाया, बहे प्रेम की दीवानी तूफ़ान।

कोयल की कुहुक और भँवरे की मृदु ध्वनि,
संग-संग गूँजते हैं प्रेम के प्यारे सुर।
हर कली ने निखारी अपनी मुस्कान,
जीवन की राहों में बसंत का उपहार बना जहान।

जीवन की धारा में रुमानियत बहे,
सरस बसंत के संग हर क्षण बहकते रहे।
प्यार और सुख की बरसात हो नये,
प्रकृति और जीवन में हों शांति के सबेरे।

सुवासित बसंत

सुवासित बसंत आया, रंगों से सजा,
धरती ने ओढ़ी हरी चूनर, जैसे स्वप्नों का महल बना।
कुहुकती कोयल की तान में, गीत नये रचे गए,
फूलों के बीच महकते पल, जैसे दिलों में सपने पले गए।

सरसों के खेतों में बिखरे सुनहरे आभूषण,
सपनों में लहराए नयनों की तरह मिलते हैं इंद्रधनुष।
तितलियाँ, भँवरे, और हर्षित मन,
संग-संग नृत्य करते हुए बिखेरें आनंद और पुण्य के गुण।

हर पत्ता, हर डाली, बगिया का रूप सजे,
प्रकृति ने रंगीनी से नये अलंकरण को रचे।
झूमती हवाओं में गूंजे प्रीत के राग,
बसंत की छांव में खिलते रिश्तों के भाग।

जिंदगी हो सुवासित, जैसे बसंत का प्यार,
हर दिल में बसंती ताजगी की हो बहार।
सुवासित बसंत लाए प्रेम और शांति की छांव,
प्रकृति में बसा हो सुख, उमंग, और ज्ञान का गांव।

ऋतुराज की बात

ऋतुराज आया, बसंत संग लाया,
सूरज की किरनों से जगमगाया।
धरती पर बिखरी सोने जैसी रेत,
हर कली, हर पत्ता, मुस्कान से सजत।

आम्र-मंजरियाँ बौर से लदीं,
हरियाली ने धरती को रंगीनी सदीं।
वृक्षों ने ओढ़ी हरी चादर नई,
आसमान में ताजगी सी समाई।

नदियाँ भी गाने लगीं मीठे गीत,
हवाओं में लहराया हर दिल का प्रीत।
प्रकृति ने रच दिया प्रेम का रंग,
ऋतुराज आया, बहे सुखद तरंग।

रंगों में सजे जीवन के मेले,
सपने खुले, सभी दिशाएँ जैसे कहें।
प्रकृति की सृष्टि है अनमोल उपहार,
ऋतुराज की बात हर दिल में हो बारंबार।

फूलों की गूँज

बसंत की बयार में गूँज रही,
फूलों की हँसी, रंगों की सजी।
महकती कलियाँ, खिलते गुलाब,
धरा ने ओढ़ी सुवासित आब।

भँवरों की टोली मचलने लगी,
तितलियों की दुनिया सँवरने लगी।
कोयल की कूजन में रस घुल गया,
हर डाली पर नया गीत खुल गया।

सरसों की चूनर लहर-लहराए,
मंजरियों की गंध मन भाए।
फागुन की मस्ती, हवा में खुमार,
बिखरे हैं चारों तरफ बसंती उपहार।

प्रेम, उल्लास, उमंगों की बाजी,
जीवन में भरती मधुर रसभाजी।
फूलों की गूँज में बसा यह संसार,
बसंत का मौसम है सबसे निराला अपार।

कुहुकती कोयल, महकते पल

कोयल की कुहुक में संगीत बसा,
हरियाली ने धरती को प्रेम दिया।
बसंत की बयार में सुगंध घुली,
नव कोपलों में नई उमंग खुली।

सरसों के खेतों में सोना खिला,
तितलियों ने फूलों से प्यार किया।
मधु की धारा मधुपों ने बहाई,
ऋतुराज संग हरियाली मुस्काई।

अमवा की डाली पे बौर लगे,
बगिया में गुंजन के शोर जगे।
प्रेम और सौंदर्य का है ये पल,
कुहुकती कोयल, महकते पल।

मन में उमंगें, हृदय में बहार,
फागुन के रंगों से सजी फुहार।
बसंत का स्वागत करें मुस्कुराकर,
जीवन महकाएँ प्रेम बिखराकर।

बसंत के रंग

बसंत के रंग छाए गगन में,
खुशबू बसी है पवन में।
धरती ने ओढ़ी हरी चूनर,
खेतों में झूमें नव अंकुर।

पीली सरसों हँसने लगी है,
कोयल की तान रस बरसाने लगी है।
आम्र-मंजरियों की मदहोश गंध,
भरती हृदय में नवप्रेम-अनुबंध।

तितलियाँ करतीं मधुर नृत्य,
कलियाँ भी खोलें मन के द्वार।
फागुन की बयार ने छेड़ी तान,
धरती बनी है मधुबन समान।

रंगों से छलकती ऋतु ये बसंत,
प्रकृति के आँचल में फैला आनंद।
प्रेम, उमंग और खुशियों का संग,
हर ओर बिखर गए बसंत के रंग।

माँ

माँ एक नाम नहीं, एक सागर है,
जिसकी गोदी में हर दर्द का इलाज है।
उसकी आँखों में बसी उम्मीदें हैं,
उसके दिल में हर एक ख्वाब साकार है।

उसकी ममता की मूरत में,
दुनिया की सारी खुशियाँ समाई हैं।
जो बिना कहे सब कुछ समझ जाए,
वो माँ ही तो है, जो कभी नहीं थकाई है।

उसकी उँगलियों से प्यार की लोरी,
हर आँसू की स्याही में चुपके से छिपी।
माँ, तुम हो वो धारा, जो जीवन की राह में,
सदा बहती है, हर दर्द को अपने में समेटे हुए।

जब तक साथ हो तुम, कोई ग़म नहीं लगता,
माँ, तुम्हारे बिना जीवन जैसे खाली सा लगता।

ढलते सूरज की कहानी

सूरज धीरे-धीरे ढलता,
सिंदूरी आंचल में जग पलता।
क्षितिज के कोने में सोने सा दमके,
शाम का सूरज मन को बहकाए।

धीमी-धीमी बहती बयार,
चिड़ियों के गीतों का रससार।
दिनभर की हलचल शांत हो जाती,
रात की चादर धीरे-धीरे आती।

धरती थककर सोने को जाती,
नभ में तारों की बारात सजाती।
संध्या का यह मधुर संगीत,
भरता मन में कोमल प्रीत।

इस सुंदर बेला का सम्मान किया,
डॉ. बी.एल. सैनी ने इसे गाया।

संध्याकाल का सुरमई रंग

संध्याकाल का सुरमई रंग,
लेकर आया शांति का संग।
सूरज धीरे-धीरे ढलने लगा,
क्षितिज के आँचल में छिपने लगा।

गगन में बादल सजे गुलाबी,
हवा में घुली शीतल शबाबी।
पंछी घर लौटें चहचहाते,
श्रमिक थके कदम बढ़ाते।

नदियां गुनगुन सुर में बहें,
फूल भी मंद सुगंध कहें।
मंदिरों में आरती गूंजे,
मन में भक्तिभाव संचार पूंजे।

इस संध्या की अनुपम छटा,
हृदय में मधुर भाव रटा।
इस सौंदर्य का गुणगान किया,
डॉ. बी.एल. सैनी ने इसे गाया।

दिन का विदा गीत

सूरज ढलता, दिन मुस्काए,
संध्या का दीपक जगमगाए।
क्षितिज के कोने में रंग बिखेरे,
प्रकृति सजे सुनहरे घेरे।

धीमी-धीमी चलती बयार,
पंछी लौटें, घर का प्यार।
नदियां गाएं मधुर तराने,
शाम सुनाए मीठे फ़साने।

मंदिरों में दीप जलें,
प्रार्थना के स्वर मचलें।
चंद्र किरणें शीतल आएं,
मन के सारे क्लेश मिटाएं।

दिन के इस विदा गीत को,
डॉ. बी.एल. सैनी ने दिया मीत को।

संध्या की वाणी

संध्या आई मधुर सुरों में,
घोल रही है रंग क्षितिज के घूंघट में।
धीमे-धीमे पवन बहे,
सूरज की किरणें मंद रहें।

पंछी लौटें नीड़ के अंदर,
दिनभर के श्रम का थकान मिटाकर।
मंदिर की घंटियां गूंज उठीं,
आरती की लौ संग धूप जली।

नदियां गुनगुन गीत सुनाएं,
तारों संग चंदा मुस्काए।
शीतल चांदनी बिखरी धरा पर,
मन को भाए यह संध्या का सफर।

इस वाणी में छिपी जो बात,
डॉ. बी.एल. सैनी ने किया अभिव्यक्त।

प्रकृति का श्रृंगार

संध्या आई सजी संवरी,
सूरज की किरणें धरा पर बिखरी।
लाल सुनहरी छटा निराली,
जैसे दुल्हन आसमान की सजी मतवाली।

नदियों में पड़ती स्वर्णिम छाया,
हवा सुगंधों का संदेशा लाया।
पंछी लौटे घर को प्यारे,
दिनभर के थके मुसाफिर सारे।

मंदिरों में दीप जगमगाए,
शंखनाद मन को हरषाए।
चंदा आया मुस्कुराते,
तारों के संग मिल झिलमिलाते।

प्रकृति के इस अनुपम श्रृंगार का,
डॉ. बी.एल. सैनी ने किया गुणगान।

संध्या के रंग

संध्या आई रंग बिखराए,
क्षितिज ने सुनहरी चुनर सजाए।
लाल, गुलाबी, केसरी छाया,
सूरज ने अपना रूप लुटाया।

नदियों में ढलती किरणें चमकें,
हवा के झोंके मदमस्त महकें।
पंछी करें घर वापसी की बातें,
दिनभर की थकान संग ले जाते।

मंदिरों में दीप जल रहे,
घंटियों के स्वर गूंज रहे।
आरती का संगीत सुहाना,
मन में भर दे प्रेम पुराना।

इस सुंदर संध्या के हर एक रंग का,
डॉ. बी.एल. सैनी ने किया प्रसंग।

शाम की सरगम

संध्या आई सुर भर लाई,
हवा संग सरगम लहराई।
सूरज ढलते मधुर तराने,
गगन में रंगों के अफसाने।

पंछी लौटे घर की ओर,
गूंजे उनकी मीठी बोल।
नदियां गाएं लोरी प्यारी,
झीलों में लहरें मुस्कारी।

मंदिरों में दीप जले,
आरती के स्वर खिले।
शीतल चंद्रमा जब मुस्काए,
धरती पर अमृत बरसाए।

इस शाम की मधुर तान को,
डॉ. बी.एल. सैनी ने दी पहचान।

ढलती धूप की छटा

धीरे-धीरे ढलती धूप,
क्षितिज पर बिखरे सुनहरे रूप।
लाल-गुलाबी रंगों की छाया,
संध्या ने रूप अनोखा पाया।

पंछी लौटे घर की राह,
गूंज उठी मधुर कराह।
बयार चली मंद-मंद,
दिनभर की थकान को कर दे बंद।

नदियों का जल मोती सा चमके,
चांदनी संग मिलकर दमके।
मंदिरों में शंखनाद बजे,
भक्तों के मन प्रेम से सजे।

इस ढलती धूप की अनुपम छटा,
डॉ. बी.एल. सैनी ने कविता में गढ़ा।

संध्या: एक प्रेरणा

संध्या आई एक संदेशा लाई,
हर दिन की तरह मुस्काई।
ढलते सूरज ने यह सिखाया,
हर अंत में नवप्रभात समाया।

लालिमा से नभ रंगा निराला,
सपनों का इक दीप जला डाला।
पंछी लौटे, दिन भर के थके,
पर आशा के स्वर नहीं रुके।

मंदिरों में आरती गूंजे,
मन में नव चेतना पूंजे।
श्रमिक लौटे घर की ओर,
संघर्षों में खोजें छोर।

संध्या का हर क्षण है सीख,
डॉ. बी.एल. सैनी ने दी इस पर लेख।

संध्या का सौंदर्य

सूरज ढलता क्षितिज किनारे,
संध्या के रंग हो मनमोहक प्यारे।
लालिमा से सजा यह आकाश,
प्रकृति का अनुपम मधुमास।

पंछी लौटें अपनी टोली,
संग लाएं सुकून की बोली।
नदियां बहें शांतिमय धारा,
हर कण में भर दें उजियारा।

शीतल पवन का मृदुल स्पर्श,
जीवन को देता नव उत्कर्ष।
संध्या का सौंदर्य, अनुपम चित्र,
जग को सिखाए शांति का मन्त्र।

प्रकृति के इस अद्भुत रूप का ध्यान,
डॉ. बी.एल. सैनी ने किया गुणगान।

आस्था का कुंभ

चलो आस्था के कुंभ की ओर चलें,
जहाँ भक्ति के सागर में सपने पलें।
जहाँ गंगा की लहरें अमृत बरसाएँ,
हर दिल को नया विश्वास दिलाएँ।

साधुओं का संगम, मंत्रों की ध्वनि,
जहाँ हर क्षण हो दिव्यता की अग्नि।
त्रिवेणी की धारा में डुबकी लगाएँ,
पाप हर धुल जाए, नया जीवन पाएँ।

चलो, उस धरा पर जहां सत्य बसता,
जहाँ प्रेम और करुणा का दीप जलता।
जहाँ हर चेहरा मुस्कान में डूबा,
जहाँ हर मन से मोह का पर्दा छूटा।

आओ कुंभ में जीवन को निखारें,
आत्मा के दीपक को फिर से सवारें।
जहाँ मिलन हो आत्मा और परमात्मा का,
जहाँ दर्शन हो अनंत धाम का।

चलो, इस पुनीत यात्रा का फल पाएँ,
भक्ति, समर्पण से जीवन सजाएँ।
डॉ. बी. एल. सैनी के शब्दों में यह गूँज,
आस्था के कुंभ से भरें जीवन का कुंज।

माँ

( 2 )

माँ एक नाम नहीं, एक सागर है,
जिसकी गोदी में हर दर्द का इलाज है।
उसकी आँखों में बसी उम्मीदें हैं,
उसके दिल में हर एक ख्वाब साकार है।

उसकी ममता की मूरत में,
दुनिया की सारी खुशियाँ समाई हैं।
जो बिना कहे सब कुछ समझ जाए,
वो माँ ही तो है, जो कभी नहीं थकाई है।

उसकी उँगलियों से प्यार की लोरी,
हर आँसू की स्याही में चुपके से छिपी।
माँ, तुम हो वो धारा, जो जीवन की राह में,
सदा बहती है, हर दर्द को अपने में समेटे हुए।

जब तक साथ हो तुम, कोई ग़म नहीं लगता,
माँ, तुम्हारे बिना जीवन जैसे खाली सा लगता।

( 1 )

माँ तेरी ममता का सागर, कितना गहरा, कितना प्यारा,
तेरी गोदी में सिमट जाए, सारा जग ये सारा।

तेरी लोरी में था जादू, तेरी बातों में थी माया,
तेरी आँखों की दुआओं ने, हर काँटा फूल बनाया।

जब भी गिरा, तूने उठाया, आँचल से आंसू पोंछे,
तेरी दुआओं की छाया में, जीवन के हर दुःख छोटे।

भूख लगे तो रोटी पहले, तूने मुझको खिला दी,
खुद चाहे सूखी रह ली, मुझमें खुशियाँ बसा दी।

तेरी छाया जब भी पाऊँ, दुनिया अपनी लगती है,
तेरे बिना ये जीवन माँ, वीरानों सा लगता है।

तेरा प्यार, तेरा त्याग, ये दुनिया समझ न पाएगी,
तेरी ममता के आगे हर, दौलत फीकी पड़ जाएगी।

हे माँ, तुझको नमन करूँ मैं, तेरा हर ऋण भारी है,
तेरे आँचल की ठंडी छाया, जीवन की फुलवारी है।

मौसम के तेवर

कभी नरम तो कभी गरम, मौसम अपने तेवर दिखाता है,
कभी बरसती हैं खुशियां, तो कभी कहर बरपाता है।
धूप की आग में तपते हैं, प्यासे खेत-पहाड़,
फिर बरखा की बूंदों से, हरियाली का हो श्रृंगार।

सर्द हवा के झोंके, जब रूह तक को छूते हैं,
आग के पास बैठकर, अरमान फिर बूते हैं।
गर्मी जब सर चढ़ती है, और पसीने से लथपथ दिन,
छांव और पानी का हर कतरा, बनता है अमूल्य धन।

बादल कभी नाचते हैं, इंद्रधनुष के रंग सजाते हैं,
तो कभी गरज-चमक से, धरती को डराते हैं।
हवाओं के झोंके कभी, मधुर गीत गाते हैं,
तो कभी आंधी बनकर, सब कुछ उड़ा ले जाते हैं।

मौसम के हर तेवर में, छुपा है जीवन का सार,
हर चुनौती में है अवसर, हर दुख में प्यार।
डॉ. बी.एल. सैनी कहें, इन रंगों को पहचानों,
प्रकृति के हर संदेश को, दिल से अपनाओ।

मौसम की अदाएं

कभी चुप, कभी खामोश, कभी जोर से चिल्लाए,
मौसम अपनी अदाओं से, सबको रिझाए।
धूप की गरमी में तपिश का एहसास,
तो कभी बरखा में छुपा, सुकून का विश्वास।

सर्द हवाएं जब बदन को कंपकंपाती हैं,
गुनगुनी धूप की चाह, हर मन में जगाती हैं।
गर्मी के दिन लाए, थकावट का बोझ,
फिर सावन के झोंके, हर दर्द को कर दें खोज।

बादलों की गूंज कभी, प्रेम का गीत सुनाए,
तो कभी बिजली की चमक, दिल को डराए।
कभी हवा में बहार, फूलों को झुलाए,
तो कभी तूफान का वेग, दरख्तों को गिराए।

मौसम की हर अदा, सिखाए जीवन के भेद,
संतुलन और सहनशीलता, जीवन का है राग।
डॉ. बी.एल. सैनी कहें, हर रूप को सराहो,
प्रकृति की इन अदाओं में, जीवन का गीत गाओ।

मौसम का खेल

कभी धूप की चादर बिछाए, कभी छांव का झूला,
मौसम का खेल है ऐसा, जैसे कोई रंगीला।
कभी बारिश की बूंदें, जीवन रस बरसाए,
तो कभी तूफानी हवाएं, डर का गीत सुनाए।

सर्दी की रातें लाए, सितारों की छांव,
पर कंपकंपाती ठंड में, रजाई बने सहाव।
गर्मी जब सिर चढ़कर, सूरज आग बरसाए,
छोटा सा पेड़ भी तब, जन्नत सा नजर आए।

बादलों का मिजाज भी, पल-पल बदलता है,
कभी राग मल्हार, तो कभी रौद्र रचता है।
हवा का स्पर्श कभी, जैसे मां का दुलार,
तो कभी वह बन जाए, विनाश का व्यापार।

प्रकृति के इस खेल में, छिपे हैं गहरे राज,
हर मौसम सिखाता है, जीवन का असली राग।
डॉ. बी.एल. सैनी कहें, इन रंगों को अपनाओ,
मौसम के खेल से, जीने का सबक पाओ।

मौसम की सरगम

कभी गुनगुनी धूप, कभी ठंडी छांव लाती है,
मौसम की सरगम, जीवन में मिठास जगाती है।
कभी सावन के झूले, सपनों को झुलाते हैं,
तो कभी बर्फीली हवाएं, तन-मन को जमाते हैं।

बरखा की रिमझिम, गीत नया सुनाती है,
धरती को हरियाली की चुनरी पहनाती है।
पर जब यही बरसात, सीमा पार कर जाए,
तो बाढ़ का कहर बनकर, सबकुछ बहा ले जाए।

गर्मी की तपिश कभी, सहने को मजबूर करे,
तो सर्दी की सिहरन, कंबल में दस्तक करे।
बसंत का आना, खुशबू के गीत लाता है,
पतझड़ का जाना, जीवन का सत्य सिखाता है।

हर मौसम का मिजाज, अनुभव की झोली भरता है,
कभी हंसाता है, कभी गहन चिंतन करता है।
डॉ. बी.एल. सैनी कहें, इस सरगम को समझो,
मौसम के हर स्वर में, जीवन का राग रचो।

ऋतुओं का चक्र

कभी तपन तो कभी ठंडक, कभी बहारें लाती हैं,
ऋतुओं का यह चक्र, जीवन को रंग दे जाती है।
सूरज की किरनें कभी, धरती को दुलराती हैं,
तो कभी वही आग बनकर, जीवों को जलाती हैं।

सावन की बूंदें जब, खुशियां बिखराती हैं,
हरियाली का जादू, मन को लुभाती हैं।
पर जब ये बादल रौद्र रूप दिखाते हैं,
हर कच्चा सपना, पानी में बह जाते हैं।

पतझड़ का आना, विराम सा लाता है,
बसंत का खिलना, नवजीवन जगाता है।
सर्दी की गुनगुनी धूप, राहत सी देती है,
तो गर्मी की लू, हिम्मत को परखती है।

प्रकृति का यह चक्र, सिखाता है बदलाव,
हर ऋतु में छुपा है, जीवन का प्रभाव।
डॉ. बी.एल. सैनी कहें, ऋतुओं को अपनाओ,
इनके हर पल में, जीवन का अर्थ पाओ।

प्रकृति का मिज़ाज

कभी धूप की मुस्कान, कभी बादल की छांव,
प्रकृति का मिज़ाज सदा, लाता नया भाव।
कभी ठंडी हवा गले लगाती है,
तो कभी आंधी सब कुछ उड़ाती है।

सावन के झूले जब, सपनों को सहलाते हैं,
हरियाली के गीत, धरती को सजाते हैं।
पर जब जलधारा बेकाबू हो जाए,
तो बस्ती के आंसू, सैलाब में बह जाएं।

सर्दी की सिहरन, कोहरे का साम्राज्य,
गर्मी की तपिश में, जलते हर कण का याज्ञ।
बसंत के रंग जब, मन को सहलाते हैं,
पतझड़ के पत्ते जीवन का सत्य सिखाते हैं।

हर मिज़ाज में छुपा, प्रकृति का संदेश,
संतुलन और धैर्य है, जीवन का उपदेश।
डॉ. बी.एल. सैनी कहें, इसे दिल से अपनाओ,
प्रकृति के मिज़ाज में, जीने का पाठ पाओ।

प्रकृति का स्वभाव

कभी कोमल, कभी कठोर, प्रकृति का है स्वभाव,
हर पल बदलते रंग, लाते जीवन में प्रभाव।
धूप की किरणें जब, स्नेह का एहसास कराएं,
तो कभी वही किरणें, तपिश का जाल बिछाएं।

सावन की फुहारें, खुशबू बिखेर जाती हैं,
धरती की प्यास बुझा, हर कली महकाती हैं।
पर कभी यही बारिश, बाढ़ का रूप लेती है,
और मानव की बस्ती, अपने संग बहा लेती है।

सर्द हवाओं का आना, सुकून का पल लाता है,
पर ठिठुरती रातों में, जीवन कांप जाता है।
गर्मी की लहरें जब, आसमान को जलाएं,
हर जीव छांव में, ठंडक का सुख पाए।

प्रकृति का स्वभाव सिखाए, धैर्य और सहनशीलता,
हर रूप में छिपा है, जीवन की सीख का सिलसिला।
डॉ. बी.एल. सैनी कहें, इसे समझो और सराहो,
प्रकृति के हर स्वभाव में, जीवन का मर्म पाओ।

मौसम का रंग

कभी गर्मी की तपिश, कभी सर्दी का शीतल पंख,
मौसम के रंग बदलते, जैसे जीवन के हर रंग।
सावन की रिमझिम, जैसे दिल की बात कहे,
बरसते बादल जब, सुख और दुःख को बहाए।

गर्मी का सूरज जब, जलाता है सारी धरती,
हवा की हलचल से, हर पल मिलता है नया अर्थ।
लेकिन सावन की बूंदें, जैसे हर दर्द को धो डालें,
धरती की प्यास बुझा, नए ख्वाबों को उबालें।

सर्दी की चादर, जब तन को गले लगाए,
ठंडे मौसम में भी, दिल को एक गर्मी भाए।
फिर वसंत के पल, रंगीन हो जाएं सर्दी में,
हर फूल, हर पत्ता, जैसे नया जीवन पाए।

मौसम के रंग बदलते, पर यह सिखाते हैं,
जीवन के हर मोड़ पर, हम कैसे साथ चलें।
डॉ. बी.एल. सैनी कहें, मौसम का यह रंग जानो,
हर मौसम से सीखें, और दिल से अपनाओ।

मौसम की कहानी

कभी धूप खिलखिलाए, तो कभी छांव लहराए,
मौसम की हर कहानी, जीवन का सच बताए।
सर्दी की ठंडी चादर, जब तन को ढक जाती है,
तो गर्म चाय की चुस्की, दिल को बहलाती है।

गर्मी का सूरज जब, आग सा बरसाता है,
हर बगीचे का पत्ता, झुलस सा जाता है।
पर सावन की बूंदें, जब धरती पर गिरती हैं,
हर कोना मुस्काए, हर कली खिलती है।

हवाओं की सरगोशी, कभी प्रेम सुनाती है,
तो कभी आंधी बनकर, सब तहस-नहस कर जाती है।
बादलों का नृत्य कभी, रंगीन बहार लाता है,
तो ओलों का कोप कभी, खेतों को रुलाता है।

मौसम बदलता रहता, यही प्रकृति का खेल,
हर बदलते रंग के संग, जीवन का नया मेल।
सिखाता है ये हमको, सहना और मुस्कुराना,
डॉ. बी.एल. सैनी कहें, इसे दिल से अपनाना।

प्रकृति के रंग

प्रकृति के रंग निराले, हर पल बदलते जाते हैं,
कभी धूप की चादर, तो कभी बादल लहराते हैं।
हवाओं का संगीत कभी, मन को बहलाता है,
तो कभी आंधी का रौद्र रूप, सब कुछ उलट जाता है।

बरसात की बूंदें जब, अमृत बनकर झरती हैं,
तो सूखी धरती की रग-रग, जैसे खिल उठती है।
लेकिन वही बारिश कभी, क्रोध का रूप ले आती है,
नदी, पहाड़ और गांवों को, बर्बादी दिखलाती है।

सर्द हवाएं दस्तक दें, तो कंबल याद आता है,
गर्म चाय का प्याला, सुकून दे जाता है।
गर्मी का जब आलम, आसमान छूने लगे,
तो छांव का कोना, सबसे प्यारा लगे।

प्रकृति के हर रंग में, छुपा गहन संदेश,
संतुलन ही जीवन का, देता सच्चा उपदेश।
कभी तपन, कभी ठंडक, यही इसका मिजाज,
हर बदलते मौसम में, छिपा है अनमोल राज।

इन रंगों को समझें, इन्हें दिल से अपनाएं,
डॉ. बी.एल. सैनी कहते, यही जीवन सिखाएं।

मौसम का मिजाज

मौसम का मिजाज भी, बड़ा निराला होता है,
कभी हंसी की बौछारें, कभी उजाला होता है।
सूरज की तपिश कभी, चुभन सी लाती है,
तो बादलों की छांव, ठंडक दे जाती है।

बरखा की बूंदें जब, धरती पर गिरती हैं,
सोंधी-सोंधी खुशबू, मन को हरती हैं।
पर वही बरसात जब, सीमा लांघ देती है,
तब बाढ़ की सूरत में, तबाही मांग लेती है।

सर्दी की हवाओं में, गर्म चाय सुहाती है,
पर ठिठुरती रातों में, रजाई ही भाती है।
गर्मी का आलम जब, सर पर चढ़ता है,
पंखा-एसी भी तब, राहत न देता है।

मौसम तो सिखाता है, परिवर्तन का पाठ,
कभी कड़ा संघर्ष, तो कभी मस्ती का साथ।
हर मिजाज में छुपा, संदेश नया है,
संतुलन का महत्व, जीवन का दिया है।

प्रकृति के इस खेल को, समझना है जरूरी,
मौसम का बदलना, सृष्टि की मजबूरी।
इसे कोसने की जगह, अपनाएं इसके रंग,
डॉ. बी.एल. सैनी कहें, यही जीवन का संग।

महाकुंभ: सनातन की गाथा

महाकुंभ का मेला, अद्भुत, अपार,
जहां बहती है गंगा की निर्मल धार।
सूरज की किरणें अमृत बन जाएं,
हर डुबकी से जीवन नया पाए।

संत, साधु और ऋषियों की बाणी,
हर दिशा में गूंजे सनातन कहानी।
धूप-ध्यान और मंत्रों का संगीत,
महाकुंभ का उत्सव, हर कण में प्रीत।

संगम का जल, है आस्था की छांव,
पापों को हर ले, दे मोक्ष का भाव।
जहां भक्तों का सैलाब उमड़े,
हर मन में श्रद्धा का दीप जले।

चारों ओर उत्सव, भक्तिमय दृश्य,
महाकुंभ लाता है धर्म का संदेश।
हर जाति, हर वर्ग का होता यहां मेल,
समानता का यह पर्व, अनमोल खेल।

सदियों से चलती यह परंपरा महान,
महाकुंभ से उज्ज्वल होता हिंदुस्तान।
डॉ. बी.एल. सैनी ने गाया यह गान,
महाकुंभ की महिमा रहे सदा जहान।

महाकुंभ का पावन क्षण

अद्भुत प्रकाश है, संगम का तट,
जहां आस्था का बहता है झरना निरंतर।
महाकुंभ का पर्व, सनातन की धारा,
हर कण में बसता है ईश्वर का सहारा।

संतों की साधना, ऋषियों का तप,
संगम की मिट्टी में मोक्ष का स्पर्श।
गंगा, यमुना, सरस्वती का मेल,
यहां खुलते हैं भाग्य के हर एक खेल।

शंखों की ध्वनि, मंत्रों का जाप,
हर डुबकी हर ले जन्मों का पाप।
भक्तों की टोली, भक्ति का प्रवाह,
हर दिशा में बसी ईश्वरीय राह।

चार धामों का संदेश लिए,
महाकुंभ आया जीवन सहेजे।
यहां जाति-धर्म का भेद न कोई,
समानता का दीप जलाए संजोई।

युगों-युगों से चलता यह विधान,
महाकुंभ है भारत की शान।
डॉ. बी.एल. सैनी के शब्दों से जान,
महाकुंभ का पर्व है अनुपम वरदान।

महाकुंभ: आस्था का महापर्व

संगम तट पर उमड़ा भक्तों का सागर,
हर डुबकी में छिपा है मोक्ष का आधार।
गंगा की लहरों का मधुर संगीत,
महाकुंभ का पर्व लाता है नवजीवन की प्रीत।

आकाश गूंजे शंखनाद की ध्वनि,
ऋषियों के मंत्रों से महके धरती की गंध।
चहुँओर बसी भक्ति की पुकार,
महाकुंभ का मेला, अद्भुत और अपार।

साधु-संतों का होता यहां प्रवास,
तप और त्याग का मिलता आभास।
भक्तों के मन में उमड़ती है आस,
पापों का हरता, देता सुख-विश्वास।

जहां धर्म और संस्कृति का संगम है,
हर व्यक्ति के लिए खुला आत्मा का द्वार है।
यहां जाति, पंथ, भेद नहीं ठहरते,
महाकुंभ में सब एक होकर बहते।

सनातन की गाथा सजीव हो उठती,
महाकुंभ की महिमा सदा जीवित रहती।
डॉ. बी.एल. सैनी के शब्दों में यह संदेश,
महाकुंभ है भारत की अद्वितीय विशेष।

महाकुंभ: सनातन की ज्योति

गंगा की गोद में बसा अद्भुत संसार,
महाकुंभ का पर्व है पवित्र त्यौहार।
जहां हर डुबकी जीवन को निखारे,
पाप हरकर पुण्य की राह संवारे।

संतों की टोली, ऋषियों का मेला,
भक्ति का समंदर, विश्वास का रेला।
मंत्रों की गूंज और शंखनाद का स्वर,
महाकुंभ का दृश्य है अनुपम अमर।

सूर्य की किरणें जल पर जब पड़ें,
संगम के तट पर श्रद्धा बढ़े।
धर्म की धारा हर मन को छूती,
आत्मा की प्यास यहां पूर्ण होती।

समानता का संदेश, एकता का नाम,
महाकुंभ का पर्व है भारत का अभिमान।
सदियों से बहती ये संस्कृति की बयार,
हर हृदय में बसाए आध्यात्म का प्यार।

डॉ. बी.एल. सैनी ने किया यह बखान,
महाकुंभ की महिमा रहे सदा जहान।

महाकुंभ: आस्था की गंगा

धरा पर उतरा स्वर्ग का संसार,
महाकुंभ का मेला, पावन त्यौहार।
संगम के तट पर उमड़ा जन-प्रवाह,
हर मन में जागा ईश्वर का ध्येयपथ।

ऋषियों का तप, संतों का वास,
महाकुंभ दिखाए धर्म का प्रकाश।
हर डुबकी से कटते पापों के बंध,
जीवन को मिलती नई पावन गंध।

गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम,
आस्था का अटूट, पवित्र अनुबंधन।
जहां एक ही धारा में बहते हैं लोग,
जाति-पंथ के बंधन यहां होते रोग।

शंखनाद और आरती का स्वर,
हर दिशा में गूंजे मोक्ष का अमर।
भक्ति, श्रद्धा और सेवा का गान,
महाकुंभ बनाता भारत महान।

सदियों से चलता यह पुण्य विधान,
संस्कृति का दीप, सदा रहे प्राणवान।
डॉ. बी.एल. सैनी का यह संदेश महान,
महाकुंभ है धरती का सच्चा वरदान।

गणतंत्र दिवस

तिरंगे की छांव में, देश का अभिमान,
संविधान की शक्ति से, बढ़ा भारत महान।
हर गली, हर गांव में गूँजे जयकार,
जन-जन में उमड़े देशभक्ति का उद्गार।

किसान की मेहनत, सैनिक का बलिदान,
सजाते हैं मिलकर ये भारत का सम्मान।
स्वतंत्रता के स्वप्नों का है यह त्यौहार,
नए सपनों संग बढ़ें, करें साकार।

संविधान ने दी है सबको नई आवाज,
न्याय, समानता, स्वतंत्रता का उजास।
आओ करें वादा, मिलकर कदम बढ़ाएं,
गणतंत्र के पर्व को हृदय से अपनाएं।

मतदाता दिवस: एक पुकार

मतदाता दिवस का आया है पर्व,
लोकतंत्र का यह है अमर स्वर्ण गर्व।
हर नागरिक की इसमें है भूमिका,
वोट से सजेगी भविष्य की जुड़िका।

यह अधिकार तुम्हारा, यह कर्तव्य तुम्हारा,
मतदान है भारत का असली सहारा।
अपना मत सोच-समझ कर डालो,
सच्चे नेता को आगे बढ़ाओ।

जाति-धर्म से ऊपर उठो,
सत्य के साथ अपना मत जुड़ो।
भ्रष्ट नीतियों का अंत करो,
नए भारत का सपना गढ़ो।

हर वोट में छुपा है विकास का दीप,
मतदान से जलाओ यह आशा की चीर।
देश का निर्माण तुम्हारे हाथ,
हर वोट से जुड़ी है भारत की बात।

“चलो साथियों, करें यह प्रण,
लोकतंत्र को बनाएंगे अमर चमन।
डॉ. बी.एल. सैनी की यही पुकार,
जागो मतदाता, बदलो सरकार।”

द साहित्य समूह का आभार

आपका मंच है ज्ञान का सागर,
जहां शब्द बनते हैं उजियागर।
साहित्य की हर गूंज में बसा,
संवेदनाओं का पावन आगर।

लेखनी को दी नई पहचान,
हर कवि को मिला यहां सम्मान।
भावनाओं के इस महासिंधु में,
सजाए सपनों के अनगिन जहान।

आभार आपका, हे साहित्य समूह,
आपने सहेजा हर शब्द रूप।
जहां हर हृदय की आवाज गूंजे,
वहां पनपे सृजन की अनूप धूप।

मेरे हर भाव को आपने अपनाया,
कविता को मंच पर सजाया।
इस परिवार का हिस्सा बनकर,
मैंने भी मान और सम्मान पाया।

आगे भी इसी तरह साथ निभाएं,
साहित्य के दीप सदा जलाएं।
डॉ. बी एल सैनी का यह प्रण,
हर शब्द से बढ़ाएं आपके कद को धन।

बिटिया दिवस पर कविता

बिटिया जीवन की मूरत है,
हर घर की ये सूरत है।
जग में वो ईश्वर का तोहफा,
प्यार से भरी ये दौलत है।

सुनहरी किरणों सी खिलती है,
हर अंधियारे को हरती है।
मां की उम्मीद, पिता का सपना,
हर रिश्ता सहेजती चलती है।

बचपन में गूँजे किलकारी,
यौवन में बन जाए सहारा।
हर पल मुस्काए बिटिया,
वो घर का है सच्चा प्यारा।

संस्कारों की माला पहने,
संस्कृति की पहचान बने।
शिक्षा, स्नेह, और शक्ति से,
सारा जग रोशन कर दे।

हर घर की वो रोशनी हो,
हर दिल की हो धड़कन।
बिटिया दिवस पे करें वंदन,
उससे है सारा जीवन।

नेताजी का आह्वान: संघर्ष से स्वराज तक

नेताजी का आह्वान, संघर्ष से स्वराज तक,
उनकी आंधी ने बदल दिया भारत का प्रत्येक पक्ष।
शक्ति, साहस और समर्पण का था अद्भुत संगम,
उनकी परिकल्पना में था स्वराज का हर कदम।

गुलामी की बेड़ियों को तोड़ दिया,
आजाद हिंद फौज के सपने को साकार किया।
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा,’
उनके शब्दों में था प्रचंड विश्वास का उल्लास।

आओ, हम सभी उनकी राह पर चलें,
स्वराज के सपनों को पूरा करने का संकल्प लें।
नेताजी के आह्वान से प्रेरित हो,
भारत को हम बनाएं शक्तिशाली और अद्वितीय जो।

लोहड़ी का त्यौहार

लोहड़ी आई, खुशियाँ लाई,
संग सर्दी में गर्मी छाई।
मूंगफली, तिल और रेवड़ी संग,
हर आँगन में मने उमंग।

आग की लपटें दें यह संदेश,
मिलकर जिएं, बाँटे प्रेम विशेष।
फसल की महक, मेहनत का मान,
खुशहाली का ये पावन अभियान।

नाचे-गाएँ सब मिलकर यहाँ,
जीवन का उत्सव है लोहड़ी जहाँ।
प्रकृति संग जोड़े हर रसम,
त्यौहार बनाता जीवन मधुरम।

सुख-शांति का दीप जलाएँ,
सामूहिकता से नाता बढ़ाएँ।
डॉ. बी.एल. सैनी की यही पुकार,
लोहड़ी लाए सबके जीवन में बहार।

मकर संक्रांति का पर्व

सूरज का उत्तरायण हुआ,
प्रकृति का नया निदान हुआ।
खुशियों का संदेशा लाए,
मकर संक्रांति का पर्व आए।

तिल और गुड़ का मीठा नाता,
हर दिल में अपनापन लाता।
पतंगों से सजा ये आसमान,
जीवन में भर दे नए अरमान।

खेतों में फसलें झूम रही हैं,
धरती की गोद महक रही है।
सूरज का तेज बढ़ाए प्रकाश,
संक्रांति का पर्व है बेहद खास।

दान-पुण्य का यही तो आधार,
सुख-शांति का पावन त्योहार।
डॉ. बी.एल. सैनी का यही विचार,
संक्रांति लाए सबके जीवन में बहार।

दि साहित्य: हिंदी साहित्य एवं साहित्यकारों के लिए

हिंदी का ये गगन विशाल, शब्दों का है अमर उछाल,
साहित्य के इन रत्नों में, बसा है जग का हर सवाल।

कविताएं गातीं मधुर सुरों में, कहानियां देतीं जीवन-धार,
लेखनी की इस अद्भुत छवि से, जगमग है यह संसार।

यहां तुलसी, सूर, कबीर ने रच दी, मानवता की नई परिभाषा,
प्रेमचंद के अक्षरों ने गढ़ दी, जीवन की सजीव भाषा।

आधुनिकता की इस दौड़ में भी, साहित्यकारों का है स्थान,
लेखन से वो कर रहे सृजन, हर पीढ़ी के लिए महान।

विचारों के इस असीम महासागर में, लहरें उठतीं ज्ञान की,
इनकी लेखनी जगाए चेतना, मिटाए हर अज्ञान की।

साहित्यकारों की ये साधना, है युग-युगों की प्रेरणा,
हिंदी के संग इनकी महिमा, रहे सदा अपरिवर्तना।

डॉ. बी.एल. सैनी का प्रण ये कहे,
“हिंदी साहित्य रहे सदैव अमर, इसके सृजक विश्व में वंदनीय रहे।”

स्वामी विवेकानंद: युवा चेतना के प्रेरणा स्रोत

स्वामी विवेकानंद, तेज का पुंज महान,
युवाओं के हृदय में भरते नव प्रकाश की जान।
जीवन का हर क्षण उन्होंने प्रेरणा में ढाला,
साहस, सादगी और सेवा का पाठ सिखा डाला।

“उठो, जागो, न रुको कभी,”
जगाया हर मन, दिया नई दृष्टि।
धर्म, ज्ञान और कर्म का संगम,
उनके वचनों में बसता भारत का संग्राम।

शिकागो की सभा में गूंजा स्वर,
“भाइयों और बहनों” से जीता हर घर।
संस्कारों का परचम उन्होंने लहराया,
विश्व मंच पर भारत का मान बढ़ाया।

युवाओं को दिखाया कर्तव्य का मार्ग,
बुझती लौ में भरी विश्वास की आग।
आत्मबल, चरित्र और साहस का बल,
स्वामी के जीवन से सीखा सब पल।

युवा दिवस पर संकल्प ये उठाएँ,
स्वामी के विचारों को जीवन में लाएँ।
भारत को फिर ऊँचाई पर ले जाएँ,
हर सपने को मेहनत से साकार बनाएँ।

स्वामी के चरणों में श्रद्धा सजी,
यह रचना है डॉ. बी.एल. सैनी की।

मेरी कलम से
(हास्य रस)

मेरी कलम ने छेड़ा जब, हास्य का कोई गीत,
शब्दों ने किए ठहाके, हुआ माहौल भीम।

कागज़ बोला मुझसे, “थोड़ा धीमे चल,
तेरे चुटकुले भारी, हंसी रोकें कैसे पल?”

स्याही बोली, “साहब, थोड़ा आराम कर,
हंसी के इस झटके में, गिरा दूंगी घरभर।”

पेन ने किया विरोध, बोला, “मैं भी हूं कलाकार,
मेरा भी तो नाम हो, बन जाऊं हंसी का उपहार।”

चश्मा भी हिला सिर, बोला, “मैं भी हूं संग,
तेरी हंसी से कांपते, मेरे शीशे के अंग।”

मैंने कहा, “अरे भाई, यह तो बस शुरुआत है,
हास्य के संग लिखने की, अनूठी यह सौगात है।”

तो ऐसे चलती मेरी कलम, हंसी का करती प्रहार,
जहां भी पढ़े मेरी पंक्तियां, छूटे हंसी के बौछार।

डॉ बीएल सैनी
श्रीमाधोपुर (सीकर) राजस्थान

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