एक बार एक सांप गिरजाघर में चला गया और वहां लोगों ने उसे देखा तो भगदड़ मच गयी। किसी प्रकार से वह अपनी जान बचाकर एक बिल में घुस गया। वह बहुत डर गया था।

एक दिन वह फिर बाहर निकला तो वह एक मस्जिद में घुस गया। लोगों ने जब देखा तो उसे खदेड़ लिया। किसी प्रकार से भागकर वह एक बिल में घुस गया। उसको अब मनुष्य से डर लगने लगा था।

वह वह सोचने लगा कि अब जाऊ तो कहा जाऊं। चारों तरफ मनुष्य ही मनुष्य है।उसे मनुष्य जाति से घृणा हो गई।
उसे भूख सताए जा रही थी। जब पेट की भूख बर्दाश्त नहीं हुई तो वह फिर बाहर निकला। इस बार वह एक मंदिर में चला गया।

वहां देखा कि लोग उसे मारने की जगह दूध पिला रहे हैं और मिष्ठान खिला रहे हैं। वह वहां बहुत खुश हुआ।
उसे समझ में नहीं आ रहा था ऐसा क्यों हो रहा है ?उसे तो मनुष्य जाति से ही घृणा होने लगी थी । मनुष्य वही फिर उसके स्वभाव में इतना अंतर क्यों हैं?

वाह शुभ दिन नाग पंचमी का दिन था। वह भगवान से प्रार्थना करने लगा कि हे प्रभु! ऐसे प्यार मनुष्य इस संपूर्ण विश्व में फैल जाए! सभी सुखी हो! सभी निरोग हो!

इस सृष्टि में सभी जीवो को जीने का अधिकार है। यही कारण है कि हमारी भारतीय संस्कृति में सांप जैसे विषैला जीव को भी पूजा की जाती है।

नाग देवता के आशीर्वचन का ही प्रभाव है कि यह सनातन संस्कृति हजारों वर्षों तक विधर्मियों ने तोड़ने का प्रयास किया फिर भी अक्षुण्ण बनी हुई है।

बोलिए प्रेम से नाग देवता की जय।

यह कहानी काल्पनिक है। वास्तविकता से इसका कोई सम्बंध नहीं है।

सभी देशवासियों को नागपंचमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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