नहीं कोई अपना यहां | Ghazal nahin koi apna yahaan
नहीं कोई अपना यहां
( Nahin koi apna yahaan )
इस जहां में नहीं कोई अपना यहां।
जो नज़र आ रहा वो है सपना यहां।।
दर्द अपना दिलों में छुपा कर सदा।
हर कदम पर पड़ेगा तड़पना यहां।।
साथ किसका करे मतलबी है सभी।
खुद पड़ेगा अकेले ही चलना यहां।।
कल तलक साथ थे आज वो दूर है।
है कठिन शख्स को हर समझना यहां।।
चल पङे ग़र कदम राह उल्टे “कुमार”।
मुश्किलों से भरा फिर संभलना यहां।।
लेखक: * मुनीश कुमार “कुमार “
हिंदी लैक्चरर
रा.वरि.मा. विद्यालय, ढाठरथ