आसमाँ को वही चूम पाया कभी
आसमाँ को वही चूम पाया कभी

आसमाँ को वही चूम पाया कभी

 

आसमाँ को वही चूम पाया कभी।
पांव पीछे न जिसने हटाया कभी।।

 

आज ऐसा ज़माने में कोई नहीं।
बौझ ग़म का न जिसने उठाया कभी।।

 

चैन से रह ना पाया ज़माने में वो।
दिल किसी भी बशर का दुखाया कभी।

 

वो खुशी भी उसे दिल में मिलती नहीं।
खूं पसीना ना जिसने बहाया कभी।।

 

कामयाबी मिली है उसी को यहां।
योजना को सभी से छुपाया कभी।।

 

ग़ैर का क्या है बेशक दगाबाज थे।
रहबरों से बहुत धौखा खाया कभी।।

 

आजमाये सभी वक्त जब भी पङा।
साथ देता ना खुद का भी साया कभी।।

 

बैर तू क्यूं ज़माने भुलाता नहीं।
ख़ाक होगी किसी रोज काया कभी।।

 

जो डराता रहा हर किसी को यहां।
खौफ़ दिल पे उसी के है छाया कभी।।

 

हार पे हार मिलती रही जब हमें।
हौंसला यूं ना फिर भी गँवाया कभी।।

 

मुश्किलें आ गई राह में जो कभी ।
सर ना अपना ये फिरभी झुकाया कभी।।

 

कब उजाला हुआ लाख कौशिश करी।
रौशनी के लिए घर जलाया कभी।।

 

कह ना पाया कभी शे’र गहरे “कुमार”।
मुश्किलों को न जो झेल पाया कभी।।

लेखक: * मुनीश कुमार “कुमार “

हिंदी लैक्चरर
रा.वरि.मा. विद्यालय, ढाठरथ

जींद (हरियाणा)

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