नज़र का तीर जब उनका जिग़र के पार होता है
नज़र का तीर जब उनका जिग़र के पार होता है
नज़र का तीर जब उनका जिग़र के पार होता है।
नहीं तब होश रहता है सभी सुख-चैन खोता है।।
सहे तकलीफ जो पहले है पाते चैन आख़िर में।
जो पहले ऐश करता है सदा आख़िर में रोता है।।
वही मिलता उसे वापिस बशर जो बांटता जग में।
मिलेंगे फूल क्यूं उसको यहां कांटे जो बोता है।।
सुखी रहना है ग़र तुझको न कर उम्मीद दुनिया से।
छुपाले दर्द सीने में तू क्यूं आँखें भिगोता है।।
दुखी होगा भला कैसे समझता जो रज़ा उसकी।
उसी के आसरे फिर चैन की वो नींद सोता है।।
लिखा तकदीर में रब ने “कुमार”होता वही जग में।
नहीं होते कभी पूरे जो दिल सपने सँजोता है।
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