निदा फाजली का उर्दू साहित्य में योगदान | निदा फ़ाज़ली को याद करते हुए कि उर्दू भाषा के विकास की बात   

निदा फाजली का उर्दू साहित्य में योगदान / निदा फ़ाज़ली को याद करते हुए कि उर्दू भाषा के विकास की बात दिनांक 17 अक्टूबर को कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के भाषा एवं कला संकाय के अधीन उर्दू भाषा विभाग में ग़ज़लकार निदा फ़ाज़ली की स्मृति में कार्यक्रम का आयोजन किया गया ।

यह कार्यक्रम उर्दू भाषा के विकास पर केंद्रित था जिसके मुख्य अतिथि मोहम्मद सलीम स्वास्थ्य विभाग चंडीगढ़ व विशिष्ट अतिथि मौलाना सग़ीर अहमद चीनी जामा मस्जिद थानेसर कुरुक्षेत्र, मेहमान के तौर पर अधिष्ठात्री भाषा एवं कला संकाय एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग डाॅ. पुष्पा रानी , पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी डॉ.सुभाषचंद्र , विभागाध्यक्ष पंजाबी डाॅ. कुलदीप सिंह ,पंजाबी विभाग से ही डाॅ. देवेन्द्र बीबीपुरिया, डाॅ.गुरप्रीत सिंह, अनुवाद विभाग से डाॅ. रश्मि प्रभा, संचार कौशल विभाग से डाॅ.वंदना कौल, मेजबान उर्दू विभाग से श्री मनजीत सिंह, संगीत विभाग से डाॅ.पुरषोत्तम मौजूद रहे।

मंच संचालन अनुवाद विभाग की ऋचा व उर्दू भाषा विभाग की छात्रा मुस्कान ने किया।
कार्यक्रम का आगाज विश्वविद्यालय कुलगीत व सरस्वती वंदना से हुई ‌। सभी महानुभावों ने दीप प्रज्वलित किया।

कार्यक्रम की शुरूआत में मोहम्मद सलीम साहब ने बताया कि उर्दू किसी भी मजहब की भाषा नहीं है यह सब की भाषा है। आज भी हम उर्दू भाषा के बहुत से शब्दों का प्रयोग करते हैं हमें मालूम नहीं कि कौन सा शब्द किस भाषा का है।


मौलाना सग़ीर अहमद ने कहा कि उर्दू भाषा संतों, फकीरों,पीरो, पैगम्बरों की रही है। हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तीनों बहन है इनमें किसी भी तरह की भिन्नता नहीं है।एक मां की बेटी हैं ‌।

डाॅ.पुष्पा रानी अधिष्ठात्री भाषा एवं कला संकाय ने कहा कि निदा फ़ाज़ली न केवल एक शायर थे बल्कि वे अपनी ग़ज़लों और नज़्मों में दार्शनिक की भूमिका में भी नजर आते हैं तो कहीं तरक्की पसंद तहरीर की बात करते हैं।

डॉ.सुभाषचंद्र ने कहा कि उर्दू भाषा इंकलाब की भाषा है आजादी के आन्दोलन से जुड़े सभी कार्य उर्दू में हुए हैं। उस समय में सभी शायर, अफसाना निगार, उर्दू भाषा में ही लिखते थे।

डाॅ.कुलदीप सिंह ने कहा कि पंजाबी भाषा से अगर उर्दू भाषा के शब्दों को निकाल दिया जाता है तो फिर भाषा पंजाबी नहीं रहती है ‌हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तीनों बहन है एक गर्भ से उत्पन्न हुई हैं। हरियाणवी संस्कृति में भी उर्दू भाषा का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है।

डाॅ.आर के सूदन ने कहा कि उर्दू भाषा का इस्तेमाल आज भी कचहरी में, पुलिस विभाग में, अदालत में कायम है।

इस मौके पर निदा फ़ाज़ली के साहित्य पर शोधकर्ताओं ने और विद्यार्थियों जुबेर, गुरबचन, यामीन रामलाल,अजय मुस्कान,अलीखान,रवि, मनप्रीत, मलकीत,ममता , जितेन्द्र,प्रिया,सागर, बलजीत ,जयदेव,आदि ने शोध पत्र प्रस्तुत किये।

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