और क्रंदन
और क्रंदन
थकित पग में अथक थिरकन और क्रंदन।
आंसुओं का बरसा सावन और क्रंदन।।
हृदय से उस चुभन की आभास अब तक न गयी।
सिंधु में गोते लगाये प्यास अब तक न गयी ।।
बढ़ रही जाने क्यूं धड़कन और क्रंदन ।
थकित बालक समझ मुझको धूल ने धूलित किया ।।
जो जहां जैसे भी चाहा मुझको अनुकूलित किया ।
उष्णता में इतनी ठिठुरन और क्रंदन।।
जड़वत सा दिखता है चेतन के बाद भी ।
वह भीख मांगता है वेतन के बाद भी ।।
अनपढ़ था पाया रतन धन और क्रंदन ।
चीत्कार असहाय की अब सुन रहा है कौन ।।
सामने लज्जा लुटे पर सब खड़े हैं मौन ।
शेष रस्सी जल गयी न गयी ऐंठन और क्रंदन।।