और क्रंदन

और क्रंदन

और क्रंदन

 

 

थकित पग में अथक थिरकन  और क्रंदन।

आंसुओं का बरसा सावन और क्रंदन।।

 

हृदय से उस चुभन की आभास अब तक न गयी।

सिंधु में गोते लगाये प्यास अब तक न गयी ।।

 

बढ़ रही जाने क्यूं धड़कन और क्रंदन ।

थकित बालक समझ मुझको धूल ने धूलित किया ।।

 

जो जहां जैसे भी चाहा मुझको अनुकूलित किया ।

उष्णता में इतनी ठिठुरन और क्रंदन।।

 

जड़वत सा दिखता है चेतन के बाद भी ।

वह भीख मांगता है वेतन के बाद भी ।।

 

अनपढ़ था पाया रतन धन और क्रंदन ।

चीत्कार असहाय की अब सुन रहा है कौन ।।

 

सामने लज्जा लुटे पर सब खड़े हैं मौन  ।

शेष रस्सी जल गयी न गयी ऐंठन और क्रंदन।।

 

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कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)

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निद्रा

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