तुम मिलकर मुझे तोड़ो मैं तुम सबके लिए अकेला ही काफी हूं।

पहाड़ों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तुम अपना रास्ता निकाल लेते हो कभी सोचा है बरसात में जब काई जमती है और उसमें छोटे-छोटे फूल उगते हैं पूरी प्रकृति एक पहाड़ पर जीवन देने के लिए एकत्रित होती हैं।

उस पहाड़ पर जब पानी गिरता है, धूप की रोशनी पड़ती है तो उसमें उसमें एक साथ कई पौधों का नया जन्म होता है। प्रकृति का नया जन्म होता है। और तुम लोग एक क्षेत्र में रास्ता निकालने के लिए अपने स्वार्थ को जागृत करते हो और अपने नाम और धन कमाने के लिए जो प्रकृति जो हमें अपनी गोद में खिलाती है।

तुम उसकी ही गोद को उजाड़ रहे हो तुम प्रकृति के जीवन को छीन रहे हो । तुम उसी की हत्या कर रहे हो तुम उसी का रास्ता रोक रहे हो अरे बुद्धिजीवियों उन पहाड़ों को तो छोड़ दो उन प्रकृति को तो छोड़ दो। जो हमारी सांसों के लिए बहुत जरूरी है।

तुम कहते हो शहरों में हमारा दम घुटता है हम तो प्रकृति की गोद में खुली हवा में सांस ले रही हैं। तुम अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति को खतरे में डाल रहे हो, समय आने पर वह पहाड़ भी एक नए पौधे को जन्म देता है ।

उत्तर के आंचल में देवी देवताओं का वास है। उत्तराखंड में हरि के द्वारा से लेकर ( हरिद्वार) हिमालय तक उत्तराखंड का कण कण देवी देवताओं की भक्ति में समर्पित है।

तुम अपने स्वार्थ के लिए पहाड़ों से रास्ता तो निकाल लेते हो उन्हीं रास्तों से बाहर के लोग प्रवेश करते हैं और इन्हीं रास्तों से गांव के लोग पलायन करते हैं।

आज भी उत्तराखंड देवभूमि के प्रत्येक व्यक्ति बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं बच्चे रोज संघर्ष करके दूर तक स्कूल जाते हैं आज भी बच्चे कोसो मिल पहाड़ों पर उतरे चढ़ते पढ़ाई के लिए स्कूल जाते है।
कोसो मिल तय कर के इलाज के लिए पैदल जाते हैं।

रोजगार के नाम पर वहां कुछ भी नहीं है। इसीलिए गांव से पलायन हो रहा है। पानी बिजली तो मिला लेकिन पढ़ने के लिए स्कूल इलाज के लिए अस्पताल रोजगार के लिए गांव से दूर।

गांव में पर्यटक घूमने आ सकते हैं तो यहां गांव के स्कूल में अच्छे अध्यापक व अध्यापिका क्यों नहीं? शहर से गांव के अस्पतालों में अच्छे डॉक्टर क्यों नहीं मंगवाए जाते हैं गांव में फलों और अनाज की कोई कमी नहीं है।

खेतों की कोई कमी नहीं जमीन की कोई कमी नहीं लेकिन सुविधा न होने की वजह से लोग अपना घर छोड़कर शहरों में फुटपाथ पर, या फिर किसी दुकान पर, या फिर किसी होटल में, या गाड़ी साफ करते हुए नजर आते हैं क्योंकि उन्हें अच्छी शिक्षा तो मिली नहीं है जैसे शहरों में होती है जैसे शहरों में अच्छे स्कूल है तो वैसे ही अच्छे स्कूल उत्तराखंड में क्यों नहीं ?

शहरों के अध्यापक गांव में पढ़ाने के लिए क्यों नहीं आ सकते हैं हर 3 साल में अध्यापकों को गांव भेजा जाए और गांव के अध्यापकों को बड़े-बड़े शहरों में शिक्षा की नई तकनीकी की प्रशिक्षण के लिए क्यों नहीं भेजा जाता है।

हर 3 साल के लिए शहर के अध्यापकों को गांव में भेजा जाए और गांव के शिक्षकों को शहरों में शिक्षा की नई शिक्षा प्रणाली को सीखने के लिए भेजा जाए।

बड़े-बड़े अस्पतालों का निर्माण करके सुविधाओं के साथ शहरी डॉक्टर को गांव में भेजा जाये तब देखिये शहर और गांव में कोई अंतर नहीं होगा।

पहाड़ों को तोड़कर रास्ता मत बनाइए गांव को कैसे विकसित करना है उसके लिए रास्ता निकालिए। प्रकृति भी बेमिसाल है बरसात,वायु, माटी, सूरज की खिलती धूप, खुला आसमान सब मिलकर प्रकृति को जन्म देते हैं और हम प्रकृति को नष्ट करके अपना ही नुकसान कर रहे हैं हम अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं।

बड़ी बिल्डिंग बनानी है पहाड़ तोड़ दो बड़े घर बनाने हैं जंगल काट दो तुम गांव को भी शहर जैसा बना रहे हो जब तुम्हारा शहर में दम घुटता है, और गांव के पहाड़ पेड़ सब काट दोगी तो तुम कहां सांस लोगे?

लेखिका :- गीता पति ‌(प्रिया)

( दिल्ली )

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