Pakhi ki Rakhi
Pakhi ki Rakhi

पाखी की राखी

( Pakhi ki Rakhi )

 

भाई-बहिन का रिश्ता ये प्यारा प्यारा
इस प्यारे रिश्ते का प्यारा बंधन राखी
खुशियों की अमिट सौगातें उमड़ रही
देखो! कितनी खुश है आज ये पाखी

चार दिन से देख रही, सजीले बाजार
चमकीली राखियाँ, चमकते घर-बार
चाँदी के वर्क से, सजी हुई मिठाइयाँ
पकवानों की खुशबू से महकता द्वार

भोर हुई, उठ कर तैयार हो गयी पाखी
क्योंकि आज उसे भी लानी है ये राखी
मस्त-मौला, चंचला, मस्ती करती रही
खुशियाँ भी आज होती उसकी साकी

चमकीली पन्नियाँ, गुड्डे और गुड़ियाँ
अलग अलग रंगो में सजी है झाँकी
प्यारा भैया,राजा भैया,जाने क्या-क्या
प्यारे शब्दों से सजी हुई सी है राखी

वो देखो! एक प्यारी बच्ची मचल गई
पर एक चॉकलेट से ही वो बहल गई
खरीदी राखी, टॉम एण्ड जेरी वाली
प्यारी सी सूरत पे पाखी फिसल गयी

चूमकर उसे, गले लगा, चॉकलेट दी
राखी खरीदनें में ही बहुत देर कर दी
जल्दी से खरीदी राखी और उपहार
पहुँच ही गयी वो अपनें घर के द्वार

सजाया थाल, रोली चावल साथ लिये
राखी सजाई, साथ में ही उपहार लिये
अपनें भाई को सामने पाकर खिल गयी
एक बरस बाद पाखी भाई से मिल गयी

सेना में है भाई, छुट्टी लेकर आया है
पाखी के लिए ढेरों खुशियाँ लाया है
लगा कर तिलक, अक्षत लगाया है
बढ़ती है कलाई आगे फिर भैया की
राखी का ये धागा मन को लुभाया है

बाँधकर राखी, दे रही भाई को उपहार
भैया लुटाते रहे पाखी पर प्यार अपार
कितना सुखद हो रहा था ये समाँ यहाँ
पाखी के नैनों से बहती खुशियाँ अपार

लो तभी आ गयी वहाँ प्यारी सी नगमा
उसके पीछे दौड़ती आ रही क्रिस्टीना
गगनदीप भी राखी लेकर वहाँ आ रही
भैया को राखी बाँधनें को आतुर हो रही

बोली देश के सैनिक करते सबकी रक्षा
अत: आज से आप हमारे सैनिक-भैया
धर्म मत देखो हमारा, आप हमारे भाई
ये बात कह कर, सारी ही बहनें मुस्काई

प्यारा सा ये त्यौहार, आज यादगार हो गया
पाखी को नयी बहनों का भी साथ मिल गया

 

रचनाकार : कृष्ण कान्त सेन
बाराँ ( राजस्थान )

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