प्रयाग के गौरव : पंडित रमादत्त शुक्ल
प्रयाग की धरती बड़ी पुण्य शीला है। यहां अनेको ऐसी महान विभूतियां हुए हैं जिनका जन्म यहां तो नहीं हुआ परंतु जब वह प्रयागराज की भूमि पर आए तो यही के होकर रह गए।
महाप्राण निराला एवं पंडित रमादत्त शुक्ल ऐसी ही दिव्य महापुरुष है । जिससे प्रयागराज के गौरव की ही वृद्धि होती है । निराला जी ने जहां साहित्य जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी वही पंडित जी ने तंत्र मार्ग के शुद्ध स्वरूप को जन जन तक फैलने के साथ ही कभी इसे व्यावसायिक नहीं बनने दिया।
जहां अनेको लोग तंत्र-मंत्र, ज्योतिष , वास्तु का सहारा लेकर रातों रात मान माया में डूब कर इस विधा को बदनाम करने से नहीं चूकते हैं । वहीं पंडित जी निस्पृह भाव से पिछले 7 दशक से बिना किसी विज्ञापन को स्वीकार किये ‘चंडी’ नामक पत्रिका का सफर प्रकाशन अनवरत रूप से करते आ रहे हैं।
पूज्य पंडित रमादत्त शुक्ल जी का जन्म वैशाख शुक्ल षष्ठी 29 अप्रैल , 1925 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बक्सर नामक ग्राम में हुआ था । आपके पिता पंडित देवी दत्त जी भी साहित्य के बड़े रसिक थे ।जिसका प्रभाव आप पर पड़े बिना नहीं रहा ।
वही मां शिव देवी शुक्ला आदर्श गृहणी थी। वह जगदंबा की साक्षात अवतार थी । जिसके कारण बालक रमा दत्त प्रखर बुद्धि संपन्न थे। वही ममत्व करुणामय स्वभाव के धनी भी रहे । आपने स्नातक एवं स्नातकोत्तर संस्कृत विषय से इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया।
आप शोध कार्य करना चाहते थे , परंतु पिता देवी दत्त के नेत्र कष्ट के कारण पूर्ण नहीं कर सके। धीरे-धीरे उन्हें पूर्ण रूप से दिखना बंद हो गया जिससे उनके साहित्यिक लेखन का कार्य आप संभालने लगे । विश्वविद्यालय के युवा छात्र के रूप में धुआंधार नामक पत्रिका का सफल प्रकाशन करने लगे । इसके साथ ही ‘उपमा’ ‘मधुलिका’ आदि पत्रिकाओं का संपादन किया।
आपने पत्रिकाओं के संपादन के साथ ही आगम ग्रंथों का भाष्य एवं लेखन भी करते रहे। तंत्र नाम सुनते ही जहां हमारे मन में यह विचार कौधने लगते हैं कि तांत्रिक शमशान में रहते होंगे। धूनी रमाए उल्टे सीधे वीभत्स डरावने चेहरे होंगे। वही शुक्ला जी शक्ति के महान साधक होते हुए भी अति सामान्य वेशभूषा में ही रहते थे।
सामान्यतः ऊपरी तौर से देखने पर हम उनकी विशालता को नहीं पहचान सकते थे। लेकिन जैसे-जैसे साधक जिज्ञासु को आपके व्यक्तित्व की गहराई मालूम होती है वह अविभूत हुए बिना नहीं रह सकता।
शुक्ल जी खाने पीने के बहुत शौकीन थे । वृद्धावस्था में डॉक्टर के मना करने के बाद भी आप आइसक्रीम, चाट पकौड़े खाने से बाज नहीं आते थे । घर में भी कुछ ना कुछ बनाने का आर्डर हर समय दिया करते थे।
पहले तो घर के लोग खींझते फिर भी जब बच्चों की तरह जिद पकड़ लेते तो खाने को दे देते । वह सबको बांट देते हैं । उनका यह अमृत प्रसाद खाने का शोभाग्य हमें भी कई बार प्राप्त हुए । सब आज स्मृति शेष बनकर ही रह गई है।
आपने नवरात्र कल्पतरु , मंत्र कोश ,नील तंत्र , काली कल्पतरु , महानिर्वाण तंत्र, गायत्री कल्पतरु , सौंदर्य लहरी, अद्भुत दुर्गा सप्तशती , साधना रहस्य जैसे सैकड़ो ग्रंथो का सफल लेखन एवं भाष्य किया है।आपको हिंदी, अंग्रेजी ,संस्कृत, बांग्ला जैसी भाषाओं पर पूर्ण अधिकार था। आपको फोन की अपेक्षा पत्र लेखन का भी बहुत शौक था ।
पत्र लिखने एवं उसके इंतजार में जो दिव्य प्रेम झलकता था उसे फोन पर बात करने से तुलना नहीं की जा सकती । आपने अपने जीवन में ₹20000 से ज्यादा पत्र लिखें जो कि आज साधकों के लिए वही मार्गदर्शन कर रहे हैं। किसी का पत्र आने के पश्चात आप उसका उत्तर तुरंत देने का प्रयास करते।
सन 1946 में पिताश्री के प्रज्ञा चक्षु होने के बाद सरस्वती पत्रिका का पहले पंडित उमेश चन्द्र मिश्र और जब 1951 में मिश्र जी के दिवंगत होने के बाद सरस्वती का एकाकी संपादन करने लगे। साथ ही चांद ,नई कहानी, युग धर्म पत्रिकाओं का भी अनाम संपादन किया।
श्रम विभाग में जब आपकी नियुक्ति हुई तो वहां भी आपने श्रमजीवी, श्रम सौरभ का सफल संपादन किया। पूज्य पिताजी के जन्म शताब्दी वर्ष 1987 से ‘संपादक के संस्मरण’ का संपादन किया। तंत्र शास्त्र की विशुद्ध पत्रिका चंडी का संपादन तो 1948 से अंतिम समय तक करते रहे। हालांकि उनके पुत्र ऋतशील शर्मा आपका स्वास्थ्य जैसे-जैसे कमजोर होने लगा था संपादन एवं प्रशासन का दायित्व संभालने लगे थे।
शुक्ला जी नियम के इतने पक्के थे कि सायंकाल प्रतिदिन 6:00 बजे होने वाले संकट नाशनी पाठ मे वह एक सेकंड भी देर नहीं करते थे । यहां तक कि मणिपुर वास के अंतिम दिनों तक भी उन नियमों को निभाया। राष्ट्रपिता गांधी जी की जयंती के दूसरे दिन 4 अक्टूबर 2009 को अपने मणिपुर वास किया।
तंत्र सम्राट लाखों साधकों के प्राण प्यारे शुक्ल जी के निधन का समाचार से प्रयागराज ही क्या पूरा देश स्तब्ध रह गया। आज वह हम सबके बीच नहीं है परंतु उनके दिखाए मार्ग हजारों वर्षों तक उनकी गौरव गाथा गाता रहेगा । उनके प्रति हमारी यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी की तंत्र मंत्र, ज्योतिष के नाम पर लोगों को ठगने से बचें जितना भी हो सके सेवा भाव से सहायता करें।
लेखक : योगगुरु धर्मचंद्र
प्रज्ञा योग साधना शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान
सहसो बाई पास ( डाक घर के सामने) प्रयागराज