पर्यावरण संरक्षण | Paryavaran Sanrakshan
पर्यावरण संरक्षण
( Paryavaran Sanrakshan )
एक ग़ज़ल पर्यावरण संरक्षण पर
ज़मी बहुत उदास है इसे हंसाइए ज़रा
मिला के हाथ आईए शजर लगाइए ज़रा
यह धूप रोशनी हवा घिरे हुए हैं गर्द में
फिज़ा से धुंध और ग़र्द को हटाइए ज़रा।
जहां में हो रही बहुत ही आब की कमी अभी
बिला वज़ह न एक बूंद भी बताइए ज़रा।
हरी भरी रहे जमीं खुला खुला हो आसमां
दरख़्त के तले भी दिन कभी बिताइए ज़रा।
धुआं धुआं सा हो रहा जहां का नूर खो रहा
धुआं हटाके सांस को सहल बनाइए जरा।
कभी तो रंग लाएगी मुहिम छिड़ी हुई है जो
फिज़ा संवारने में हाथ तो बढ़ाइए ज़रा।
ये झील ये नदी पहाड़ आज कह रहे सभी
कि कोशिशों से इंकलाब अपने लाइए ज़रा।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )