रोज की तरह सुबह उठकर स्कूल जाने के बदले मैं गहरी नींद में सोया था। उठकर भी क्या करता आज तो सभी बच्चे पिकनिक जो जा रहे थे। तभी माँ ने आकर मुझे उठाया और कहा चिंटू उठ जा पिकनिक जाना है ना!

मैं एक झटके में उठ कर बैठ गया और माँ से पूछा तुमने तो रात को मुझे कहा था कि हमारे पास पैसे नहीं है मैं तुझे पिकनिक नहीं भेज सकती? माँ बोली सही बात है बेटा लेकिन कल तेरे बाबूजी की ज़्यादा कमाई हुई।

उनके सारे फल और सब्जी भी बिक गई और अच्छी आमदनी हुई। इसलिए उन्होंने मुझे तुम्हें यह ₹250 देने के लिए कहा। अब तुम मजे से पिकनिक जा सकते हो।

यह सुनकर, “मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा” और मैं खुशी के मारे अपनी माँ से लिपट गया। तभी बाबूजी कमरे के भीतर आए और मुझसे फिल्मी अंदाज में बोले जा बेटा जा जी ले अपनी ज़िंदगी!

 

 सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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