Poem Kai Uljhane hai Suljhane ko

कई उलझने हैं सुलझाने को | Poem Kai Uljhane hai Suljhane ko

कई उलझने हैं सुलझाने को

( Kai uljhane hai suljhane ko ) 

 

नये रास्ते हैं आगे बढ़ जानेको
सुंदर नजारे दिल मे समानेको

नजर उठती है ठहर जाने को
बेखौफ नदी जैसे बहजाने को

रंजो गम को दबा जाने को
महफूज जगह रुक जाने को

बेपनाह मोहब्बत पा जाने को
नैनों में ख्वाब सजा जाने को

गर्दिश में खुशी ढूंढ लाने को
खुशबू जेहन में बसा लाने को

हिरण चौकड़ी भर लाने को
शीतल चांदनी छुपा लाने को

दीया बाती बन जल जाने को
तितली भंवरा बन मंडराने को

 

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

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