मनजीत सिंह की कविताएँ | Manjit Singh Poetry
दहेज
मेरे बाएं हाथ में पत्नी का
कोमल दाहिना हाथ था,
और मेरे दाहिने हाथ में
सेब जैसी गेंद अर्थात ग्लोब थी
हम लेट नहीं सकते, न बैठ सकते
न खड़े हो सकते, गर्मी और ठंड के संपर्क में, बिना एक लबादे के।
“मैंने दहेज में शराब क्यों दिया?”
मुझे अपने विद्रोही दोस्त से
सलाह लेने दो जो
शिकार करता है मेरा
और तुम्हारे लिए शराब
बनाने वाले की बात
केवल एक भ्रम है
विवेक का दाग
दोस्तों के सामने फीकी पड़ सकते हैं
चलो इस गेंद जैसी
जगह की तलाश करते हैं
मुझे देखने दो कि
मुझे शराब के लिए
क्या बनाना चाहिए
तुम्हारा हाथ मेरे हाथ
से फिसल जाता है,
वातावरण! हिंसक प्रहार
हमें अलग कर देते हैं,
चांदी की एक चमक
मुझे ले जाती है।
“ओ कोमल हवा,
तुम एक विभाजक हो,
मैंने अपना प्रेम खो दिया है,
पत्नी कहाँ है?
उसके बिना खुशी का
कोई आनंद नहीं
चाँद की चाँदनी
, सूरज की रोशनी हो तुम,
घर खजाना लगता है,
सेब और संतरे, गेहूँ
और जौ, अनंत खजाना!”
मुझे तुम्हारी याद आती है
मुझे मेरा प्यार याद आता है
, मुझे मेरा प्रिय याद आता है,
सुगंधित रंगीन फूल मुझे बाधा लगते हैं तुम्हारे बगैर
हालाँकि मैंने अपना दहेज खो दिया है
मेरे पास आँखें और बाहें हैं
मैं पत्नी को ढूँढूँगा
मैं खोई हुई सुंदरता को वापस लाऊँगा
जब हम फिर मिलेंगे तो
मैं शराब की भट्टी में
प्यार का काढ़ा बनाऊँगा,
अंत में मैं खुश हूँ क्योंकि अब मैं परी के बंधन से मुक्त हूँ
इसलिए खुश
बिना दहेज में
खुबसूरती खजाना है
मेरी पत्नी
जीवन
यदि आप अपने जीवन के
उतार-चढ़ाव को
अपने
दिल में रखते हैं, ,
तो आप जीवित रहेंगे।
आप लहरों की तरह बहना सीखेंगे
कभी अन्दर बाहर उपर नीचे रहे
आप जिन्दा है
आप दिल से दिल मिलने वाले
हर पल के लिए
अपनी बाहों को इस खोलेंगे
समझो आप जिन्दा है
दूसरो की बुनियाद पर खड़ा न हो
सबको एक समान समझो
आप जिन्दा हैं
गरीब की सहायता
विकलांग की सहायता
करना है फर्ज
समझो आप जिन्दा है
ज़ायका
जब मैं रसोई से बाहर आया
थोड़ा खुरदरा सिलबट्टा देखा
चटनी बनाकर और प्याज़
थोड़ा पका हुआ प्याज
थोड़ा जल गया प्याज़
थोड़ा अच्छा लगा सुंघकर
आटे से लेपित,
चटनी
जोड़े में बनाया गया रोट
मसालों के साथ तडका किया हुआ
दिल में जोश के साथ
मिट्टी की हांडी में
मिट्टी की खुशबू के साथ
हींग के तड़के की खुशबू
बनाकर
ख़ुशी से झूमना
बहुत गर्म
ताजा
उबलती भावनाएं
किसी तरह मैं बाहर निकला
नवविवाहितों की तरह
शर्मीला और झिझकने वाला
उसने डरते-डरते सेवा की
मेरी तरह
एक तीखी और अजीब कविता
प्रतिक्रिया का इंतजार है
अब इसका स्वाद तो अब दूसरे ही पहचान सकते हैं
आटे से लिपटी चटनी का स्वाद
कितना लज़ीज़
कहा नहीं जा सकता
छठ पूजा
उजाड़ भूमि नई हो गई,
यहां सभी आदमी ठीक हो जाते हैं.
संयम के दिन ख़त्म हो गए
दुनिया की ख़राब स्थिति में सुधार हो रहा है.
वार्षिक बाढ़ ख़त्म हो गई है
प्रजनन क्षमता का आनंद जारी है.
देवताओं ने अपना काम किया है,
राक्षस अपने सम्प्रदायों सहित मर गये।
दुनिया अब एक स्वतंत्र जगह है.
स्वतंत्रता, सौंदर्य और शांति से भरपूर;
पुरुष मनोरंजन के लिए स्वतंत्र रूप से घूमते हैं,
सभी को जल्दबाज़ी में ढूंढ लिया गया।
छठ वैदिक उत्सव हर जगह मौजूद है,
लोग आस्था में बहुत दृढ़ और मजबूत हैं।
सूर्य देव से गर्मी और रोशनी के लिए प्रार्थना करें।
हम आशा करते हैं कि दिन लंबे और उज्ज्वल हों।
चांद से दीदार
रात हो, चाँद हो, परिचित हो सब
फिर से नशा क्यों न किया जाए?
मैंने तुम पर पूरी जिंदगी बिता दी
तुम मेरी अनमोल संपत्ति हो फिर प्यार क्यों न किया जाए?
एक है दुनिया का डर
और प्रेम भी असीम है
क्यों न दुनिया का मुंह मोड़ लिया जाए?
हम ही नहीं रहेंगे तो रोएंगे किसको?
तुम क्या मज़ाक कर रहे हो
क्यों न ये मज़ाक थोड़ा और किया जाए?
मैं दुःख से पत्थर बन गया
क्या आराम, क्या शान्ति
क्या फुरसत में घड़ी हो आप
क्यों न आप जैसे और बनाया जाए?
दान ढल गया है अब तारों में दिखो
दुनिया मतलबी है चांद को छुपा लो
क्यों इस दुनिया का मतलब पूरा किया जाए?
अनकहे लफ्ज़
अगर तुम थोड़ा मुस्कुराते
तो मेरा दिल खुशी से भर गया है
तुम एक मुरझाए हुए फूल की तरह
मैं भी मुरझा गया हूं टूटा गुलाब खिलता है
दिखावटी मुस्कुराहट चेहरा खिल उठता है
स्वप्न का सौन्दर्य का अलंकृत है
उतना जितना पर जमीन पर उतरना
मन आकाश में उड़ता है
सपना हकीकत में छोड़ देता है
और जब वह सो जाता है
यह आपकी यादों की तरह है
वसंत झरने की तरह बहता है
सावन की फुहार, फागुन की मस्ताई
तब होती है जब मेरे पास समय नहीं होता
मुझे आपके लिए बहुत समय मिलता है
मुझे कॉल करो मैं आपसे बातें करना चाहता हूं
मैं तुम्हारे बगैर खोया हुआ महसूस करता हूँ
मुझे बादल की काली घटा जैसा महसूस होता है
तेरी लाल आँखों में रहकर भी लाल नहीं हो रहा
तुम प्यार का एक खूबसूरत एहसास हो मैं तुम्हारे साथ जीना और मरना चाहता हूं
मैं अपना दिल रखता हूँ तुम्हारे लिए मैं तुम्हें एक पत्र लिखना चाहता हूँ
जिसमें सिर्फ और सिर्फ आप का जिक्र हो
मेरी नजर में तुम सबूसे खूबसूरत चेहरा हो, मैं कई जन्मों तक आप पर निर्भर रहना महसूस करता हूं
तुम मेरी आंखों में देखो
आंखें चार करना चाहते हैं सिर्फ दो ही बचती है वो सिर्फ मेरी है
क्या करूं मैं
तुम बताओ।
औरतों का सम्मान
तुम कल थे
आज नहीं हो क्योंकि
इस दुनिया में खलबली मची हुई है
कछ लोग लड़कियों को देख
उनको नोचने की चाहत रखने वाले
मैं आपको बर्दाश्त नहीं कर सकता
तुम आज करो
तो कल आप का नहीं होगा।
तो तुम सिर्फ़ आज हो।
तुम्हारे हाथ में सिर्फ़ “आज” है।
“आज” की कद्र करो।
कल तुम बच्चे थे और सच्चे थे
आज तुम जवान हो
जवानी का घमंड मत कर
लेकिन कल नहीं करोगे
तो तुम्हारी जवानी। सिर्फ़ आज। अपनी जवानी की रक्षा करो
सोचो! ज़िंदगी सिर्फ़ “आज” है।
युवावस्था सिर्फ़ “आज” है।
देखो! इस एक “आज” की ज़िंदगी
और जवानी में हमें खुदा की इबादत और खुदा की खिदमत करनी है।
औरतों को सम्मान देना है
कल के लिए
क्योंकि आज सब खराब है
कल ठीक होगा
सभी इंसान के लिए
सोचो अगर तुम पर बीते
क्या होगा
तुम आज हो
कल नहीं है
सपने
इस दुनिया में मेरे बहुत सपने थे,
जो अपने है वो न घनिष्ठ अपने थे।
आपसदारी ने से अबलह बना दिया,
अपने अजनबियों ने मैं बेगाना बना दिया।
सपने थे मेरे जीवन में फूलवाड़ी बन जाँऊ,
फूल समझ मेरा जीवन तुनुक मिज़ाज बना दिया।
दरवाज़ें पर खड़ा रोज़गार की भीख मांगू ,
समानता समझी न मेरे सपने को ख़राब बना दिया।
सपने मेरे ऊँची उडान भरने को थे,
अपनों ने ही मेरे परो को बेकार बना दिया ।
निपुण था मैं हर काम में बाज़ की तरह,
सपने अपने अपने सपने खाक में मिला दिया।
सपने तब आये जब हाथ सिरहाना बना हो,
जो हाथ अपनो के थे वो हाथ काट बेहाथ बना दिया।
फिदा मुझे पर थे बहुत अपनो ने रास्ता काटा,
सपने बुनना उडान भरना अपना ने शिकवा करा दिया।
नहीं है कोई टूटे सपने पर मरहम लगाने वाले,
मनजीत खान चाहता है कोई मरहम लगाने वाला बना दिया ।
शिक्षक दिवस
“हे ज्ञान के स्रोत,
आपने दिलों को पुनर्जीवित किया है”
क्षेत्र के क्षेत्र में ज्ञान स्वीकार करता है
कि आप वह समुद्र हैं
जिससे हर कोई पानी निकालता है
और आप वह वर्षा हैं
जो प्यासी आत्माओं को सींचती है
और आप में अज्ञान के अंधकार का चेहरा प्रकट होता है
हे ज्ञान के स्रोत,
आपने हृदयों को पुनर्जीवित किया है
इसलिए वे प्रकाश की किरण से पहचाने जाते हैं
आपने निर्णायक रहस्योद्घाटन में एक स्थान प्राप्त किया है
हे वह जिसकी बुद्धि से सपने एक साथ आते हैं
ज्ञान के बगीचों को बारिश से सींचा गया है
क्योंकि आप शहद की तरह हैं
जिससे प्रेम चुसता है
और आप अंधेरी रात में पूर्णिमा की तरह हैं,
तो कितने
आपने धैर्य के साथ एक मार्ग को रोशन किया है जिसका मुकुट जुनून है
आपने अच्छा किया, हे बादल जिसके साथ वफादारी आई
आपने एक ऐसे मन को बचाया है
जो अज्ञान के समुद्र में बहता है
शिक्षक एक सुनहरा खोल है
मोती, माणिक और धागा – मोती से घिरा हुआ
ज्ञान के लिए वह सभी दरवाजों से गुजरा है
लेकिन वह अपने ही दरवाजे पर खड़ा होने को मजबूर है!
हे ज्ञान के साधक,
जो ज्ञान बोया गया है
उसे चुनो प्रकाश के मार्ग पर
इसके रंग अलग-अलग हैं
और अपनी विनम्रता को उस व्यक्ति के प्रति जागरूकता के प्याले में डालो
जिसने तुम्हें एक पत्र दिया,
मेरी जान की कसम, यह एक सम्मान है
हे ज्ञान के साधक, ट्वीट करो
और कलम थाम लो
और गुमराह करने वाली
सेनाओं को आज कांपने दो
और इतिहास के शिखर पर एक महाकाव्य लिखो
इसकी धुनें हमें गाती हैं कि तुम उत्तराधिकारी हो
शिक्षक एक सूरज है जो अंधेरे में चमकता है
और उसकी आत्मा ज्ञान की सुंदरता से आच्छादित है
जब आसमान घूर रहा है तो मैं क्या लिखूं
जब तुम्हारे अंदर का अक्षर ही वर्णन कर रहा है तो मैं क्या कहूं?!
अगर कविता तुम्हें नसें देने के बारे में सोचती
तो उसकी कलाई झुक जाती और क्षतिग्रस्त हो जाती
शिक्षक को उसके गुणों के लिए पुरस्कृत नहीं किया जाता
सिवाय उसके जिसकी प्रशंसा अखबारों में की जाती है!
मां
मां है तो जन्नत है
मां से ही मन्नत है
मां घर का उजाला है
मां ने जन्म दिया
मां ने ही पाला है
मां घर की आन बान और शान है
मां पूरे विश्व में सबसे महान है
मां सुबह है
मां शाम है
मां घर का चिराग है
मां से हम उज्जवल है
मां हम आप की तितली
मां आप फूल है
हम आप की गोद में बैठे हुए
हमेशा प्यार लुटाएगी
मां तेरे हाथों का तकिया
कैसे सजाएं
मैं आज भी रात को सोता हूं
तकिया जो था वो महसूस कर रहा हूं आज
छोटा बच्चा बनकर खूब रोता हूं
मां तू स्वर्ग है
तू जहान है
तुम सर्वशक्तिमान है
मां तू इमानदार है
वफ़ा की प्रतिमूर्ति है
हमारी अन्तर आत्मा है
हमेशा मुसीबत से छुटकारा देने वाली
मां तुम समुद्र की लहर है
तुम फूल हम भंवरें है
तुम बुलबुल हो मां
आपकी माथे पर पड़ी सिकन
हमेशा कामयाबी की कहानी है
मां हमें जनून देती है
समाज से लडने व जुड़ने की ताकत है मां
मेरी मां का चेहरा इतना सुन्दर है
उनके आगे फ़रिश्ते और परियां फीकी हैं
मां तुम धन्य हो
जिसने मुझे जन्म दिया
नेक रस्ते पर चलना सिखाया।
मां तुम मां हो
जन्नत हो।
मजदूर का काम
यह ताजमहल
यह गगनचुंबी इमारतें
यह स्वर्ण मंदिर
यह चाँदी का महल
जब मेरी टूटी हुई छत का
आभार व्यक्त करतें हैं
ये इन चिप्स को चिकना करते हैं
यह रोटी, ये डबल रोटी,बार,ब्रेड
यह पनीर इन आहारों का
जब मेरा भूखा पेट
का मजाक उड़ाते हैं सब लोग
ये बिजली के खंभे
यह हीटर ,एयर कंडीशनर
ये सोफे,बेड ये कुर्सियां
जब मेरे पसीने पर
नफरत का इत्र छिड़कते हैं
यह ट्रक, यह ट्रैक्टर
ये नहरें, ये बांध
इन सड़कों का जो ये पुल बनाते हैं
जब मेरे घायल हाथ
और टूटी हड्डियों तक
उनकी उपेक्षा करते हैं
यह मंदिर, गुरुद्वारा
ये चर्च, मस्जिद,अभयारण्य चारा
यह शिवलिंग संगमरमर का
जब मेरी मेहनत है
रुपये में विनिमय ,
हाथ से गुणा करना
यह पूरी व्यवस्था
जब मेरे कूल्हे सिकुड़ जाते
और छोटी आँखों पर
बेतहाशा हंसता है।
जानिए सच्चाई
मेरा दिल करता है
मैं आत्महत्या कर लूं या करने जा रहा हूं
मेरे बिना
जैसा है वैसा दिखाओ?
कारखाना ( मजदूर वर्ग पर )
सुबह जल्दी से
अपनी बीवी को
कहकर दिन को
भोजन तैयार
कराकर
तब कारखाने
जाकर अपनी
मेहनत करनी
उन मशीनों
पर जो हमेशा
छटपटाती रहती
है
एक अजीब सी
आवाज लेकर
जो कानों को
बहरा
आंखों को
अन्धा
व खड़े रहने
से
पैरों से लंगड़ा
तब दिमाक
भी उसे कारखाने
की तरह
नहीं चलता
नहीं दिमाक में रोशनी
दिमाक के सभी
कल-पुर्जे
कारखाना मालिक
के पास जमा
कई साल
सै
बाद में
कहता है
अब तुम से
काम नहीं होता
न ही मेहनत
के समय पर
पैसे
येें है कारखानों
के हालात
और
आज की व्यवस्था
जो गरीब
तबका
बदलना तो
चाहता है
वही राजनीति
घुस जाती है
उसका नकारे
मे और
घर बैठ जाता
है लंगड़ा, अंधा
व बहरा बन
पूरा परिवार
उसे पागल कहकर
चिड़ाता है
ये कारखानों का
नतीजा।
सोच विचार
समझ मैं नहीं आता
लोगों के कैसे विचार
और कुछ है
इन विचारों में
पूरी दुनिया
समाई हुई है
लेकिन
इस संसार में
अलग-अलग चेहरे हैं
अलग अलग सोच है
अलग-अलग विचार हैं
पता नहीं मुझे
ऐसा क्यों लगता है
सभी के विचार
ज्यादातर के विचार
महिला विरोधी है
महिलाएं जींस पहनती है
महिलाएं टॉप पहनती है
और आजकल प्रचलन की सभी वस्तुएं पहनती है
लेकिन मर्दों की सोच
दिन प्रतिदिन
खराब होती जा रही है
वह कहते हैं
लड़कियों को यह खाना है
लड़कियों को यह पहनना है
लड़कियों को यहां जाना है
मतलब मतलब
सभी के सभी
काम
आज मर्दों के हाथ में है
आज भी वही टाइम है
जो आज से सौ वर्ष पहले था
मुझे लगता है
समाज
बदला तो है
और स्त्रियों या महिलाओं के पक्ष पर नहीं
आज भी वैसे ही सोच रखते हैं
जैसी पहले रखते थे
और पीछा करते हैं
सभी
मर्द उन लड़कियों का
घर से महाविद्यालय
विद्यालय पढ़ने के लिए आते हैं
हर रोज उन्हें प्रताड़ित किया जाता है
पता नहीं
कब मेरे देश की
सोच बदलेगी और आगे बढ़ेगी
महिलाओं का शोषण
आज भी जिंदा है
घरों में, मोहल्ले में
हर जगह
सभी जगह
क्या मेरा देश बदलेगा
बदलेगा यह सोचना…।
आजकल
आजकल सभी जगह मुझे
इंसान दिखाई नहीं देते
यह पता नहीं क्यों
इसके पीछे क्या हाथ है
वही हवस के शिकारी
लड़कियों के पीछे भागते रहते हैं
जैसे इन्होंने कभी लड़कियां देखी नहीं
क्यों ऐसा करते हैं
इस अपने समाज में
मुझे कोई बता तो दे
सोचे की जवान जवान काही हवश करताहै
पर उसके बारे में कैसे सोचे
जिसने दुनिया के कुछ ही साल देखे हैं
तीन या चार साल
वह हवस के पुजारी
तीन-चार साल की लड़की को
भी नहीं बख्स़ते
क्या यही हमारा समाज है
या फिर वह अस्सी साल की
वृद्ध औरत
उसको भी नहीं बख्शते
यह कब तक होता रहेगा
मुझे इस ज़हालत की दुनिया से
कैसे निजात पा सकता हूं
है इसका कोई जवाब
मेरे मन में बहुत सारे सवाल है
वह यह सवाल है
किस जवान लड़का जवान लड़की से
मोहब्बत भी कर सकता है
प्यार प्रेम की बातें भी कर सकता है
उसके साथ रात भी बिता सकता है
पर वह दो व तीन साल की लड़की
अर वो सत्तर अस्सी साल की बुढ़िया
क्या चल रहा है दिमाग में
अपने मुल्क लोगों में
मुझे समझ में नहीं आता
आए दिन
पूरा अखबार
इन समाचारों का भरा रहता है
क्या करें
है कोई इसका जवाब
या फिर समय परिवर्तन है
पता नहीं
मुझे नहीं समझ में आ रहा
क्या बताऊं
मेरे मुल्क के लोगों
अब मैं भी थक गया हूं
सुनते सुनते कहते कहते
पर इसका जवाब नहीं
हर रोज
सुबह से लेकर शाम तक
मेरे दिमाग में
हजारों प्रश्न घूमते हैं
उन प्रश्नों का उत्तर नहीं है
क्या करें
आखिर क्या है इनका जवाब
मुझे बताओ…
इनग्राम
एक लंबी यात्रा के बाद
एक लंबे सपने में
बहुत सी परेशानियां मुझे घेर लेती हैं.
पर नियंत्रण
एकाकी अस्तित्व के लिए
मैं बस अवर्णनीय रूप से जीया हूं।
संचार की आधुनिकता से
सुखद स्थिति
नहीं कह पाने में असमर्थ
कहीं और नहीं जा सकते
हमेशा कहीं और जाओ
विपरीत नहीं चलता
ध्यान भटकाने के क्रम में
जो कोई समस्या नहीं है
मैं जोड़ नहीं सकता
आपकी भावनाएँ बहुत समान हैं।
समय लगभग स्थिर है
मेरी मौजूदगी में ऐसा विरोधाभास
मैं उसकी गति से आहत हूं.’
अभिशाप वेक्टर प्रवाह
इस पतझड़ के समय में
आधे मन की पूरी शक्ति
संग्रह करते रहो
पूरी यात्रा में आधा विस्थापन
हमारी यात्राएँ अलग हैं।
लेकिन सभी यात्रा करते हैं
एक बड़े वृत्त का हिस्सा हैं.
जिसे यह सदी नहीं खोज सकती.
आंतरिक और अतीत
अफवाहें तो यही कहती हैं
चलन में नहीं हूं
लंबी यात्रा
यात्रा के कारण
मैं थकान महसूस कर रही हूँ
विलंबित
हम गहराई तक जाते हैं।
पवित्र पुष्प मालाओं के समूह गान गाते हैं।
फागुन डाल की दिशा में
अपने आप को मेरी उपस्थिति से मुक्त करो
ऋतुएँ जो चूस गईं
मन का स्वाद
जिसमें
तेजी की तरह फीका पड़ गया
नूर का अजीब रंग
हम सपनों का एक जोड़ा खरीदते हैं।
चावल के लिए एक पैसा
यह मन चित्रों की सपनों की फसल के लिए ईंधन है
और उत्तर-औपनिवेशिक राज्य
औसत उदासी
यातना के ठोस से
लुप्त हो जाना
मंच पर कूदने की आवश्यकता है?
लेकिन स्वाद के इस आनंद में
हमने निर्णय किया-
इस नींद से उस नींद तक का सेतु
इस सपने से उस सपने तक का सफर
इस दुःख को इस दुःख से दूर करो।
पुरुष
जब पुरुष शाम को घर लौटता है
वह केवल लौटता नहीं है
महिला के चेहरे पर खुशी
बच्चों के चेहरे पर खुशी
एक आस बन्धी
शाम की रोटी की
जिसके लिए वह
पूरे दिन कमाता है
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )
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