सियासत से बड़ा कोई जालिम नहीं है | Poem on siyasat
सियासत से बड़ा कोई जालिम नहीं है
( Siyasat se bada koi zalim nahi hai )
दूसरों के दर्द को जो अपना समझते हैं,
नमक के बदले वो मरहम ले के चलते हैं
जिंदगी की हर जंग वही लोग जीतते है,
जीते जी जो कभी हार नहीं मानते हैं।
उन्हीं के जिंदगी में जन्नत नसीब है यारों,
बुद्ध की तरह जो अपना स्वभाव रखते हैं।
सियासत से बड़ा कोई जालिम नहीं है,
तोड़ कर टांग बैसाखी दान करते है।
बच कर रहना नागा तुम ऐसे लोगो से ,
जो बने हुए भोजन में जहर सा रहते हैं।
कवि – धीरेंद्र सिंह नागा
(ग्राम -जवई, पोस्ट-तिल्हापुर, जिला- कौशांबी )
उत्तर प्रदेश : Pin-212218
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