वक्त
( Waqt )
( 2 )
वक्त सिखा हि देता है घरौंदे की कारीगरी
झुक जाती है अकड़, भूल जाती है दादागिरी
हो जाते हैं हौसले पस्त, रोज की बदनामी से
टूट जाता है परिवार भी, रोज की मारामारी से
उठता ही नहीं सर कभी, किसी भले के आगे
पुरखे भी रहते सदमे में, इस एक के नाकारी से
हो जाता है जीवन व्यर्थ, हर एक बुरे कर्म से
मिलती नही माफी,शनिदेव करमाधिकारी से
कर्मों का फल हि, परिणाम का ज्मदाता है
हुयी न अंतिम जीत कभी, किसी होशियारी से
देख लो पलटकर पन्ने इतिहास के जितने तुम
मिले हैं दर्द बेशुमार, की गई हर गद्दारी से
( 1 )
ठहरता नही है आया वक्त कभी
ठहर जाती हैं यादें ही इस पल की
मिलते जुलते लोग ही अक्सर हमे
दे जाते हैं सीख आते हुए कल की
अपने ही अपने हों यह जरूरी नहीं
गैर भी हो जाते हैं अपनों से बेहतर
संबंध आपके ही सिद्ध करते हैं इसे
आपकी अपनी सोच है कितनी बेहतर
जरूरतें तो सभी को हैं है किसी से ही
रिश्तों के हद्द की समझदारी चाहिए
बादलों से भले भरा हुआ हो आकाश
बादलों मे पानी भी तो होना चाहिए
वक्त से वक्त का फासला दूर हो भले चाहे
संभलने समझने का वक्त देता है वक्त ही
आकर गया वक्त लौटकर आए या न आए
कल के लिए कल का वक्त भी देता वक्त ही
आप पर है की कल के लिए लेते हैं क्या
वक्त की निगाह मे कोई विशेष नही होता
क्यों किसी को बदलना नही होता
( मुंबई )
यह भी पढ़ें :-