पश्चाताप | Poem paschatap
पश्चाताप
( Paschatap )
पश्चाताप सम्राट अशोक किया, कलिंग युद्ध बाद।
भीषण नरसंहार हुआ, उन्नति मूल्य हो गये बर्बाद।
राम को बनवास भेज, दशरथ ने किया परिताप।
राम राम रटते मर गए, हुआ पुत्र वियोग संताप।
पछतावा फिर होता जब, चिड़िया चुग जाये खेत।
सोना उगले धरती मांँ, मोती निपजे ठंडी बालू रेत।
अफसोस करें कोई फिर, बोलो क्या हो सकता है।
कटु वाणी के तीर चले तो, घाव बढ़ा दे सकता है।
मन में ग्लानि होती, अपनों का व्यवहार देखकर।
बिरले ही होते सह जाते,दिल पे पत्थर रखकर।
पश्चाताप के आंसू बहकर, सारे पापों को धो देते।
मन हल्का हो जाता है, गमगीन नैन हमारे रो लेते।
बहुत ग्लानि होती जब, कोई देशद्रोह दिखलाता।
बड़ा खेद होता जब, कोई रस्ता गलत अपनाता।
मन का संताप मिट जाता, पश्चाताप में घुलकर।
सौहार्द का भाव पनपता, रहे सबसे घुल मिलकर।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )