प्रश्नों के घेरे में | Prashno ke Ghere Mein
प्रश्नों के घेरे में
( Prashno ke Ghere Mein )
हम खड़े हैं प्रश्नों के घेरे में
उत्तर की प्रतीक्षा लिए
कुछ के लापता है कुछ अस्पष्ट
कुछ संदिग्ध हैं कुछ खामोश
कुछ गर्भ में हैं कुछ मर्म में
कुछ के उत्तर होकर भी वह उत्तर नहीं है
प्रश्न भी कुछ सार्थक हैं कुछ निरर्थक
कुछ स्वयं से उपजे हैं और कुछ जनमाये हुए हैं
कुछ संभावना में हैं तो कुछ कल्पना में हैं
चलता ही रहा है प्रश्न और उत्तर का महाभारत जिसमें,
शकुनी जैसे कूटनीतिज्ञ भी हैं
दुर्योधन जैसे मोहरे भी
अर्जुन जैसे योद्धा हैं तो कृष्ण जैसे सलाहकार भी
तो कोई सक्षम होकर भी
धृतराष्ट्र जैसे अंधक बने हुये हैं
प्रश्नों की उपस्थिति सांसों तक ही नहीं
मृत्यु परांत भी यह रहती है जीवित
तर्क कुतर्क, नीचता महानता के परिवेश में
इनकी गतिशीलता बनी ही रहती है
प्रश्नों की लड़ी कभी खत्म नहीं होती
इंसान के बीच आपका व्यक्तित्व कैसा हो
यह आपको ही तय करना है आप आज भी हैं और कल भी आप रहेंगे ही
नाम और काम दोनों की मृत्यु कभी नहीं होती
( मुंबई )
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