Rishtey

माने मनाये रिश्ते

( Mane manaye rishtey )

 

आजकल के माने मनाये रिश्ते हैं
सिर्फ कहने और सुनने के वास्ते
लगाव में रहती नहीं रिश्तो की गरिमा
चंद बातों में ही बदल जाते हैं रास्ते

रहता हक नहीं कोई अधिकार नहीं
मन के भाये तक का ही चलन है सब
हर बात की हाँ मे हां होती रहे केवल
विरोध के जताते ही बदल जाते हैं सब

दिखावे में जी रहे हैं मन के बंधन सारे
अंतर मन के विचार अलग है सबके ही
कोई काम किसी से होना नहीं चाहे है
अपना सर्वश्व ही जताना चाहे है सब ही

रहा ही नहीं मोल कोई यहां अपनेपन का
खून के रिश्तों में ही है भाव बेगानेपन का
तब माने मनाये की बात में वजन कहां
भाव में भक्ति नहीं शब्द से ही भजन कहाँ

समय बिताने का ही जरिया बन गया है
सामने से हटे नहीं और भाव बदल गया है
व्यर्थ है रिश्तो को रिश्ते का नाम देना
जबकि आज है ही नहीं किसी से लेना देना

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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