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प्रतिस्पर्धा | Pratispardha

प्रतिस्पर्धा

( Pratispardha ) 

 

एक स्पर्धा ही तो है
जो ले जाती है मुकाम तक
लक्ष्य के अभाव मे
हर प्रयास सदैव बौना ही रहता है….

कामयाबी की चाहत ही
उभरती है आपने ऊर्जा बनकर
भटकाव के रास्तों से भी
मंजिल ,अपने दिशा का चयन कर ही लेती है…

प्रतिस्पर्धा किसी विशेष एक की ही नही
आपका जीवन तो स्वयं एक प्रतिस्पर्धा है
नींद मे भी भले हों आप
लोगों की निगाहों मे ,दृश्यमान ही रहते हैं..

अनगिनत निगाहें रहती हैं आप पर
हर पल ही रहती है आपकी अजमाइश
हो जाए भले अनदेखी आपसे
आप सदैव तराजू पर ही रहते हैं…

जीत मे जीत जाना ही जीत नही होती
प्रतिद्वंदी की प्रतिद्वंदिता भी स्वीकार हो
पैतरेबाजी से हराकर भी किसी को
आपकी प्रतिस्पर्धा मुक्कम्मल नही होती….

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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