मानव अधिकारों के संरक्षण की आवश्यकता और क्रियान्वयन के उपाय
मानव अधिकारों के संरक्षण की आवश्यकता और क्रियान्वयन के उपाय

निबंध: मानव अधिकारों के संरक्षण की आवश्यकता और क्रियान्वयन के उपाय

(Essay in Hindi on : The need for protection of human rights and measures to be implemented )

भूमिका ( Preface ) :-

मानवाधिकार शब्द भले ही नया लगता है लेकिन इसकी अवधारणा मानव जाति के इतनी ही पुरानी है। मानव शुरू से ही सामाजिक प्राणी रहा है। समाज में रहने के कारण उसके कुछ कर्तव्य है तो उसे कुछ अधिकार भी मिलें है।

समाज द्वारा किसी व्यक्ति को प्रदत्त अधिकार के लिए कर्तव्य बन जाते हैं। समाज के हर प्राणी को जीने का अधिकार है। तो समाज के हर प्राणी का कर्तव्य भी है कि वह उसके जीवन में बाधा न बने।

सामान्य अर्थ में इसे ही आधुनिक मानवाधिकार का प्रारंभिक रूप कहा जाता है। इसे मानवाधिकार के मौलिक अधिकार कहते हैं। मानवाधिकार की मूल अवधारणा “जियो और जीने दो” के मूल मंत्र पर आधारित है।

 मानवाधिकार का अर्थ ( Meaning of human rights ) :-

सामान्यता  मानवाधिकार से तात्पर्य लिंग, धर्म, जाति, संप्रदाय, देश, आर्थिक स्थिति जैसे भेदभाव मूल विचारों को त्याग कर मानव के समुचित विकास संरक्षण व सम्मान पूर्वक जीने का अधिकार प्रदान करना है, जो उसे जन्म से ही मिलता है।

भारतीय संविधान में नीति निर्देशक सिद्धांतों तथा मौलिक अधिकारों में मानवाधिकार को स्थान दिया गया है।

मानवाधिकार की अवधारणा ( Concept of human rights ) :-

मानव विकास की अवधारणा बहुत पुरानी है। इस अवधारणा का विकास सत्ता के निरंकुश उपयोग पर अंकुश लगाना है. 13वीं शताब्दी में राजा और सामंतों के मध्य समझौता हुआ था जिसे मैग्नाकार्टा के नाम से जाना जाता है।

यही मानवाधिकार की पृष्ठभूमि तैयार करने में महत्वपूर्ण रहा है। 1689 में ब्रिटेन की क्रांति में मानवाधिकार की अवधारणा को विस्तृत आधार दिया। इसी के बाद में बिल आफ राइट्स द्वारा व्यक्त की मौलिक स्वतंत्रता को मान्यता दी गई थी।

1776 में अमेरिका की क्रांति हुई जिसमें अमेरिका ब्रिटेन की गुलामी से आजाद हुआ था। 1789 में फ्रांस की क्रांति हुई, जिसका प्रमुख नारा था स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व। जो कि आधुनिक मानव मानव अधिकार को विकसित करने में एक आधार तैयार किया।

वर्तमान मानव अधिकार संबंधी गतिविधियां द्वितीय विश्व युद्ध का परिणाम है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान घटित हुई घटना की भर्त्सना करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने भाषण दिया था जिसमें मनुष्य की मूलभूत सिद्धांतों स्वतंत्रताओं का का उल्लेख किया गया था।

सबसे पहले 1946 में एलोनोर के नेतृत्व में मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया। इसके प्रारूप को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वीकृत करने के साथ ही इसे वैश्विक समुदाय द्वारा मान्यता मिली। साथ ही विभिन्न देशों ने अपने देश के संविधान में इसे स्थान दिया।

10 दिसंबर 1948 को मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा की गई थी इसीलिए इस दिन को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारतीय संविधान में मानवाधिकारों को उच्च स्थान देते हुए उसे मौलिक अधिकार के खंड 3 में स्थान दिया गया साथ ही न्यायपालिका को जिम्मेदारी दी गई कि वह इसकी गारंटी प्रदान करें।

भारत मे मानवाधिकार (Human Rights in India ) :-

भारत में मानवाधिकार मध्य युग के छोटे काल खंडों को छोड़ दिया जाए तो भारत में मानवाधिकार की संस्कृति काफी पुरानी रही है। प्राचीन साहित्य, वैदिक साहित्य, संस्कृति, पाली, प्राकृत साहित्य सभी में मानवाधिकारों को आवश्यक तत्व के रूप में बताया गया है।

प्राचीन कालीन साहित्य में सहस्त्र की भावना के रूप देखने को मिलते हैं, यह चाहे वन्यजीवों के संबंध में हो या फिर पर्यावरण में पाई जाने वाली वनस्पतियों पेड़ों आदि के संबंध में।

वर्तमान युग में संगठित रूप से भारत में नागरिक अधिकार आंदोलन की शुरुआत 1936 में सिविल लिबर्टीज यूनियन के गठन के साथ शुरू हुआ था।

जिसमें जवाहरलाल नेहरू की महत्वपूर्ण भूमिका थी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकार घोषणापत्र जारी किया तब भारत ने भी इस पर हस्ताक्षर किया था।

इसके एक साल पहले ही भारत के संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में मानवाधिकार को मान्यता मिल चुकी थी। भारतीय संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 14 से 32 तक मानवाधिकारों मूल अधिकारों का वर्णन किया गया है।

सरकार द्वारा इन अधिकारों के संरक्षण तथा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित मानवाधिकार संबंधी विषयों का वर्णन है।

भारत में 1993 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अंतर्गत किया गया है।

इसके बाद सभी राज्य में मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ। अधिनियम में मानवाधिकार संबंधी मामलों के त्वरित निपटारे हेतु प्रत्येक जिले के मुख्यालय पर एक मानवाधिकार न्यायालय तथा अधिनियम की धारा 30 के अनुसार न्यायालयों में अभियोजन अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है।

भारतीय समाज में मानवाधिकार का सर्वाधिक हनन गरीब व्यक्तियों और महिलाओं का होता है। बाल श्रमिकों का नियोजन, बंधुआ मजदूर की प्रथा, आदिवासियों का शोषण, बड़े बांध, जलाशय विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में बड़ी संख्या में स्थानीय निवासियों का विस्थापन जंगल और जमीन पर जन सामान के अधिकारों की और स्वीकृति मानवाधिकार का खुला उल्लंघन है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में मानवाधिकार के उल्लंघन से संबंधित अनेक मुकदमा दायर किए जाते हैं जिनमें ज्यादातर केंद्र सरकार या फिर राज्य सरकार के खिलाफ होते हैं।

निष्कर्ष  ( The conclusion ) :-

भारत में मानवाधिकार से जुड़ा परिदृश्य बहुत ज्यादा आशा जनक तो नहीं है। लेकिन इसके दिशा में काम हो रहा है।

इसके परिदृश्य में बदलाव लाने के लिए सामाजिक पृष्ठभूमि में बदलाव लाने के साथ ही लोगों को अपने अधिकारी के अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा। इसके लिए जनता को जागरूक करने की आवश्यकता है।

लेखिका : अर्चना  यादव

यह भी पढ़ें :-

भारत में खाद्य सुरक्षा पर निबंध | Essay In Hindi

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here