
पुरस्कार मिले या तिरस्कार
यथार्थ की धरातल पर
खड़े होकर ,
सच को कर लूँगा स्वीकार
पुरस्कार मिले या तिरस्कार |
ना कभी डगमगाऊंगा ,
कभी नहीं घबराऊंगा ,
झंझावातों से टकराऊंगा ,
मजधारों से हाथ मिलाऊँगा ,
हिम्मत नहीं मैं हारूँगा |
सब कुछ कर लूँगा स्वीकार ,
पुरस्कार मिले या तिरस्कार |
अन्याय नहीं सह पाऊँगा
चाहे मैं टूट जाऊँगा |
करके कुछ मिशाल बनूँगा
दुनिया के लिए मशाल बनूँगा |
धरती मेरी अपनी माँ है
माँ के लिए मैं ढाल बनूँगा |
दुश्मन खातिर तलवार बनूँगा |
सब कुछ कर लूँगा स्वीकार |
पुरस्कार मिले या तिरस्कार |
जाति पाति के झगड़ों से
मजहबी रगड़ो से ,
अपने आपको दूर करूँगा
सबके दिल में प्यार भरूँगा |
मानव बनकर जीऊँगा
मानव बनकर मर जाऊँगा |
सब कुछ कर लूँगा स्वीकार |
पुरस्कार मिले या तिरस्कार !
गीत प्रेम के गाऊँगा
जागूँगा और जगाऊँगा |
द्वार द्वार मैं जाऊँगा
सबको यही बताऊँगा |
ईश्वर है सबका एक
ईश्वर है सबका एक |
फिर , सब कुछ कर लूँगा स्वीकार |
पुरस्कार मिले या तिरस्कार |
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