बेटियों को मजबूर नहीं मजबूत बनाइए
बेटियों को मजबूर नहीं मजबूत बनाइए

बेटियों को मजबूर नहीं मजबूत बनाइए

 

क्या हम वही हैं

जो हमें होना चाहिए  ?

जब हमारे अंदर इंसानियथत ही नहीं

तो क्या हमें जीना चाहिए   ?

 

आज के परिवेश में

इस प्रश्न पर सोचिए और विचारिए  !

बड़ा अहम सवाल है

केवल दांत मत चियारिए !

 

बेटियाँ केवल मेरी और आपकी ही नहीं ,

इस सभ्य समाज की बहुमूल्य धरोहर हैं ,

केवल नारे मत लगाइए

इनको बचाइए |

 

ये हमारी संस्कृति व सभ्यता की ताज हैं ,

मान मर्यादा व माता पिता की लाज हैं ,

ये सदियों से गुलामी के पिंजरे में बंद थीं ,

इन्हें अब कैद मत कीजिये |

 

ये तितलियाँ हैं —-

इन्हें आजाद होकर उड़ने दीजिए  ,

ऊँची -ऊँची उड़ान भरने दीजिए  ,

 

पंख इन्हें मिले हैं

तो इनकी उड़ान में

रूकावट मत बनिए |

 

ये दुनियाँ के हर दुख सहती हैं ,

पर मुंह से कुछ नहीं कहतीं हैं |

अपनी हदों में रहकर

हर काम को करती हैं  |

 

दो परिवारों को जोड़ने में पूल का काम करतीं हैं

दोनों तरफ का भार खुद उठाती हैं |

आप अपने फर्ज़ को निभाइए ,

इन पर रहम मत खाइए |

 

ये अबला नहीं हैं ,

दरिन्दों के लिए बला हैं

सभ्य समाज के लिए सुंदर बाला हैं |

 

अब समय आ गया है ,

जंगली खूंखार भेड़ियों से टकराने का |

उन्हें जड़ से मिटाने का |

 

इसलिए —

बेटियों को मजबूर नहीं ,

मजबूत बनाइए |

 

✒

लेखक :– एम. एस. अंसारी (शिक्षक)

गार्डन रीच रोड़
कोलकाता -24 ( पश्चिम बंगाल )

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