Sabse Garib
Sabse Garib

सरकार की आवास योजना का कार्य पूर्ण हो चुका था। ऐसे में उस व्यक्ति की खोज की जा रही थी जो कि संपूर्ण प्रदेश में सबसे गरीब हो। किस व्यक्ति को सबसे गरीब सिद्ध किया जाए यह कहना मुश्किल था।

और गहराई से जब फाइलों की जांच होने लगी तो ऐसी ऐसी फ़ाइलें मिली की अधिकारियों के होश ठिकाने होने लगे। वह यह सोच भी नहीं पा रहे थे कि आवास के नाम पर गांव में किस प्रकार से जमकर धांधली हुई है। सभी प्रधानों ने उनको ही आवास आवंटित किया जो रसूखदार थे।

गरीबों का तो कोई नाम ही नहीं दिख रहा था। ऐसे में पूरे प्रदेश में एक ऐसा भी गरीब दिखा जिसके परिवार में पूरे सात आवास आवंटित हुए थे। एक ही घर में सात आवास आवंटन कि जब सही से तहकीकात की गई तो पता चला कि वह पूर्व प्रधान था। पूर्व प्रधान और प्रदेश का सबसे गरीब आवास योजना का हकदार अधिकारियों के तो यह गले ही नहीं उतर रहा था कि आखिर क्या किया जाए।

क्या पूर्व प्रधान को प्रदेश का सबसे गरीब व्यक्तियों की लिस्ट में शामिल कर लिया जाए।
सर्वे करने के लिए स्पेशल टीम का गठन किया गया। टीम ने वास्तविकता का जब पता किया तो उसके होश और ठिकाने होने लगे। सर्वे टीम ने देखा कि ऐसी स्थित लगभग प्रत्येक गांव की है।

गांव में वास्तविक रूप से जो सरकारी आवास योजना के अधिकारी व्यक्ति हैं ।वह आज भी बदहाल जिंदगी जी रहे हैं। उसके सर पर आज भी छत नहीं है। वह प्रधान से चिरौरी ही करता रहा और उसका हक कोई और छीन ले गया।

एक गांव के मुसहर जाति के लोगों को जब छप्पर डाले हुए सर्वे करने वालो ने देखा तो उनसे जानना चाह कि उनको सरकार की आवास योजना का लाभ क्यों नहीं मिला।

उसमें से एक व्यक्ति ने कहा, ” का बताई साहेब हमार तो प्रधान जी के दुआरी करत करत चप्पल घिसा गई लेकिन प्रधान जी पसीजेन नाही । हमार लड़का बच्चा देखा अइसे खुले में राहत है। ”
सर्वे टीम को गांव की वास्तविक स्थिति का पता चल चुका था।

बात यह थी कि पूर्व प्रधान जी को प्रदेश का सबसे गरीब व्यक्ति सिद्ध कर सम्मानित किया जाए या नहीं। सबसे अमीर व्यक्ति की बात होती तो कुछ गलीमत थी। यहां तो सबसे गरीब व्यक्ति का चुनाव करना था। फिर जो पूर्व में होता आया है वही हुआ।एक ऐसी महिला जिसका कि पुराना मकान पिछले 7 वर्षों से बरसात से ढह चुका था।

खुद किसी प्रकार से अपने बच्चों के साथ दूसरों के घर में जीवन काट रही थीं। भ्रष्ट प्रधानों एवं अधिकारियों के मिली भगत के कारण जिसे आज तक एक सरकारी मकान नहीं दे सके। उसे सबसे गरीब आवास योजना का हकदार बना दिया।

प्रधान से ले दे कर वास्तविक फाइल बांध कर रख दी। वास्तव में देखा जाए तो समाज में उस व्यक्ति को वास्तविक हक नहीं मिलता है जिसका वह हकदार है। उसका हक तो सदियों से रसूखदार खाए हुए हैं और खाते रहेंगे । सरकारें आती रहेंगी और जाती रहेंगे।

कितनी भी राष्ट्रवादी सरकार आ जाएं लेकिन वास्तविक घोटालेबाजों को कभी भी सलाखों के पीछे नहीं डाल सकती है। राजनेता खुदा मानते हैं कि जो राजकोस से पैसा निकाला जाता है उसका जनता तक पहुंचने के पूर्व ही 90% रसूखदार मंत्री संत्री नेता विधायक प्रधान सभी मिलकर गटक जाते हैं।

यह भ्रष्टाचार ऊपर से लेकर के नीचे तक भारतीय राजनेताओं अधिकारियों के नसों में समाया हुआ है। वह सभी जनता के हकों को खाना प्रसाद समझते हैं। जैसा कि होता आया है और होता रहेगा । कोई जांच टीम बैठाई जाती है।

जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए खूब प्रचार-प्रसार किया जाता है कि सीबीआई जांच हो रही है तो फलाना जांच चल रही है ढिकाना जांच चल रही है। दो चार दिनों तक हो हल्ला होता है। फिर सब शांत हो जाते हैं। जनता भी धीरे-धीरे सब भूल जाती हैं।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

यह भी पढ़ें:-

निकम्मा | Nikamma

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here