मनोज सिंह के उपन्यास "मैं आर्यपुत्र हूँ" पर परिचर्चा

साहित्यिक गतिविधि | मनोज सिंह के उपन्यास “मैं आर्यपुत्र हूँ” पर परिचर्चा

छिंदवाड़ा – साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद की जिला इकाई पाठक मंच बुक क्लब छिंदवाड़ा द्वारा लेखक मनोज सिंह प्रभात लोग प्रकाशन से प्रकाशित उपन्यास मैं आर्यपुत्र हूं पर परिचर्चा कराई गई परिचर्चा के दौरान कृति पर वरिष्ठ पाठकों सहित युवा पाठक ने भी अपने विचार व्यक्त किए !

हरिओम माहोरे छिंदवाड़ा – “मैं आर्यपुत्र हूँ, मनोज सिंह जी के द्वारा लिखित एक बहुत ही सुंदर कृति है, जो विश्व के प्रथम सभ्य मानव समूह की प्रमाणित कथा है,आर्य कौन थे, कब थे, कहाँ बसते थे, कैसे रहते थे ।

इन सभी अनगिनत प्रश्नों के उत्तर की प्रामाणिक कथा है “मैं आर्यपुत्र हूँ” और साथ ही उनके आचरण,भाव,विचार,संस्कार, कर्म, धर्म, वचन, रहन सहन व उनके बौद्धिक विवेक इन सभी विषयों को लेकर इस कृति को रचना और सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग से लेकर अब तक आर्यों के बीच के अंतर को दर्शाने का मनोज जी ने बखूबी बहुत ही महत्वपूर्ण प्रयास किया है।

अतः मनोज सिंह जी द्वारा रचित यह कृति बहुत सुंदर है साथ ही यह हर पाठक के मन को छूने वाली कृति है तथा विश्व के प्रथम सभ्य मानव समूह की प्रमाणिक कथा है।

आर्य कौन थे, कब थे, कहाँ बसते थे, कैसे रहते थे, इन सभी अनगिनत प्रश्नों के उत्तर की प्रामाणिक कथा है “मैं आर्यपुत्र हूँ”।

स्वप्निल गौतम छिंदवाड़ा – “मैं आर्यपुत्र हूँ मनोज सिंह जी के द्वारा लिखित विश्व के प्रथम सभ्य मानव समूह की प्रमाणित कथा आर्यों के रहन सहन व उनके बौद्धिक विवेक व तब से लेकर अब तक के आर्यों के कर्म, वचन,धर्म, संस्कार, विचार, भाव, आचरण, व विवेक के बीच के अन्तर को दर्शाता है।

डॉ .कौशल किशोर श्रीवास्तव छिंदवाड़ा – “मैं आर्यपुत्र हूँ” उपन्यास में व्यापकता का अभाव है इसमें विस्तार की आवश्यकता है फिर भी लेखक ने आर्य संस्कृति से परिचय कराने का अच्छा प्रयास किया है !

साहित्यिक गतिविधि
शशांक दुबे छिंदवाड़ा – मैं कौन हूँ? मेरा अस्तित्व क्या है? मेरे पूर्वज कौन थे? कैसे मैं इस गौरवशाली समाज का हिस्सा बना? ये सब प्रश्न एक आम आदमी के अंतर्मन में बने हुए थे।

प्राचीन वेद पुराण और ग्रंथों से संदर्भ देकर भारतीय जनमानस के इतिहास का अद्भुत वर्णन लेखक ने किया है। संस्कृत भाषा की दुनिया की अन्य भाषाओं पर प्रभाव के संबंध में एक नवीन जानकारी के अलावा भारतीय संस्कृति के पूरे विश्व पर प्रभाव के संबंध में बेहतरीन जानकारियों का संकलन इस पुस्तक में किया गया है ।

आज जो इतिहास हम पाठ्यक्रम में पढ़ रहे हैं तो हमें लगता था कि केवल इतना ही हमारा इतिहास है किन्तु लेखक ने विभिन्न ग्रंथों के सार से प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि हमारा इतिहास केवल कुछ सैकड़ों वर्षों का नहीं है जो हमें पाठयक्रम में पढ़ाया गया है।

इस पुस्तक को पढ़कर मेरा विश्वास और भी मज़बूत हुआ है कि हम विश्व की सबसे गौरवशाली सभ्यता के अंग हैं।जिस प्रकार रामचरित मानस अनेक ग्रंथों का सार है उसी प्रकार ये पुस्तक भी भारतीय इतिहास का एक सच्चा सार तत्व कही जा सकती है।

पाठक मंच केंद्र से जुड़े पाठक शशांक पारसे, नेमीचंद व्योम, अशोक नारंग ने भी कृति को ज्ञानवर्धक बताया !

विशाल शुक्ल
संयोजक
पाठक मंच छिंदवाड़ा

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