‘संवेदनाओं के साक्ष्य’ काव्य संग्रह की समीक्षा
जीवन के विभिन्न पहलुओं और सामाजिक रिश्तों के दायरों में बंधी कवयित्री कल्पना भार्गव ‘देशना’ की काव्य कृति ‘संवेदनाओं के साक्ष्य’ मन के आंतरिक भावों में समाहित कृति है। उनकी प्रत्येक रचना की पंक्तियों में सामाजिक चेतना, देश के प्रति प्रेम, समर्पण एवं अध्यात्म, भारतीय संस्कृति से जुड़े तीज-त्यौहारों के दर्शन स्पष्ट दिखलाई देते है।
जैसा कि कवयित्री ने स्वयं के बारे में लिखा है कि एक विज्ञान की छात्रा होते हुए हिन्दी के प्रति उनका लगाव रहा है और अपने पारिवारिक दायित्वों के मध्य भी वे अपना सृजन करती रहीं हैं। ये उन महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गईं हैं, जो स्वयं अपनी परिधि, दिनचर्या और पारिवारिक माहौल को उलाहना देती हैं, और उससे बाहर निकलना ही नहीं चाहती हैं।
सम्पूर्ण कृति में कवयित्री का यही दृष्टिकोण रहा है, वे अपनी स्वयं की संवेदनाओं के साथ ऐसी महिलाओं में जागरूकता लाने का हर संभव प्रयास करती दिखलाई दी हैं।
कवयित्री ने अपने काव्य संग्रह के शीर्षक को चुना भी ऐसा है, जो उनकी रचना कृति में भावों, मनोभावों, सूक्ष्म से सूक्ष्म संवेदनाओं के तन्तुओं को जोड़ता एवं अभिव्यक्त करता है। दृष्टिगत करे एवं विभाजित करें तो सम्पूर्ण संग्रह 9 खंडों में विभाजित है, जिसमें गुरुवंदना, सामाजिक चेतना, देशभक्ति, उत्सवोंउल्लास, भावों की रंगोली, गजल, दोहे, हाइकू कविताएं एवं क्षणिकाएं शामिल है।
कल्पनाजी ने बहुत सहज, कोमल शब्दों के साथ अपनी रचनाओं को पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है। सामाजिक कुप्रथाओं से लेकर लैंगिक असमानता तक में वे अपनी कविताओं के द्वारा स्त्रियों के अंदर जागरुकता लाने का प्रयासरत रहीं है।
उनकी कविता ‘तेरा अस्तित्व है खतरों में’ की पंक्तियों को देंखे तो यह स्पष्ट नजर आयेगा–
‘अपनी क्षमता को पहचानों,
और खुद से प्यार करो,
अस्तित्व की रक्षा करने हित,
तुम खुद को तैयार करो।’
‘संवेदनाओं के साक्ष्य’ काव्य संग्रह का प्रारंभ गुरुवंदना के साथ किया है, आवश्यक भी है जीवन को सही दिशा-दर्शन देने के लिए एक गुरू की आवश्यकता होती है, वरना इहलोक तो क्या परलोक तक मानव, मानव मन भटकता रहता है। यहीं से उनकी लेखनी का पता चलता है, और वे ‘बिन गुरू ज्ञान, कहाँ से पाऊँ’ पंक्ति को चरितार्थ करती हैं।
कवयित्री ने समाज के हर दृष्टिकोण को अपनाया है। कोरोना काल पर लिखी रचना हो या एड्स जागृति पर, माँ पर लिखी हो या बेटी पर, यहाँ तक कि उन्होंने अपनी समधन की सेवा निवृत्ति पर भी कविता लिखी है, जो कि उनके उदार व्यक्तित्व को उजागर करती है। कवि वही सफल है जिसके लेखन से किसी का जीवन संवर जाये, कल्पनाजी ने यह कार्य अपनी कलम से कर दिखाया है।
उन्होंने बिछुड़े परिवारों-पति-पत्नी और उनके बच्चों को मिलवाया है , जो कभी न साथ रहने की कसमें खा बैठे थे। यह उनकी कलम का जादू है। देशभक्ति पर कवितायें हो, या नव वर्ष, तीज-त्यौहार पर लिखी हो, होली के गीत, फाग, तीजों पर पैरोडी, सावन के महीने पर लिखी पैरोडी, यहाँ तक कि भोजपुरी, ब्रज जैसी बोलियों पर भी कवितायें लिखी हो, उन्होंने बहुत ही सीधे, सरल शब्दों में अपने भावों को लोगों तक पहुँचाया है।
हिन्दी दिवस से लेकर लोरी तक, ये सारी अभिव्यक्तियाँ उनके काव्य संग्रह में आपको देखने एवं पढ़ने को मिलेंगी। जल संचय, महंगाई आदि पर तो उन्होंने गजलें तक लिख डाली है। हाइकू कविताओं को लिखना सरल नही है, कवयित्री ने उस विधा में भी काव्य सृजन किया है। उनकी एक हाइकू कविता को देखिए–
‘अशिक्षा भगाओ,
पढ़ते जाओ,
अशिक्षा को भगाओ,
अलख जगाओ।’
संग्रह के अंत मे पाठको को क्षणिकाएं भी पढ़ने को मिलेंगी जो कि माँ-बचपन-प्रेम-अभिनन्दन विषयों पर लिखी हैं।
‘संवेदनाओं के साक्ष्य’ काव्य संग्रह में एक साथ इतनी विधाएं दिखलाई दी है, जो कि नये लेखकों, कवियों को नवसृजन के लिये प्रेरित करती हैं।
एक समीक्षक की दृष्टि में मैं इसे देख रही हूँ तो उनकी ये काव्य संग्रह असाधारण होते हुए भी साधारणता की श्रेणी में आता है। मेरा यह मानना है कि समस्त विधाओं को एक साथ न लाकर वे इसे दो काव्य संग्रह में प्रकाशित कर सकती थीं। जिसमें प्रथम काव्य संग्रह में वे भजन, चेतना के स्वर, देशभक्ति पर लिखी अपनी और भी कविताओं को प्रकाशित करतीं एवं द्वितीय काव्य संग्रह में उत्सवोंल्लास, भावों की रंगोली, गजल, दोहे, हाइकु और क्षणिकाओं को प्रकाशित करवा लेती। जिससे नये संदर्भ – प्रसंग स्पष्ट दिखाई देते।
दूसरी बात हाइकू विधा के सम्बन्ध में है- यह जापान की एक लोकप्रिय काव्य शैली है, जिसमें तीन पंक्तियां होती है, कुल 17 शब्दांश होते है-पहली पंक्ति में पाँच, दूसरी में सात और तीसरी पंक्ति में पाँच शब्द होते है। और यह अधिकांशतः प्रकृति और प्राकृतिक दुनियां पर लिखी जाती है, अगर जापानी विधा के नियम से देंखे तो यह हायकू कवितायें कतई नहीं लगती हैं।
भाषा की दृष्टि से उनकी समस्त रचनायें सरल, सहज, सीधे शब्दों में लिखी गई हैं, जो सामान्य रूप से जनमानस के ह्रदय तक पहुँचती है, लेकिन कवयित्री की कई रचनाओं में अक्षरों के ऊपर लगी अतिरिक्त बिन्दियों एवं चन्द्र बिन्दुओं ने कहीं न कहीं पढ़ने में ध्यान आकृष्ट किया है, जो त्रुटि रूप में दिखलाई दिया है।
‘बेटी इतनी ममता रखतीं,
अपनों के हित जीती मरतीं।’
हाँ, इतना अवश्य है कि रचनाकार कल्पना भार्गव ‘देशना’ की काव्य कृति बहुत से नये आयामों को लेकर पाठकों तक पहुँची है, जिसमें भक्ति रूप, प्रेम, मानवीय मूल्य, कसक, पीड़ा, वेदना के स्वर एक साथ दिखलाई दिए हैं। उन्होंने नारी से जुड़ी एवं 21वीं सदी की स्त्री का पूर्ण रूप से सृजन कर अपनी रचनाओं के माध्यम से नारीवादी नारा न लेकर स्त्री विमर्श की बात की है। ये समस्त बिन्दु ही ‘संवेदनाओं के साक्ष्य’ बन उभरे है।
असीम शुभकामनाओं के साथ

डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल, मध्यप्रदेश