संदूकची | Sandookchi
संदूकची
( Sandookchi )
मेरे पास एक संदूकची है
मैं हर रोज़ एक लम्हा
ख़ुशी का इसमें भर देती हूँ
अपनों के साथ बिताए
सुखद यादों को
सुकून के मख़मली
पलों में लपेट सँभाल कर
रख लेती हूँ
शिकायतों की कुछ चवन्नी
और दर्द की अठन्नी भी
खनकतीं है इसमें कभी कभी
पर मैं सब्र के काग़ज़ के रूपयो
से उसे हर बार ख़ामोश
कर देती हूँ ।
वैसे तो खोलती नहीं
मैं हर बार इस संदूकची को
पर जब ज़रूरत होती है
तो थोड़ी सी मुस्कान
निकाल लेती हूँ मैं
ख़ुद के लिए नहीं
पर औरों पर वो
मुस्कान खर्च देती हूँ मैं ।
बदले में मिली दुआओं को
झट से अपनी इस
संदूकची में भर लेती हूँ
मैं फिर से अपने आप को
मालामाल समझ लेती हूँ
नज़र न लगे किसी की
इसलिए इसमें कुछ पल
उदासी के भी जमा कर देती हूँ
यही संदूकची मेरी जमा पूँजी है
जिसे देख कर मैं सब्र कर लेती हूँ
डॉ. ऋतु शर्मा ननंन पाँडे
( नीदरलैंड )
*शब्दों की बुनकर भारत की बेटी,सूरीनाम की बहूँ व नीदरलैंड की निवासी
यह भी पढ़ें :-