कश्ती और पतवार

( Kashti aur patwar )

 

 

साहिल से कहने लगी कश्ती बड़े प्यार से।
आगे बढ़ती मैं सदा मांझी की पतवार से।

 

नैया पार लगाये मांझी ले करके पतवार।
भवसागर पार लगाए जग का वो करतार।

 

मंझधार में डूबी नैया बिन नाविक पतवार।
जिंदगी के सफर में सदा बांटो सबको प्यार।

 

आंधी तूफानों में कश्ती जब-जब डगमगाए।
मल्लाह लेकर पतवार बेड़ा पार कर जाए।

 

प्रेम प्यार सद्भाव भर कर लो जीवन पार।
हम सबकी नैया का प्रभु ही खेवनहार।

 

पतवार बिन ना नाव चले सागर के उस पार।
राही उसको याद कर लो जो जग का करतार।

 

जहां मधुर प्रेम की बहती सरिता रसधार।
जीवन नैया पार कर नर संभालो पतवार।

 

हर्ष प्रेम आनंद सबको बांटो नर अपार।
तेरी डूबी कश्ती को अब पार करे करतार।

   ?

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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