शफ़क़ का वह शिहाब बन यूं आया
शफ़क़ का वह शिहाब बन यूं आया

शफ़क़ का वह शिहाब बन यूं आया

( Shafaq Ka Wah  Shihab Ban Yoon Aya )

 

शफ़क़ का वह शिहाब बन यूं आया

कि  शाम  रौशन  कर  गया  मेरी

 

लगा हज़ारों चाँद उतर आये ज़मीं पर

वो  रात  भी  हर  रात  जैसी  न  थी

 

जो   छुआ   उस   महताब   को  तो

भर गये कहकशां कई दामन में मेरे…

 

आगोश में सिमटे उन अंजुमनों को

जो देखानज़र उठाकर हमने तो हर

 

ज़र्रा  बर्ग-ए-गुल  हो  गया  जैसे

उस  खियाबान  में  जो  गुजारी वो

 

शब- ए-ज़िंदगी   हमने   आँखों     से

ख्वाबों को हकीकत में पा लिया जैसे…

 

अरमान जाग उठे दिल के बंद दरीचों में

जज़्बातों   ने   भी   ली   है   अंगड़ाई

 

कौन कहे सुबह का सूरज ही करे

रौशन  ज़िंदगानी  हर  किसी  की

 

हमें तो छिपते आफ़ताब ने ही अपना

मुरीद    बना    लिया    हो    जैसे….

 

 

Suneet Sood Grover

लेखिका :- Suneet Sood Grover

अमृतसर ( पंजाब )

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