शख्सियत | Shakhsiyat
शख्सियत
( Shakhsiyat )
बदल तो लेते हालात भी हम
गर साथ भी तुम्हारा मिल गया होता
झुका लेते हम तो जमाने को भी
गर हाथों मे हाथ मिल गया होता
गलियों से गुजरने मे चाहत थी तुम्हारी
आज भी वो यादें दफन हैं सीने में
गैरों पर उछलने के काबिल ही कहां
यादों के संग ही गुजरता है वक्त पीने मे
रूह में समाए बैठे हैं आप इस कदर
आपकी शख्सियत के ही चर्चे हैं जिगर में
बेरुखी तो किए बैठा हैं जहां से हम
वजूद मे आप ही आप हैं अब भी नजर में
भूल जाऊं कैसे वो आपका छत पर आना
तड़पा देती हैं मुझे वो आपका मुस्कराना
जिंदा भी हूं तो बस यादों के सहारे
ऐसे ही बाकी है अब दिल का धड़कना
कल भी थे आपही ,कल भी मेरे तुम ही हो
आज के मेरे होने की वजह भी तुम ही हो
खुदा रखे महफूज आपकी इस मुस्कान को
मेरे मुस्कान की मुस्कान भी तुम ही हो
( मुंबई )