अनुबंध

( Anubandh )

 

रिश्ता है अनमोल भाई बहन का
ये नही बंधन महज एक कलाई का
ये त्योहार नही है फकत राखी का
बहन के लिए भाई है साथ बैसाखी का

जन्मों जन्मों के बाद ये रिश्ता बनता है
रिश्तों के आंगन मे बन पुष्प खिलता है
उम्रभर निभाने का ये तो एक वचन है
ये नही सिर्फ राखी और रुपयों का चलन है

शौक वश ही न बांधे न बंधवाएं इसे
अटूट बंधन को दिखावे मे न सजाएं इसे
त्योहार नही यह तो जिम्मेदारी लेना है
बांध कलाई मे उम्रभर कवच बन जाना है

खिलवाड़ बनाते हो क्यों यह खेल नही है
महज एक दिन के जीवन का ही मेल नही है
ना होगा महसूस तुम्हे हृदय के घावों का
मिला नही सुख ,जिस भाई को बहनों का

रिश्ता माने मनाए का है बस नाम भर का ही
कहने को है ये बंधन सिर्फ काम भर का ही
जुड़ भी जाये ,तो उम्रभर निभाने की सौगंध
उम्रभर के लिए समझना कर लिया अनुबंध

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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