रात्रि के 11:00 बजे की घंटी बज चुकी थी फिर भी शेर अभी हिसाब मिलने में व्यस्त था । उसे अभी-अभी चिंता सता रही थी कि कहीं होटल बंद ना हो जाए । पेट में चूहे कूद रहे थे लेकिन क्या करें पापी पेट के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता।

तभी एक ग्राहक और आ गया । वह बार-बार कह रहा था -‘अभी दूर जाना है गाड़ी खराब हो गई थी तो मैं क्या करूं तेरी गाड़ी ठीक कर दूं । शेरू हिसाब मिलाते हुए बोला !”

फिर भी वह व्यक्ति खड़ा रहा उसे खड़ा देख शेरू ने कहा,-” ले भाई ले जा तू भी”
और उसने फटाफट तेल डालें और ऑफिस लाक करके भागा ढाबे में । चार रोटियां ,सब्जी लेकर आया कमरे में । पहुंचते हुए साढे 12 रात्रि के बज चुके थे । पूरा शरीर थकान से टूट रहा था। मेरे पास आकर गेट पर ही बैठ गया। बाल उधरे हुए, बटन खुले हुए थे ।

आते ही कहने लगा ,-” का बताएं गुरुजी! यह जिंदगी भी साली बहुत बदजात है । ना ठीक से खाना मिलता है । मिलता भी है जब भूख साली मर जाती है।”

फिर वह चप्पल पहने पैर फैला कर खाने लगा। भोजन करते वक्त बड़ा मासूम सा लग रहा था। वह खाए जा रहा था बोलता भी जाता था । उसकी बात थी कि खत्म ही नहीं होने की थी ।

वह कहने लगा,-“आप चिंता ना ही करो। जब तक हम हैं, कौनउ बात के सोचई के नाही बा। यहां हमार बहुत जान पहचान है। बड़े-बड़े लोग हमरा के जानत है। बाबुन लोगन से हमार जान पहचान है । ”

मैंने कहा -“अच्छा भाई शांति से खा ले। पहले चप्पल उतार दो। अच्छे से बैठो ना । भोजन शांति से करते हैं ।”

आपउ पंडित जी, जानते हो हम मुसलमान हो के भी हनुमान जी के भक्त हैं। हनुमान जी में बहुत बड़ी शक्ति बा ।उनसे बड़ा शक्तिशाली कौनउ देवी -देवता नाही बाटे ।”

कहते हुए वह खाने लगा ।वह खाता जाता और मैं उसके चेहरे को देखता रहता। मुझे लगा शेरू को प्रेम की प्यास लगी है ।जो उसे प्रेम के मीठे दो बोल बोले उसके दुःख को समझ सके।

मैंने उसे जो सब्जी रोटी बनाई थी दे दिया। वह थोड़ा सा खाया फिर कहने लगा -“क्या बताएं गुरुजी ! पेट्रोल पंप पर हवा भरते भरते जैसे भूख ही मर गई हो, ई जिंदगी भी साली कौनऊ जिंदगी है ।

जिंदगी तो जैसे दिल्ली की गलियों में ठोकर खाते ही खत्म हो जाएंगी । अच्छा छोड़ो यह सब हम हू न जाने आप सब लोगन के का -का बतावई लगे । ”

फिर उसने एक प्यारी सी अपनी मोबाइल पर कव्वाली लगाई जिसके बोल कुछ यूं थे। रमजान के महीने में रोज़ा जो रखोगे ,अल्लाह की दुआएं —

जिसे एक 15 वर्ष का लड़का गा रहा था लेकिन उसके गाने का अंदाज बहुत सुरीला था। परवरदिगार कि जब रहमत होगी है तभी किसी को इतना सुंदर स्वर मिलता है । कुछ देर तक वही बैठा रहा।

मैंने कहा-” कब तक होटल में खाओगे शेरू भाई ! सुबह बना लिया करो। कुछ उसी में से रख दिया करो। जिसे रात्रि में खा सको । अपने हाथ की बनाई जली रोटी भी स्वादिष्ट लगती है ।”

का गुरुजी मरई के फुरसत नहीं है ,आप खाना बनाने की बात करते हैं। सुबह 10:11 बज जाता है उठने में। फिर मलिक की साफ सफाई आदि कुछ करवाता हूं। इसी में नहाते- धोते एक दो बज जाता है ! फिर भागता हूं पेट्रोल पंप अब बताओ कहां बचत है समय ।”

कब खाना बनाए । रास्ते में किसी ढाबे में बैठकर पैसा फेंको और कच्चा -पक्का जो मिला खाया और काम पर पहुंच गए।”

यही हमरन लोगन के जीवन समझे । यह हमारी जिंदगी हैं । जिसमें हम रोज पिसते हैं । फिर वह जाने के लिए तैयार हुआ और झट से बाहर निकला और चला गया।

एक दिन मकान मालिक ने मुझे शेरू के अंदर आने उसके आराम करने के लिए मना कर दिया। उन्होंने कहा -“शेरू यहां नहीं दिखना चाहिए । अभी उस दिन पार्टी में मैं थप्पड़ उसे मारा था।”

उसकी बातें सुनकर मुझे पता नहीं अच्छा नहीं लग रहा था। लेकिन मैं कुछ नहीं बोला । दिन भर मैं परेशान रहा कि अब शेरू से ज्यादा बातचीत नहीं हो पाए थी। मेरी परेशानी को देख रात में चंदन ने कहा ,-“सब ठीक हो जाएगा ।
यहां यह सब चलता रहता है ।”

फिर भी रात्रि में भोजन बनाते समय शेरू का चेहरा आंखों के सामने नाचने लगा। आएगा तो क्या खाएगा ? फिर जब भोजन मांगेगा तो मैं कैसे कहूंगा कि तुम्हारा भोजन नहीं बनाया । फिर वह तो भूखा सो जायेगा। या फिर भागेगा होटल ।

देर रात में होटल में कुछ मिलेगा कि नहीं । यह मालिक लोग क्यों गरीबों की मजबूरियों को नहीं समझते । फिर दिल को कड़ा करके उसके लिए भी दो रोटी बना लिया । सोचा जो होगा देखा जाएगा रात में शेरू को तो कुछ पता नहीं था। मैं भी फोन पर बात कर उसे परेशान नहीं करना चाहता ।

वह एक पांव नींबू, आम, करेला ,नमक , पत्ता गोभी,को दोनों हाथों में लटकाते हुए आया। आज वह बहुत खुश दिख रहा था। मैं कुछ लिख रहा था। वह सारे सामान रखकर खाने लगा ।

फिर उसने कहा -“देखो गुरुजी! हम का का लीआई है और कौनउ कमी हो तो बताना । हमार बहुत जान पहचान वाले से हम बोल देंगे । जितना राशन पानी की जरूरत हो ले लेना । देखना संकोच मत करना । जब तक हम हैं आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है ।”

हम सोचने लगे कितना सरल हृदय का है यह लड़का। लोगों की शिकायत है कि कभी-कभी शराब भी पीता है। परन्तु कभी किसी ने यह जानने का प्रयास नहीं किया वह शराब क्यों पीता है ?
आखिर कौन सी ऐसी परेशानी है कि जो उसे शराब पीने के लिए मजबूर की।

कहावत है कि किसी का सुधार उपवास से नहीं उसे नए सिरे से सोचने और बदलने का मौका देने से होता है। सेरू को घृणा की नहीं प्रेम की जरूरत है। मैं उसको मालिक की बात नहीं बताना चाहता था ।परंतु कहे बिना रह नहीं सके।

सुनकर उसने कहा-” नहीं आऊंगा मैं किसी को परेशान करने । आखिर उन्होंने मुझे मारा तो मैं छोटा नहीं हो जाऊंगा।”

जिंदगी में अक्सर कहा जाता है कि महिलाओं को ही दुनिया भर के कष्ट भोगने पड़ते लेकिन बहुत से लड़के ऐसे होते हैं जिन्हें बचपन से ही घर की जिम्मेदारियां के बोझ तले ऐसे दब जाते हैं कि कब बचपन बीता कब जवानी आए और कब बुढ़ापे की तरफ बढ़ गए पता ही नहीं चला!

नोट-यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है। आपको शेरू का व्यक्तित्व कैसा लगा?

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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