शिकायत Shikayat
शिकायत
( Shikayat )
तूने नज़रें फेरीं, मगर तू मेरी रूह में बसी रह गई,
तेरे बिना ये अधूरापन, जैसे कोई दास्तां अधूरी रह गई।
तेरे बिना भी ये दिल तुझसे ही जुड़ा रहता है,
शिकायतें हैं तुझसे, पर प्यार फिर भी हदों से परे करता है।
तेरी खामोशियों में छिपी हैं अनगिनत बातें,
तेरे ख्यालों से अब भी सजती हैं मेरी रातें।
तेरी हर तकलीफ को मेरा दिल गहराई से समझता है,
शिकायतें हैं तुझसे, पर प्यार फिर भी हदों से परे करता है।
तेरी यादें अब भी मेरे दिल का सुकून हैं,
तेरी काल्पनिक आहट में भी तुझे पागलों सा ढूंढना,
ये प्रेम का अनोखा जुनून है।
दूरी के बावजूद मेरा दिल तुझसे ही बात करता है,
शिकायतें हैं तुझसे, पर प्यार फिर भी हदों से परे करता है।
वो लम्हे तेरे साथ के अब भी मेरी सांसों में बिखरे हैं,
तेरे वादे अब मेरी धड़कनों की तरह मुझसे जुड़े हैं।
तेरी चाहत से मेरा हर दिन दुआओं में सजा रहता है,
शिकायतें हैं तुझसे, पर प्यार फिर भी हदों से परे करता है।
दूरी है, मगर उम्मीदें अब भी कायम हैं,
आँखें तो कठोर हो गईं तेरी राह में, पर दिल अब भी मुलायम है।
तू लौटेगी एक दिन, ये दिल हर रोज़ कहता है,
शिकायतें हैं तुझसे, पर प्यार फिर भी हदों से परे करता है।
कवि : प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
सुरत, गुजरात
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