देखो हवाओं में जहर घोला जा रहा
देखो हवाओं में जहर घोला जा रहा

देखो हवाओं में जहर घोला जा रहा

( Dekho hawaon mein zehar ghol ja raha )

 

देखो हवाओं में जहर घोला जा रहा …..
जंगलों को जड़ो से है काटा जा रहा  …..
देखो यहां ऑक्सीजन है नहीं फिर भी….
शहरों में आलीशां महल बनाया जा रहा ।

 

लगा कर  पेड़ हम  जमीं को  सजाते रहे…
सींच कर  वनों को  हम अमृत  बनाते रहे..
घूस ले ले कर अधिकारी हैं मदिरा में मस्त..
कटा करके पेड़  हमको जहर  पिलाते रहे।।

 

जंगलों को काट कर मकांन बनाते  यहां. …….
खिलते चमन को लोग हैं उजाड़ते यहां……..
सीच कर ही भला हम वनों को क्या करें….
 जब खुद ही खुद के दुश्मन है बनते यहां।

 

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Dheerendra

कवि – धीरेंद्र सिंह नागा

(ग्राम -जवई,  पोस्ट-तिल्हापुर, जिला- कौशांबी )

उत्तर प्रदेश : Pin-212218

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