
शिव का सजा दरबार सावन में
( Shiv ka saja darbar sawan mein )
जल भर लोटा हाथों में सजा लो कावड़ भक्तों।
भोले शिव का करो ध्यान उठा लो कावड़ भक्तों।
हर-हर महादेव सब बोलो बढ़ते चलो वन वन में।
त्रिनेत्र त्रिशूलधारी सदाशिव भोलेनाथ रखो मन में।
शिव का सजा है दरबार सावन में
नीलकंठ सदाशिव भोले गले सर्प की माला।
जटा में गंगा की धारा बाबा शंकर डमरू वाला।
भस्म रमाए महाकाल शिव बसते हैं जन मन में।
मृगछाला बाघाम्बर धारी खुशियां भरे दामन में।
शिव का सजा है दरबार सावन में
यक्ष रक्ष भैरव संग डोले शिव बैलन के असवार।
शशि शेखर कैलाशपति शंभू गौरी के भरतार।
भंग धतूरा बिल पत्र चंदन चढ़े शिव अर्चन में।
नमो शिवाय नमः शिवाय गूंज उठे तन मन में।
शिव का सजा है दरबार सावन में
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )