Shiv ke Dwar
Shiv ke Dwar

सावन में चले शिव के द्वार

( Sawan mein chale shiv ke dwar )

 

अगम अगोचर अविनाशी औघड़ दानी सरकार।
महादेव शिव शंकर शंभू जटा बहती गंगा धार।
सावन ने चले शिव के द्वार

डम डम डमरू वाले बाबा गले सर्प की माला।
भस्म रमाए महाकाल शिव तांडव है मतवाला।
शशि शेखर ध्यान मग्न भोले बाबा लखदातार।
देवों के देव महादेव भक्तों का करते बेड़ा पार।
सावन में चले शिव के द्वार

त्रिनेत्र त्रिशूलधारी शिव नटराज है निर्विकार।
नीलकंठ महादेव सदाशिव बसते चारों धाम।
भोलेनाथ बाबा वरदानी दुनिया के करतार।
कैलाशपति महादानी भोले सब सुखों का सार।
सावन में चले शिव के द्वार

बम बम भोले रटे सदा हर हर महादेव ले धार।
हर लेते हर पीर शंकर बहती जीवन में रसधार।
बढ़े चलो शिव शरण में भोले की लीला अपरंपार।
भक्तों के भंडार भरे शिव सबकी नैया करते पार।
सावन में चले शिव के द्वार

 

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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