
नारी
( Nari )
नारी प्यासी प्रेम की, वो चाहे सबका मान
रूखी सूखी से संतुष्ट है,मांगे बस सम्मान
पूरे घर का भर उठाए,जूझे दिन और रात
रहे न थकान तब,जब सुनती मीठी बात
करुणा,दया,क्षमा और,है ममता की खान
नारी प्रथम पूज्य है,झुके शीश भगवान
कुछ नर पापी अधम नीच,खींचे नारी चीर
डूबे मद आपने,समझ रहे केवल एक शरीर
भोग्या बन नारी जग मे, नर से भोगी जाय
नर की दात्री नारी, नर से कैसे लाज बचाय
तात, भ्रात, नात सब,तब भी नारी अबला क्यों
पुरुष प्रधान यदि जगत मे,तब नारी निर्बला क्यों
( मुंबई )