श्याम रे

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श्याम रे

( Shyam Re )

 

नाही  आये  यमुना  तट पे  श्याम रे,

सुबह  बीती  दोपहरी  हुई  शाम  रे।

 

कहाँ छुप गए मनमोहन घनश्याम रे,

मन  है बेकल  कहाँ  है श्री श्याम रे।

 

निरखत से नयन नीर भर भर आए रे,

जैसे  घटा  में  मेघ घन  घिर  आए रे।

 

कारी  बदरिया  देख  मन  घबराये रे,

राधा निहारे राह श्याम नाही आए रे।

 

जाके  देखो  कहाँ है सखी श्याम रे,

काहे  आए  ना नन्द जी के लाल रे।

 

तोरी   पइया  पडूं  मै  जोरू हाथ रे,

ढूंढ  कर  लाओ जाओ घनश्याम रे।

 

रह  रह  के  हूंक  उठे जिया घबराए रे,

आहट हो कोई लगे श्याम पिया आए रे।

 

“शेर” लिखे   विरह का ऐसा राग रे,

राधारानी   पुकारें   जैसे  श्याम रे।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

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