वो समझते हैं
समझते नहीं होंगे लोग।
वो उलझते हैं
पर उलझते नहीं हैं लोग।
वो सुलगाते हैं
पर सुलगते नहीं हैं लोग।
उम्र कद कर्म अनुभव संस्कार की कमी,
लहजे से ही दिख जाता है, हर कहीं।
कुछ ज्यादा ही उछलते है वो,
आका के संरक्षण में पलते हैं जो।
टोपियां लोगों की उछालकर,
चलते हैं मजे ले लेकर।
हैं जो गैर कानूनी कार्यों में लिप्त,
परिचय यह उनका संक्षिप्त।
कारोबार नशे का, रहते भी हैं नशे में
देख नहीं पाते-
लटके गुनाह कितने हैं गले में?
या सने हैं पैर कीचड़ में।
मद में मस्तक ऊपर किए हुए हैं,
आजू बाजू भी देखते नहीं हैं।
मिंया मिट्ठू बन , शान हैं दिखाते!
रहते सदा इठलाते!
बघारते शोखियां,
भले अच्छी न लगे उनकी बोलियां।
बैठ सड़क पर मजमा हैं लगाते,
आने जाने वालों की हंसी हैं उड़ाते;
मन ही मन हैं मुस्काते ।
लेकिन,
हजारों होंठ मुस्काएंगी
उस दिन
जब उन्हें समय पकड़ेगा
या लंबे कानून के हाथ जब जकड़ेगा
निचोड़ेगा वकील
चलेगी न कोई रब के आगे दलील
मनेगी दिवाली होली
खुलकर निकलेगी सबकी बोली
ये वो नहीं जानते?
खुदा जानता है!
वही अपने बंदों को
ठीक ठीक पहचानता है;
और अंजाम तक पहुंचाता है।