हाँ दबे पाँव आयी वो दिल में मेरे, दिल पें दस्तक लगा के चली फिर गयी। खोल के दिल की कुण्डी मैं सोचूँ यही, मस्त खूँशबू ये आके कहाँ खो गयी॥ हाँ दबे पाँव....
हाँ दबे पाँव आयी वो दिल में मेरे, दिल पें दस्तक लगा के चली फिर गयी। खोल के दिल की कुण्डी मैं सोचूँ यही, मस्त खूँशबू ये आके कहाँ खो गयी॥ हाँ दबे पाँव....

शेर की कविताए

( Sher ki kavitayen )

 

हाँ दबे पाँव आयी वो दिल में मेरे, दिल पें दस्तक लगा के चली फिर गयी।
खोल के दिल की कुण्डी मैं सोचूँ यही, मस्त खूँशबू ये आके कहाँ खो गयी॥
हाँ दबे पाँव….

 

सोच मौका दोबारा मिले ना मिले, ढूँढने मैं लगा जिस्म सें रूह तक।
पर वो मुझको दोबारा मिली ना कभी , जाने मुझको सता के कहा खो गयी॥
हाँ दबे पाँव…

 

बात वर्षो पुरानी है पर ये मुझे, ऐसा लगता है जैसे की अब ही हुआ।
जब भी ठंडी हवाओ का झोका उठे, मेरा दिल ये कहे तू यही पे कही॥
हाँ दबे पाँव….

 

शेर एहसास ए दिल में दबाए रहा, ख्वाब में भी सदा मुस्कराता रहा।
आज फिर मुझको खुँशबू मिली है वही, जाने ए महफिल मे तू ही कही तो नही॥
हाँ दबें पाँव….

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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