सितम का वार है | Sitam ka Vaar Hai
सितम का वार है
( Sitam ka Vaar Hai )
उसकी जानिब ही सितम का वार है
आदमी जो वक़्त से लाचार है
जिसको रब की नेमतों से प्यार है
वो ख़िजाँ में भी गुल-ओ-गुलज़ार है
जिसके दम से हैं बहारें हर तरफ़
अब उसी की सिम्त हर तलवार है
लुट रही सोने की चिड़िया जा ब जा
आज का ताज़ा यही अखबार है
किस कदर बेचैन हैं अहल-ए-सितम
मेरे सर पर आज भी दस्तार है
मत उठाओ उसकी जानिब उँगलियाँ
इक वही तो साहिब-ए-किरदार है
मिल गईं उसके भी दर मजबूरियाँ
जो सुना था के मेरा ग़मख़्वार है
उसके दर से लौट तो आया मगर
दिल अभी तक माइल-ए-गुफ़्तार है
लौट जा तू ऐ तलातुम लौट जा
हाथ में मेरे अभी पतवार है
तुझसे ही मंसूब है मेरी ख़ुशी
माँग साग़र जो तुझे दरकार है
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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