सोच और समझ | Soch aur Samajh
कभी कभी ना हम खुद बस यही सोचते है कि जितना भी गलत हो रहा सब हमारे ही साथ हो रहा, बाकी सबके जीवन में कोई परेशानी नहीं, कोई दुख नहीं। लेकिन ये हमारा बस वहम है, क्योंकि बिना परेशानियों और दुखों के जीवन कुछ भी नहीं।
जबतक हम परेशानियों का सामना नहीं करेंगे हमें जीवन का वास्तविक अनुभव नहीं होगा और बिना दुख के सुख की अनुभूति।
कभी सोचा है हम इंसान है अपना काम, अपने मन की बात, अपने दर्द ये सब साझा कर सकते,इनका निवारण खुद से कर सकते, किसी par आश्रित नहीं रहना पड़ता।
लेकिन इससे परे ये सोचो बेजुबान जीवों पर क्या बितती होगी, जो अपने दर्द किसी से कह भी नहीं पाते, अपने मन का करना क्या होता उन्हें मालूम ही नहीं, किसी ने उन्हें ठोकर भी मार दी तो वो चुप चाप सह लेते।
कभी इन सब पर विचार करो। फिर देखो क्या हमारा हारना, निराश होना सही है क्या? खुद के गलतियों पर वक्त को और हालातों को दोष देना सही है क्या?
बात सोचनीय है, सोच समझ कर ही निर्णय लेना सही रहता। समझदारी अपनी जगह लेकिन उस समझदारी को वक्त रहते काम में लेना सबसे अहम बात है।