सुशीला जोशी के दोहे | Sushila Joshi ke Dohe
सुशीला जोशी के दोहे
( Sushila Joshi ke Dohe )
मेरा भारत देश
सूरज की पहली किरण,गति ऊषा सन्देश ।
अंगड़ाई ले जगता,मेरा सुंदर देश ।। 1।।
झरनों में जीवन बसा,नदियों में आदेश ।
प्रगति राह पर दौड़ता, देखो भारत देश ।। 2।।
सुमन शूल का साथ ले, धर जोगी का वेश ।
सूर्य उजाला बाटता, सोने सा परिवेश ।। 3।।
कहीं न कोई जलन है, या कोई आवेश ।
धरती कुनबा मानता, कहीं न कोई क्लेश ।। 4।।
रिमझिम सी बरसात है, ऋतु बसन्ती विशेष ।
शस्य श्यामला कूजता, जग में भारत देश ।। 5।।
माटी मेरे देश की, है सोने की खान ।
ललचाते खलिहान हैं, भोले कृषक सुजान ।। 6।।
हिमगिरि माला चूनरी, जलधि लहर परिधान ।
हरी कंचुकी देश की, मोहे जान जहान ।। 7।
चारो मजहब देश के, उसके चारों धाम ।
गीता ग्रन्थ कुरान में, बसे बुद्ध अरु राम ।। 8।।
बातें क्या इतिहास की, देख विवेकानंद ।
इसी सदी में विश्व में , किया प्रतिष्ठित हिन्द ।। 9 ।।
स्वतंत्र होने के लिए, किये बहुत संघर्ष ।
अब तक उनमें जी रहा, मेरा भारत वर्ष ।। 10 ।
भारत के गणतंत्र में , जन जन का कल्याण ।
स्वयं राज जनता करे , निडर बनी पाषाण ।।11।।
हिन्द पर्व सद्भावना , मिलजुल रहते मस्त ।
खिल-खिल कर इठला रहे , कर नफरत को पस्त ।।12
कौड़ी दामों बेच कर , फसल लुटाते आप ।
आज खेतिहर भोगते , भू रखने का श्राप ।।13।।
प्रेमचंद के पात्र अब , लिखे स्वयं के लेख ।
महामारी कुसमय में ,लेखक बने बिसेख ।। 14।।
तुलसी सूर कबीर की, हिंदी से पहचान ।
हिंदी पढ़ लिख मिल रहा ,हिंदी को सम्मान ।।।15।।
धारे देश का मान जो ,देश भक्त कहलाय ।
जन्मभूमि की आन पर , सब कुछ बलि चढ़ जाय ।।16।।
ज्ञान और विज्ञान में , जग में भारत मान।।
गणित शून्य पर कर रहा ,सारा जग अभिमान ।।17।।
कृषक हमारे देश का, जो दाता कहलाय ।
अन्न उगावे देश हित ,खुद अनपढ़ रह जाय ।। 18।।
यौगिक शक्ति के समक्ष , नत पूरा संसार ।
सादा रहना सीख लो, मानवता व्यवहार ।। 19।।
घर घर राधा दीखती, देती प्रेम अपार ।
प्रेम भरोसे रह रही , पाल प्रेम व्यवहार ।। 20।।
सुशीला जोशी
विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र