Swarg Narak
Swarg Narak

कहा जाता है कि जीवित जा नहीं सकता है और मरा हुआ व्यक्ति बता नहीं सकता तो आखिर स्वर्ग नरक को किसने देखा है। लेकिन देखा जाए तो इसी स्वर्ग नरक पुण्य पाप मुक्ति ईश्वर आदि के माध्यम से धर्म गुरुओं में हजारों वर्षों से समाज को गुमराह किये हुए है।

देखा गया है कि महिलाएं बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति की होती है। विभिन्न प्रकार के व्रत उपवास में जितना महिलाएं बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती है उतना पुरुष नहीं। देखा जाए तो पिछले दो दशकों से धार्मिक चैनलों की बाढ़ आ गई है।

इसी के साथ नित्य नए नए बाबा भी उत्पन्न हो गये है। धार्मिक सत्संगो में पुरुष से ज्यादा महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। सत्संग से पूर्व कलश यात्रा,यज्ञ मंडप आदि बनाने का कार्य किया जाता है, जिसमें जो महिलाएं घर पर एक काम नहीं करती है वह वहां दिन रात ऐसी लगीं रहती हैं जैसे स्वर्ग का टिकट उन्हें ही मिलने वाला है।

यज्ञ मंडप को सजाने या कलश यात्रा को सिर पर धारण करने सभी तामझाम स्त्रियों को ही करना पड़ता है। साथ ही भव्य आरती वगैरा में भी महिलाएं ही आगे रहती है। महिलाओं का इस प्रकार से सत्संग में भागीदार उनकी श्रद्धा कम बाबाओं की चालाकी ज्यादा होती है।

उन्हें पता होता है कि महिलाएं धर्मभीरु ज्यादा होती है, मुफ्त में भगवान के नाम पर बेगार उनसे ज्यादा कोई नहीं कर सकता है। ऐसे में कई महिलाएं व्रत उपवास भी रखती है। एक तरफ तो इतनी मेहनत ऊपर से पेट खाली होता है।

जिसके कारण कई बार तो वह बीमार भी हो जाती हैं फिर भी छू चा नहीं करती है। कई कई सत्संगो में तो यह कलश यात्रा दो-तीन किलोमीटर की होती है और कलश भी पांच दस किलों का होता है। जो महिलाएं घर में कभी कोई काम नहीं करती है वह भी बिना किसी प्रतिरोध के करतीं हैं।

एक शराबी पति से ज्यादा पाखंडी अंधविश्वासी पत्नियां ज्यादा खतरनाक होती हैं क्योंकि शराबी पति अपने बच्चों को कभी शराब नहीं पिलाता लेकिन अंधविश्वासी पत्नियां अंधविश्वास और पाखंड अपने बच्चों में कूट-कूट कर भर देती हैं, और उनको मानसिक रूप से ग़ुलाम बना देती हैं। यह गुलामी पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती हैं।

किसी भी धर्म का उद्देश्य भगवान और भक्त के बीच संबंध स्थापित करना नहीं होता है बल्कि मनुष्य मनुष्य के बीच संबंध स्थापित करना होना चाहिए। जो धर्म मनुष्य मनुष्य के बीच प्रेम भाईचारा कायम नहीं कर सकता तो हम उसे धर्म कैसे कह सकते हैं। यह सब भोली भाली जनता को मूर्ख बनाने का धंधा है।

वास्तविक रुप से देखा जाए तो हमारे धर्म गुरुओं ने हजारों वर्षों से स्वर्ग नरक पुण्य पाप मुक्ति ईश्वर आदि के माध्यम से मनुष्य को मानसिक रूप से ग़ुलाम बना दिया है। मनुष्य कितना भी शिक्षित हो जाता है लेकिन इस गुलामी से आजाद होना बहुत ही मुश्किल है।

यदि कोई व्यक्ति इसका प्रतिरोध भी करता है तो उसे कहा जाता है कि चार अक्षर पढ़ कर इसका दिमाग खराब हो गया है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता है।

वर्तमान समय में आवश्यकता है कि हम अपने बच्चों को स्वर्ग नरक पुण्य पाप जैसे काल्पनिक बातों से बचाएं। उन्हें धर्म के वास्तविक स्थिति का बोध कराए।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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