
दहेज में मां
( Dahej mein maa )
था एक लावारिस
खा रहा था ठोकर दर बदर
अनाथ था
पता नही कौन थी मां
कौन थे बाप
एक दिन अचानक
पढ़ाई के लिए प्रेरित किया
एक दिन बन गया बड़ा अफसर
लेकिन भूला नहीं
अपने पिछले दिन
आ रहे थे बार बार याद
एक दिन हुई शादी की तैयारी
लड़की वालों ने पूछा
क्या चाहिए दहेज
वो बोला
मुझे दहेज में मां चाहिए।
मां चाहिए
बस………।
मनजीत सिंह
सहायक प्राध्यापक उर्दू
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ( कुरुक्षेत्र )
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