तस्वीरें भी कुछ कहती हैं
तस्वीरें भी कुछ कहती हैं
आज मेरे सामने एक तस्वीर नहीं ,
अनेकों तस्वीरें पड़ी हैं |
अपनी – अपनी व्यथा , दुख और दर्द को लेकर खड़ी हैं |
?
आज माँ की तस्वीर को देखा ,
जो नम आँखों से मुझे देख रहीं थीं ,
आपनी ममता और स्नेह से दुलार रहीं थीं |
ऐसा लगा वो कह रहीं हैं
मुझसे ही क्यों ,
सारी माताओं से प्रेम करो ,
उनके भी दुख दर्द की तरफ
सहयोग के हाथ धरो |
?
पिता के तस्वीर से आवाज़ आ रही थी ,
मेहनत , हिम्मत , साहस और कर्मठता की सुगंध चारों ओर छा रही थी |
जैसे वो कह रहे हों –
आगे बढ़ो और जीत लो सारे संसार को ,
अपनी मेहनत और लगन से प्राप्त कर लो सारे अधिकार को|
?
बहन की तस्वीर एक अलग कहानी कह रही थी ,
आंसू , दर्द , उत्पीड़न और शोषण की गाथा गा रही थी |
चुपचाप अनकहे अनसुलझे सवालों से घिरी ,
दुख और पश्चाताप के आंसू बहा रही थी |
किस तरह इस आंगन से उस आंगन को गई ,
माता पिता भाई और अपने परिवेश से अलग हो गई |
?
भारत माता की तस्वीर को देखकर तो मुझे रोना ही आ गया,
उनकी इस दुर्दशा को देखकर डर से पसीना आ गया |
अत्याचार , शोषण और भ्रष्टाचार उन्हें नोच रहे थे ,
इनके दुखों को दूर करने के लिए
?
क्या करें ?
हम सोच रहे थे |
ऐसा लगा कि वो कह रहीं हैं –
उठो , जगो और जगाओ ,
रावण और कंसों के महलों में आग लगाओ |
तुम अमर शहीदों के सपूत हो ,
इन बुराईयों को जड़ से मिटाओ |
तुम सब धरा पुत्र हो,
मेरी आँखों के सितारे हो ,
फिर से मेरी एक नई तस्वीर बनाओ |
भारत को पश्चिमी सभ्यता की तरफ नहीं ,
पूर्वी सभ्यता की तरफ ले आओ |
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